Wednesday 17 November 2021

ब्रिटेन कॉन्सुल जनरल ने सऊदी अरब में इस्लाम कबूल किया...?

एस एम फ़रीद भारतीय 
इस्लाम के ये सिद्धांत मॉडर्न युवाओं को अपनी ओर खींचते हैं, ब्रिटेन की प्रतिष्ठित पत्रिका न्यू स्टेट्समैन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच ब्रिटेन में एक लाख से अधिक लोगों ने इस्लाम अपनाया, इन आंकड़ों में भी खास बात यह है कि इनमें 75 फीसदी महिलाएं थीं.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ईरान की जियोपॉलिटिक्स पर शोध कर रहीं दीपिका सारस्वत ने इस्लाम के प्रति आकर्षण को और स्पष्ट करते हुए कहा था कि ’इस्लाम एक मॉडर्न रिलिजन है, अगर सिद्धांत के आधार पर देखें तो यहां कोई कास्ट सिस्टम, कोई वर्ण-व्यवस्था, कोई हाइरार्की नहीं है, इसमें सब बराबर हैं, यहां आपके और अल्लाह के बीच में कोई नहीं है, आपको सिर्फ अल्लाह के आगे झुकना है, उसका कहा मानना है. कोई और अथॉरिटी नहीं है.’ बस आपको कुरआन और हदीस को फॉलो करना है.

इसी कड़ी मैं ब्रिटेन कॉन्सुल जनरल ने इस्लाम कबूल करने के बाद अपना नाम बदलकर सैफ अशर रख लिया है, सैफ अशर ने ट्विटर पर ये भी कहा कि वे मदीना में ब्रिटिश मुसलमानों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं.

ब्रिटेन कॉन्सुल जनरल ने सऊदी अरब में इस्लाम कबूल कर सोशल मीडिया पर मस्जिद अल-नबवी के अंदर की अपनी एक तस्वीर शेयर की है, जो काफी वायरल भी हो रही है, मस्जिद के अंदर की अपनी तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने ट्वीट किया है कि वो अपने पसंदीदा शहर मदीना लौटकर काफी खुश हैं, उन्होंने लिखा है कि मैं यहां लौटने और पैगम्बर की मस्जिद में फ़ज्र की नमाज़ अदा कर बेहद खुश हूं.

दिल्ली की साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के विद्यार्थी रहे काबुल के अली अमानी इस बारे में कहते हैं, ‘क्योंकि इस्लाम ज्यूडाइज़्म और क्रिश्चियेनिटी के बाद आया इसलिए इसमें इन दोनों धर्मों की अच्छी बातों को शामिल किया गया, सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आने के बाद आठवीं शताब्दी के खलीफाओं ने अरस्तू आदि ग्रीक दार्शनिकों के काम का अरबी में अनुवाद कराया, इसका भी उस पर बहुत असर रहा, हालांकि एक ईश्वर को मानने वाली ईसाइयत और यहूदी धर्म वहां पहले से पहुंच चुके थे.

लेकिन अरब प्रायद्वीप के लोग इतने ज़्यादा कबीलों, समूहों, देवताओं और खुदाओं में बंटे और उलझे थे कि कोई बड़े कद का धार्मिक नेता ही उन्हें एक कर सकता था. ऐसे में मुहम्मद साहब एक ईश्वर वाला एक ऐसा नया धर्म लेकर सामने आये जिसमें सब तरह के लोगों के लिए जगह थी, सभी के लिए बराबरी का भरोसा था, न्याय था.’ अली के मुताबिक यही बराबरी और न्याय का भरोसा आज भी इस्लाम को आकर्षक बनाता है.

ये उन लोगों के मुंह पर ताज़ा तमाचा है जो कहते हैं इस्लाम तलवार के डर या ज़ोर पर फैला है, ये उन मुल्कों मैं से एक मुल्क के बाशिंदे हैं जहां इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िशें रची जाती हैं, मगर वहां दीन और इस्लाम तेज़ी से फेल रहा है, जो क़ुरआन को समझ रहे हैं वो दुनियां और आख़िरत को भी बाख़ूबी समझ रहे हैं, उनका मुल्क और वहां की सरकारें उनको नौकरी से बाहर नहीं करती और ना ही किसी तरहां का दबाव दिया जाता है, ना ही कोई धमकी वगैरा दी जाती है, क्यूंकि काम नौकरी किसी धर्म से बैर नहीं रखता, नौकरी अपनी जगह और असल ज़िंदगी अपनी जगह...!

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