सीखना उनको है जो राजनीति को बस नफ़रत की निगाह से देख अपने को परेशानी और मुसीबत मैं डालते हैं, जबकि ख़ुद को ताक़तवर बनाने के लिए दुश्मन को दोस्त बनाना पड़ता है यही है राजनीति का पहला उसूल...?
वैसे तो लखनऊ मैं काफ़ी दिन पहले ही आईपीएस अधिकारी असीम अरुण के साथ अर्पणा यादव के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की ख़बरें आने लगी थीं, मगर तब अपर्णा यादव के नज़दीकी लोगों ने इससे पूरी तरहां इनकार कर दिया था, लेकिन फिर भी उनकी बातचीत भारतीय जनता पार्टी से चल रही है, इसमें किसी को कोई शक नहीं बल्कि पक्का यक़ीन था, क्यूंकि अपर्णा यादव आज जिस लखनऊ कैंट सीट से टिकट की दावेदार हैं वहां की सांसद रीता बहुगुणा जोशी की नाराज़गी की ख़बरें मीडिया में आ रही हैं.
असल मैं अपर्णा यादव के बीजेपी में शामिल होने की एक अहम वजह लखनऊ कैंट विधानसभा सीट ही है, जहां पर समाजवादी पार्टी की टिकट पर अपर्णा यादव 2017 का चुनाव बीजेपी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं, इस बार रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे को इसी सीट से उम्मीदवार बनाने की मांग कर रही हैं, और इसके लिए वो ख़ुद के इस्तीफ़े की पेशकश भी कर चुकी हैं.
साथ ही आपको याद दिला दें कि 31 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री योगी जी अपर्णा के सरोजनीनगर स्थित गौशाला भी पहुंचे थे, तब भी मीडिया ने अपर्णा से पूछा था कि क्या वे बीजेपी में शामिल हो सकती हैं, तब उन्होंने जवाब दिया था, कि हमारे बड़े बुज़ुर्ग लगातार कहते रहे हैं कि वर्तमान में हम जो भी करें ख़ूब अच्छे से करें, और भविष्य की बातों को भविष्य के गर्भ में छोड़ दें, भविष्य में जो भी होना है, जो भी हो जैसा भी हो, वो तो भविष्य में ही होगा.
यादव से पहले 32 साल की अपर्णा बिष्ट 2011 में मुलायम परिवार की पुत्रवधू बनीं थीं, अपर्णा और प्रतीक यादव ने प्रेम विवाह किया था, कहा जाता है कि दोनों के बीच स्कूली दिनों में ही प्यार हो गया, और बाद में दोनों ने इंग्लैंड में साथ-साथ पढ़ाई भी की थी, जबकि सोच यह भी है कि अपर्णा यादव ने बीजेपी का दामन उस समझौते के तहत थामा है जिसमें आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में उनके पति प्रतीक यादव के ख़िलाफ़ जांच को अपने हक मैं किया जा सके, जबकि पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक लखनऊ कैंट सीट से इलाके के स्थानीय पार्षद राजू गांधी का दावा सीट के लिए अपर्णा यादव से कहीं ज़्यादा मज़बूत है और बहुत संभव है कि पार्टी उन्हें ही अपना उम्मीदवार भी बनाए.
लखनऊ कैंट सीट पर 3.15 लाख मतदाता हैं, जिसमें 60 हज़ार ब्राह्मण हैं, 50 हज़ार दलित, 40 हज़ार वैश्य और 30 हज़ार पिछड़े वर्ग के मतदाता निवास करते हैं, दूसरे इस सीट से समाजवादी पार्टी ने कभी चुनाव नहीं जीता, यह बीजेपी की गढ़ माने जाने वाली सीट रही है, इस नज़र से देखें तब अपर्णा यादव के बीजेपी में आने से इनको ज़्यादा फ़ायदा होता दिख रहा है.
सवाल अब यहां सीखना किसको है...?
जवाब है आज के जुम्मनों और जुम्मन कहने वालों को है, यही राजनीति का उसूल भी है, राजनीति मतलब राज और काम करने कराने की नीति, कहते हैं ना मतलब के लिए गधे को भी बाप बना लो और एक राज्य की बड़ी पार्टी की बहू ने क्या किया क्यूं किया ये सोच का विषय है, अपने पति को बचाने के लिए ससुराल के राजनीतिक दुश्मन का दामन थाम लिया, भाजपा मैं जा बैठी...!
सोचना यहां होगा कि राजनीति का उसूल यही है, दुश्मन को भी वक़्त पड़ने पर दोस्त बना लो, या यूं कहें कि अपना बनाने के लिए दुश्मन पर ऐसा वार करो कि वो आपके नज़दीक आने को मचल उठे...!
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