۞ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ۞
“शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहम वाला है।”
रोज़ा क्या होता है और इसके रखने का तरीका क्या होता है, इसको लेकर कई बार सवाल लोगों के मन में उठता है, दरअसल रोज़ा उसी तरीके से रखा जाता है जैसे हिंदू धर्म में वृत और ईसाई धर्म में फास्ट किया जाता है, बस फर्क इतना है कि रोज़े में कुछ भी खाने या पीने की इजाज़त नहीं होती है, सूरज निकलने से लेकर सूरज ढलने तक रोजेदार ना पानी पीते हैं और ना ही कुछ खाते हैं.
रोज़ा कुरआने मजीद की रोशनी में
“ऐ लोगों! जो ईमान लाये हो । तुम पर रोजे फर्ज कर दिये गये। जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज किये गये थे। ताकि तुम परहेज़ गार बन जाओं” (सुरह बकरा-आयत-183)
रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन नाजिल किया गया । तुम में से जो शख्स इस महीने को पाये तो उसे चाहिये कि रोजा रखें । हां अगर कोई बीमार हो या मुसाफिर तो उसे दूसरे दिनों में यह गिनती पूरी करना चाहिये । (सुरह बकरा-आयत-185)
रोजे़ की अहमियत क्या है इसका अंदाजा आप इस हदीस से लगा सकते हैं, एक हदीस है कि रमजान का हुक्म आने से पहले हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेहि वसल्लम रमजान के लिए अक्सर दुआ किया करते थे, एक दिन जब वो सहाबा इकराम (हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के साथ जो लोग रहे उन्हें सहाबा का रुतबा हासिल है) के साथ रमजान का इस्तक़बाल (Welcome) कर रहे थे तब हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने सहाबा से पूछा कि आप किसका इस्तकबाल कर रहे हो, तब हजरत उमर रजि ने कहा कि, या रसूलअल्लाह स्व हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम क्या कोई वही (अल्लाह का आदेश) उतरने वाली है या किसी दुश्मन से जंग होने वाली है...?
तब हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेहि वसल्लम ने फ़रमाया कि, नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, तुम रमजान का इस्तकबाल कर रहे हो, जिसकी पहली रात में तमाम अहले क़िब्ला (ईमान वालों) को माफ़ कर दिया जाता है.
हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेहि वसल्लम ने फरमाया कि रोजेदार का खाना पीना यहां तक कि सोते रहना भी इबादत है; और सांस लेना तस्बीह है; और उसकी दुआ कबूल होती है, और रोज़ेदार के आमाल का सवाब दो चंद मिलता है.
रोजे की फजीलत
जब रमजान आता हे तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते है, जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते है ओर शयातीन जन्जीरो से जकड़ दिये जाते है। (लुलु वर मरजान-65 2, अबु हुरैरा रजि.)
रमजान मे उमरा करने से हज का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-225 5-56 इब्ने अब्बास रजि.)
रमज़ान में सवाब की नीयत से रोजा रखने ओर कयाम करने वाले के गुजरे सब गुनाह माफ कर दिये जाते है। (बुखारी-1901, इब्ने माजा-1641 अबु हुरेरा रजि.)
रोज़ा कयामत के दिन रोजेदार की सिफारिश करेगा । (मुसनद अहमद, तबरानी, इबने अम्र बिन आस रजि.)
(क) रोजे का अज्र (बदला) बे हिसाब है।
(ख) रोजेदार की मुंह की बू कयामत के दिन अल्लाह तआला को मुश्क की खुशबू से भी ज्यादा पसंद होगी।
(बुखारी-1894 मुस्लिम-1997-98 अबु हुरैरा रजि.)
‘जन्नत में रयान‘ नाम का एक दरवाज़ा है। कयामत के दिन उस दरवाजे से सिर्फ रोजेदार जन्नत में दाखिल होगे। (मुस्लिम, बुखारी-1896, इब्ने माजा-1640, सहल बिन सअद रजि.)
रमजान का पूरा महीना अल्लाह तआला हर रात में लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1642 अबु हुरेरा रजि.)
अल्लाह तआला हर रोज़ इफ्तार के वक्त लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1643 जाबिर रजि.)
अगर किसी ने रोज़ा रखने की नियत कर ली लेकिन दुआ नहीं पढ़ी तो भी उसका रोज़ा हो जाएगा। नियत के लिए अरबी दुआ व बिसोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान हाज़ा पढ़ ले तो अच्छा है अगर यह नहीं पढ़ा और अपनी ज़बान से यह कह लिया कि मैं अल्लाह के वास्ते कल रोज़ा रखने की नियत करता हूं तो भी काफी है। रात में रोज़ा रखने की नियत नहीं की सुबह कुछ खाया पिया नहीं और दिन चढ़े सोचा कि रोज़ा रखना है तो अब भी उसकी नियत हो जाएगी और रोज़ा हो जाएगा.
आमाल के अज्र व सवाब का दारोमदार नीयत पर है। (बुखारी-01 उमर रजि.)
जिसने दिखावे का रोजा रखा उसने शिर्क किया। (मुसनद अहमद-शद्दाद बिन औस रजि.)
जिसने फज़र से पहले फ़र्ज़ रोजे की नीयत ना की उसका रोजा नहीं। (अबु दाऊद-2454 तिर्मिजी-628 हफ़सा बिनते उमर रजि.)
(क) नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी भी वक्त की जा सकती है।
(ख) नफली रोजा किसी भी वक्त और किसी भी वजह से तोड़ा जा सकता है। (मुस्लिम-2004-05 अबु दाऊद-2455 आयशा रजि.)
रोजे की नीयत दिल के इरादे से है। मुरव्वजा अलफाज “व बि सौमि गदिन नवैतु मिन शहरि रमज़ान“ सुन्नते रसूल सल्ल. से साबित नहीं.
रमजान के महीने में एक रात ऐसी हे जो हजार महीनों से बेहतर है। जो शख्स इस (कि सआदत हासिल करने) से मेहरूम रहा, वह हर भलाई से मेहरूम रहा। (इब्ने माजा-1644 अनस रजि.)
उस शख्स के लिए हलाकत है जिसने रमजान का महीना पाया ओर अपने गुनाहों की बख्शिश ओर माफी ना पा सका। (मुसतदरक हाकिम-काअब बिन उजरा रजि.)
कोई शख्स अगर बगैर शरई उज्र के रमजान का रोज़ा छोड़ दे या तोड़ दे तो जिन्दगी भर के रोजे भी उसकी भरपाई नहीं कर सकते। (अबु दाऊद-2396 जईफ, तिर्मिज़ी-621, अबु हुरैरा रजि.)
वहीं एक सहीह हदीस बुखारी शरीफ़ के मुताबिक, रोजे के दौरान खाने पीने की चीजों से दूरी रखने के साथ आंख, कान, नाक और मुंह सभी चीजों का रोजा होता है, इसका मतलब है कि आप बुरा मत कहो, किसी के बारे में बुरा मत सोचो और किसी का दिल ना दुखाओ ये सब रोज़ा है.
कई बार लोग भूल से कुछ खा-पी लेते हैं और इस हालत में डरकर रोजा तोड़ देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए अगर रोजे के दौरान आपने भूल से कुछ खा या पी लिया है तो नियम कहते हैं कि आपका रोजा फिर भी पूरा हो जाएगा.
चांद देखे बिना रमजान के रोजे शुरू ना करो ओर चांद देखे बगैर रमजान खत्म ना करो। अगर मतला अब आलूद हो तो महीने के 30 दिन पूरे कर लो। (मुस्लिम 1842, बुखारी 1906, इब्ने माजा-1654 इब्ने उमर रजि.)
एक मुसलमान की गवाही पर रोजे शुरू किये जा सकते है। (अबु दाऊद-2342 इब्ने उमर रजि., इब्ने माजा 165 2 इब्ने अब्बास रजि.)
शव्वाल (ईद) का चांद देखने में दो आदमियों की गवाही होना चाहिये। (अबु दाऊद 2339 रबीअ बिन हिराश रजि.)
रमजान की पहली तारीख के चांद के बजाहिर छोटा या बड़ा दिखने से शक में नहीं पड़ना चाहिये। (मुस्लिम 1859 अबु अल बख़तरी रजि)
नया चांद देखने पर यह दुआ पढ़ना मसनून है “अल्ला हुम्मा अहिल्लहु अलैना बिल्युम्नि वल ईमानि वस्सलामति वल इस्लाम! रब्बि व रब्बु कल्लाह।” यानि ऐ अल्लाह! हम पर यह चांद अम्न, ईमान, सलामती ओर इस्लाम के साथ तुलूअ फरमा। (ऐ चांद मेरा और तेरा रब अल्लाह है।) (तिर्मिजी, मिश्कात-23 1 5 तल्हा बिन उबैदुल्लाह रजि.)
(क) चांद देख कर रोजा शुरू करने और चांद देखकर खत्म करने के लिए उस वक्त हाज़िर इलाके या मुल्क का लिहाज़ रखना चाहिये।
(ख) रमजान में एक मुल्क से दुसरे मुल्क सफर करने पर अगर मुसाफिर के रोजों की तादाद हाजिर इलाके में माहे रमजान के रोजों की तादाद से ज्यादा होती हो तो जाइद दिनों के रोजे छोड़ देना चाहिये या नफिल रोजे की नीयत से रखना चाहिये और अगर तादाद कम बनती हो तो ईद के बाद रोजों की गिनती पूरी करनी चाहिये। (मुस्लिम 1858 अबु दाऊद 2332 तिर्मिजी 596 इब्ने अब्बास रजि.)
अब्र (बादल) की वजह से शव्वाल (ईद) का चांद दिखाई ना दे और रोजा रख लेने के बाद मालूम हो जाये कि चांद नजर आ चुका है तो रोजा खोल देना चाहिये। (अबु दाऊद-233 9 रबिअ बिन हिराश रजि.)
रोज़ा खोलने के वक्त का भी काफी खास ख्याल रखना ज़रूरी है। घड़ी वगैरा पर ज्यादा भरोसा करना अच्छा नहीं बल्कि सूरज डूब जाने का यकीन हो जाना भी ज़रूरी है। जल्दी के चक्कर में अगर सूरज डूबने से दो 4 मिनट पहले ही रोज़ा खोल दिया तो रोज़ा नहीं होगा बल्कि उसकी कज़ा लाज़िम होगी। जब तक सूरज के डूबने में शक हो रोज़ा खोलना जायज़ नहीं वक्त हो जाए तो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम से और इफ्तार की दुआ अल्लाहुम्मा इन्नी लाका सुमतो व बिका अमन्तु व अलैका तवक्कलतो व अला रिज़्क़ीक़ा अफ्तरतु पढ़कर रोज़ा खोले.
सहरी खाओं क्योकि सहरी खाने में बरकत है। (लुलुवल मरजान-665, इबने माजा-1692 अनस रजि.)
हमारे और अहले किताब के रोजे में फर्क सहरी के खाने का है। (अबु दाऊद-2343 नसाई-21 70 अम्र इब्ने आस रजि.)
सहरी देर से खाना और इफ्तार में जल्दी करना अखलाके नबुवत से है। (तबरानी-अबुदर्दा रजि.)
सहरी खाते अगर अजान हो जाये तो खाना फौरन छोड़ देने के बजाय जल्दी-जल्दी खा लेना चाहिये। (अबुदाऊद-2350 अबुहुरैरा रजि.)
रोज़ा इफ्तार करने के लिए सूरज का गुरूब होना शर्त है। (बुखारी-1954 मुस्लिम-1877 अबु दाऊद-2351 उमर रजि.)
जब तक लोग इफ्तार में जल्दी करेंगे उस वक्त तक खैर व भलाई पर रहेंगे। (लुलुवल मर्जान-667 सहल बिन सअद रजि.)
ताजा खजूर, छुवारा या पानी से रोजा इफ्तार करना मसनून है। (तिर्मिजी-अबु दाऊद-2356 अनस रजि.)
नमक से रोजा इफ्तार करना सुन्नत से साबित नहीं।
रोजे के इफ्तार पर यह दुआ पढ़ना साबित है। “जहब्बज़्जमउ वन्तलल्तिल उरूक व सब तल अज्रू इन्शा अल्लाह” यानि “प्यास खत्म हो गई, रगें तर हो गई और रोजे का सवाब इन्शा अल्लाह पक्का हो गया। (अबू दाऊद-2357-इब्ने उमर रजि.)
नोट: इफ्तार के वक्त यह दुआ “अल्लाहुम्मा लका सुन्तु (व बिका आमनतु व इलैका तवक्कलत) व अला रिज्किका अफतरतु” (अबुदाऊद-2358) ना पढ़ना बेहतर है। इसलिए के ये अलफाज हदीसे रसूल सल्ल. में ज़्यादती है। और बाकी हदीस भी सनदन जईफ है।
जिसने रोजेदार का रोजा इफ्तार करवाया उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना सवाब रोजेदार के लिए होगा और रोजेदार के सवाब (अज्र) से कोई चीज़ कम ना होगी। (इब्ने माजा-1746 तिर्मिजी-700 जेद बिन खालिद रजि.)
सफर में रोजा रखना और छोड़ना दोनो जाइज है। (लुलुवल मर्जान-684 आयशा रजि.)
नबी सल्ल. के साथ सफर में कुछ सहाबा ने (रमजान का) रोजा रखा और कुछ ने नहीं रखा और किसी ने किसी पर ऐतराज नहीं किया (मुस्लिम-1923 अबु सईद खुदरी रजि.)
मुसाफिर को रोजा बाद में रखने और आधी नमाज़ की छूट है। और हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को भी रोजा बाद में रखने की रूख्सत है। (अबुदाऊद-2408 इब्ने माज़ा-1667 अनस कअबी रजि.)
सफर या जिहाद में रोजा तर्क किया जा सकता है और अगर रखा हो तो तोड़ा जा सकता है। उसकी सिर्फ कजा होगी, कफ्फारा नहीं। रमजान के महीने में एक सफर के दौरान आप सल्ल. ने रोजा तोड़ दिया और लोगो (सहाबा) ने भी तोड़ दिया। (लुलु वल मर्जान-680 इब्ने अब्बास रजि. मुसिलम-1913)
बुढापा या ऐसी बीमारी जिसके खत्म होने की उम्मीद ना हो, कि वजह से रोजा रखने के बजाय फिदया दिया जा सकता है। एक रोजे का फिदया एक मिस्कीन को 2 वक्त का खाना खिलाना है और उस पर कोई कजा नहीं। (मुसतदरक हाकिम, दार कत्नी इबने अब्बास रजि)
बीमारी, सफर, बुढ़ापा, जिहाद और औरत के मामले में हमल और दूध पिलाने के दिनों में अगर कोई रोजा रख ले ओर रोजा पूरा ना कर सके या तोड़ ले तो ऐसी सूरत में सिर्फ कजा होगी। (लुलु वल मर्जान-682 नसाई-23 19 अनस बिन मालिक रजि.
वो बातें जिन से रोज़ा मकरूह नहीं होता
भूल-चूक से खा-पी-लेने से। (बुखारी-1933, मुस्लिम 2006 अबु दाऊद-2398, अबु हुरैरा रजि.)
मिसवाक करने से। (इब्ने माजा-1677 अबुदाऊद-2364 आयशा रजि.)
गर्मी की शिद्दत में सर पर पानी बहाने (नहाने) से। (अबु दाऊद-2365, बुखारी, जिल्द 3 सफा 1 89 इब्ने उमर रजि.)
मजी खारिज होने या एहतेलाम होने से। (अबु दाऊद-2376 इब्ने अब्बास रजि. तिर्मिजी-618 अबु सईद रजि.)
सर में तेल डालने, कंघी करने या आंखों में सुरमा लगाने से। (इब्ने माजा-1678-आईशा रजि., तिर्मिजी-624-अनस रजि.)
हंडिया का जायेका चखने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-189, इब्ने अब्बास रजि.)
मक्खी हलक में चले जाने या उसे बाहर निकालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-191, हसन बिन अली रजि.)
थूक निगलने से। (अबुदाऊद-2386 आईशा रजि.)
नाक में दवा डालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-192-हसन रजि.)
अगर किसी पर गुसल फर्ज हो तो वह सहरी खा कर नमाजे फज़र से पहले गुसल कर सकता है। (लुलु वल मर्जान-677, अबुदाऊद-2388-आईशा रजि.)
बीवी का बोसा लेने से। (बशर्ते कि जजबात पर काबू हो) (लुलु वल मर्जान-676, अबुदाऊद-2382, तिर्मिज़ी-625-आईशा रजि.)
खुद ब खुद कय (उलटी) आने से (तिर्मिज़ी-618-अबु सईद खुदरी रजि.)
वह बातें जो रोजे की हालत में मना हैं...?
ग़ीबत करना, झूंठ बोलना, गाली देना और लड़ाई-झगड़ा करना। (बुखारी-1903, अबुदाऊद-2362-अबु हुरैरा रजि.)
बेहुदा, फहश और जहालत के काम या बातें करना। (लुलु वल मर्जान-706, अबुदाऊद-2363-अबु हुरैरा रजि.)
(जो अपनी शहवत पर काबू न रख पाता हो, उसके लिए) बीवी से बगलगीर होना या बोसा लेना। (बुखारी-1927-आईशा रजि., अबुदाऊद-2387-अबु हुरैरा रजि.)
कुल्ली करते वक्त नाक में इस तरह पानी डालना कि हलक तक पहुंच जाए। (तिर्मिजी-68 3, अबुदाऊद-लकीत बिन सबरह रजि.)
रोज़े को खराब करने या तोड़ने वाली बातें...?
(क) रोजे की हालत में जमाअ (हमबिस्तरी) करना। इस पर कफ्फारा भी है और कजा भी।
(ख) रोजे का कफ्फारा एक गुलाम आजाद करना, या दो माह के लगातार रोजे रखना या साठ मोहताजों को खाना खिलाना है। (लुलु वल मर्जान-678, अबुदाऊद-2390-अबु हुरैरा रजि.)
कसदन कय (उलटी) करना। इस से रोजा टूट जाता है और कजा वाजिब है। (अबु दाऊद-2380, इब्ने माजा-1676 अबु हुरैरा रजि.)
हैज (माहवारी) या निफास का शुरू हो जाना। रोजे की कजा है, नमाज की नहीं। (बुखारी-1951-अबु सईद रजि., अबु अल जनाद रह.)
इस्लाम में जक़ात (दान) को बड़ी अहमियत दी गई है और रमजान के महीने में तो इसे और भी बेहतर माना गया है, रमजान के महीने में दान करने से ज्यादा सवाब (पुण्य) मिलता है. रिवायत में आया है कि हुजूर ए अकरम सल्लल्लाहो अलेहि वसल्लम ने फरमाया है कि रमजान के महीने में इफ़्तार से पहले अपने पड़ोसियों का ख्याल करो कि उनके पास खाने के लिए कुछ है या नहीं, इसी तरह ईद से पहले अपने पड़ोसियों को देखें कि उनके पास नए कपड़े बनाने के लिए पैसे हैं या नहीं.
तरावीह क्या है...?
तरावीह भी रमजान की इबादत का ही एक हिस्सा है, ये नमाज़ सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है, तरावीह में 20 रकात नमाज पढ़ते हैं और हर 4 रक़ात के बाद थोड़ा आराम लेते हैं, तरावीह का मतलब होता है लंबी या देर तक पढ़ी जाने वाली नमाज यानि इबादत.
ऐसे ही सहरी क्या होती है...?
रोजा सहर यानि सुबह के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को मगरिब की अजान तक चलता है, सहर का मतलब होता है सुबह, उस वक्त हम रोजे की नीयत कर मामूली रूप से रस्म अदायगी के तौर पर कुछ खाते हैं, सुबह के इसी खाने को सहरी कहा जाता है, सहीह हदीसों के मुताबिक फज्र की नमाज़ शुरू होने तक सहरी की जा सकती है.
अब इफ़्तारी क्या होती है ये सवाल भी है...?
इफ़्तार का मतलब किसी बंदिश को खोलना होता है, रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं, जिसका हुकुम है और शाम को मग़रिब की अज़ान की आवाज़ सुनते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है, इसलिये इसे इफ़्तारी कहा जाता है, खजूर से इफ़्तार करने को इस्लाम में अफजल (प्राथमिकता) माना जाता है.
दुनियां मैं रमजान का महीना मुसलमानों के लिये सबसे ज्यादा सवाब (पुण्य) का महीना होता है, दूसरे दिनों में जो नेक अमल (अच्छे कर्म) किये जाते हैं, उसके मुकाबले में रमजान में नेकियों का सवाब 70 गुना ज्यादा कर दिया जाता है. फर्ज इबादतों (फर्ज नमाज़) का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है तो सुन्नत और नफ़्ल इबादतों का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है ऐसा आलिम लोग कहते हैं.
अहले इल्म हजरात से गुजारिश है कि अगर कहीं कमी या ग़लती पायें तो जरूर हमारी इस्लाह फरमाएं और आप हजरात से अपील है अगर आप हमारी इस कोशिश से सहमत हैं तो इसे आम करने में हमारे साथ तआवुन करें...!
जैसा की आप सबको पता है कि रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ हैं, पर साथ ही साथ रमज़ान के महीने का एहतराम करना भी ज़रूरी है, रमज़ान की तौहीन और बेकद्री बहुत बड़ी महरूमी है, जो लोग रमज़ान के रोज़े नहीं रखते ऊपर से उसकी बेहुरमती भी करते हैं, खुले आम खाते पीते हैं। फिल्मो नाच-गानों अय्याशी में खोये रहते हैं, वह दुनिया व आखिरत में भयानक अज़ाब के शिकार होंगे, हजरत अब्दुल्ला बिन अब्बास रदियल्लाहो अन्हो का बयान है कि अल्लाह के रसूल ने फरमाया जिस ने बिना किसी शरई मजबूरी के रमज़ान का एक भी रोज़ा छोड़ दिया तो वह 9 लाख साल तक जहन्नम की आग में जलता रहेगा, इसलिए ऐ मुसलमानों अल्लाह के वास्ते अपने गुनाहों से तौबा करने में जल्दी करें और फिर नमाज़ रोजे के पाबंद बन जाए, अल्लाह हम सबको रमजान में रोजे रखने और नमाज की पाबंदी रखने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए आमीन सुम्मा आमीन.
सम्पादित- एस एम फ़रीद भारतीय
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