Tuesday 12 April 2022

क़ुरआन और सहीह हदीस सुन्नत के आईने में निकाह...?

अस्सलामु अलेयकुम वा रहमत्तुल्लाहि वा बरकातेहु,
शुरू अल्लाह को नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है...!

एस एम फ़रीद भारतीय 
निकाह में खानदान और माल की बराबरी ज़रूरी नही...?

दोस्तों आज हमारे मुआशरे में हम देखते हैं कि शादी के लिये रिश्ता तय करने में खानदान और माली हैसियत को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी जाती है, लेकिन इस्लाम ने जिस चीज को अहमतरीन खूबी करार दिया है वो दीनदारी है।

गैर खानदान या गैर बिरादरी में निकाह करने या अपने से कमतर माली हैसियत वाले घर में निकाह करने को इतना बुरा समझा जाता है कि कई बार अच्छा रिश्ता मिलने पर भी इन वजहों से वो रिश्ता निकाह में नहीं बदल पाता है।

इसके उलट इस्लाम ने हमें जो तालीमात दी है वो ये हैं:

🔸ऐ लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और फिर तुम्हारे खानदान और कबीले(बिरादिरियां) बनाई ताकि एक दूसरे को पहचानो, इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें ज्यादा इज्ज़त वाला वही है जो सबसे ज्यादा परहेज़गार हो बेशक ख़ुदा सब कुछ जानने वाला और बाख़बर है।
📖सूरह हुजरात 49:13

🔸मोमिनीन तो आपस में भाई भाई हैं..
📖सूरह हुजरात 49:10

अल्लाह के रसूल सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने हज्जतुल विदाअ के खुत्बे में इरशाद फ़रमाया:

🔹ऐ लोगों! तुम्हारा रब एक है और तुम्हारा बाप(यानी आदम अलै.) भी एक है। बेशक कोई अरब किसी गैर अरब से बड़ा नहीं और ना कोई गैर अरब किसी अरब से बड़ा है और ना कोई गोरा किसी काले से बेहतर है और ना कोई काला किसी गोरे से बेहतर है ; सिवाय तक़वे के(यानी खुदा से डरने वाला ही अल्लाह की नजर में मर्तबे में बड़ा और बेहतर है)
📚बाहवाला: ◆मुसनद अहमद 22978, ◆सिलसिला सहीहा 6/199

🔹सब लोग आदम अलै. की औलाद हैं, और आदम को अल्लाह ने मिट्टी से पैदा किया था।
📚बाहवाला: ◆जामेअ तिर्मिज़ी 3270

इन आयात और अहादीस से पता चलता है कि सभी ईमान वाले अल्लाह की नजर में बराबर हैं और अगर किसी को कोई फजीलत हासिल है तो वो माल, खानदान, हसब नसब, नस्ल, रंग, भाषा की बुनियाद पर नहीं बल्कि अल्लाह से तक़वा(ईशभय और बुराई से बचने की रविश) की बुनियाद पर है।

गैर खानदान – बिरादरी में निकाह करना...?
अगर किसी को अपने खानदान या बिरादरी में नेक रिश्ता न मिले तो इस्लाम गैर खानदान या बिरादरी में निकाह करने की इजाजत देता है।

उम्मत के लिये नबी एक रोल मॉडल (आदर्श) होता है और हर मामले में वो उम्मत के सामने एक बेहतरीन नमूना पेश करता है। निकाह को गैर खानदान या बिरादरी में किया जा सकता है, इसका सबूत भी हमें नबी सल्ल. की पाक जिंदगी से मिलता है।

आप सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम खुद बनी हाशिम कबीले से थे लेकिन आप सल्ल. ने अपने कबीले से बाहर कई निकाह किये मसलन:

हजरत खदीजा, बनू असद कबीले से थीं.
★हजरत सौदा, आमिर बिन लुई कबीले से थीं.
★हजरत आयशा, बनी तैम कबीले से थीं.
★हजरत हफ़्सा, बनू अदी कबीले से थीं.
★हजरत जैनब, बनू हिलाल कबीले से थीं.
★हजरत उम्मे सलमा, बनी मख्जूम कबीले से थीं.
★हजरत जुवैरिया, बनी मुस्तलिक कबीले से थीं.
★हजरत उम्मे हबीबा, बनू उमय्या कबीले से थीं.

◆हजरत सफिया, बनू क़ुरैज़ा कबीले से थी, जो एक यहूदी कबीला था।
◆हजरत रेहाना, बनू क़ुरैज़ा कबीले से थी, जो एक यहूदी कबीला था।

●इसी तरह सहाबा किराम रज़ि. ने भी गैर बिरादरी में निकाह किये जिसके सबूत हमें हदीस और तारीख की किताबों में मिलते हैं।
मसलन:
★नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने खुद जैद बिन हारिसा (आजाद करदा गुलाम ) का निकाह जैनब बिन्त जहश(कुरैशी खातून) से करवाया था।
📚फ़िक़्हुल हदीस 2/126

★नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने एक ऊंचे खानदान बनी बयादा के लोगों से कहा कि तुम लोग अपनी किसी लड़की का निकाह अबू हिन्द (यसार रज़ि.) से करवा दो जो एक गुलाम थे।
📚सुनन अबू दाऊद 2102

माली हैसियत बराबर न होने पर निकाह करना:

इस्लाम में माली हैसियत बराबर होना, निकाह की कोई शर्त नहीं है।
नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम की पाक सीरत से हमें यह मालूम है की नबी सल्ल. ने अमीर और गरीब हर तरह की औरतों से निकाह किया।
और साथ ही नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने अपनी बेटीयों के निकाह में भी दामाद की माली हैसियत को ज्यादा अहमियत नहीं दी।
मसलन आप सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने अपनी दो बेटियों सय्यदा रुकय्या और उम्मे कुलसूम रज़ि का निकाह हजरत उस्मान रज़ि से किया जो बहुत मालदार सहाबी थे और अपनी सबसे चहेती बेटी सय्यदा फातिमा रज़ि का निकाह हजरत अली रज़ि से किया जिनकी माली हालात बहुत कमजोर थी।

इसी तरह सहाबा रज़ि भी निकाह में माली हैसियत को कोई खास अहमियत नहीं देते थे, मसलन
●हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ि(मशहूर मालदार सहाबी जो अशरा मुबशरा में शामिल है) की बहन हजरत बिलाल रज़ि के निकाह में थी ।
📚फ़िक़्हुल हदीस 2/126

एक अहम वजाहत:
ऊपर जिक्र हुई दलाइल से साबित होता है कि निकाह की असली बुनियाद दीन और अख्लाक है, इन खूबियों को पीठ पीछे डाल कर खानदानी ऊँच नीच और माली हैसियत को तरजीह देना सही नहीं है।

अपनी मंगेतर को एक नजर देख लेने की इजाजत है

🔹हज़रत मुगीरा बिन शोबा रज़ि. कहते है कि मैंने एक औरत की तरफ निकाह का पैगाम भेजा तो नबी सल्ल. ने मुझसे पूछा कि “क्या तूने उसे देखा है?”
मैंने कहा “नहीं”
तो आप सल्ल. ने फरमाया “जाकर उसे देख लो। इस तरह ज्यादा उम्मीद है कि तुम दोनो में उल्फत और मुहब्ब्त पैदा हो जाये।”

चुनाँचे मैं उस अन्सारी औरत के घर गया, और उसके माँ बाप के जरिये उसे पैगाम दिया और नबी सल्ल. का पैगाम सुनाया तो ऐसा मालूम हुआ की उन्हें ये बात पसन्द नहीं आई।
उस औरत ने पर्दे के अंदर से ये बात सुनी तो कहा, “अगर रसूलल्लाह सल्ल. ने देखने का हुक्म दिया है तो तुम देख लो वरना मैं तुम्हें अल्लाह का वास्ता दिलाती हूँ; गोया उस औरत ने इस बात को बहुत बड़ा समझा।”

हजरत मुगीरा रज़ि कहते है कि, “मैंने उस औरत को देखा और उससे शादी कर ली।”
फिर इसके बाद उन्होंने उससे बाहमी मुवाफक़त और हमआहँगी का ज़िक्र फरमाया।
♻सनद:सहीह
📚बाहवाला:
◆सुनन इब्ने माजा 1865, 1866 ◆जामेअ तिर्मिज़ी 1087 ◆सुनन नसाई 3237 ◆मिश्कात 3106
◆सिलसिला सहीहा 1440
◆अहमद, दारमी, दार कुत्नी, बैहकी, इब्ने हिब्बान वगैरह

🔹हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि. से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फरमाया कि,
“तुममें से जब कोई किसी औरत को निकाह का पैगाम दे , अगर मुमकिन हो तो उससे वो कुछ देख ले जो उसे उससे निकाह की तरफ रागिब कर रहा है। (यानी आदात और अख्लाक,कद काठी और हुस्नो जमाल वगैरह)

रावी(जाबिर रज़ि) बयान करते हैं कि मैंने एक लड़की को निकाह का पैगाम दिया तो मैं उसे छिपछिपा कर देखता था यहाँ तक कि मैंने उसमें वो खूबी देख ही ली जिसकी वजह से मैं उससे निकाह करना चाहता था, फिर मैंने उससे शादी कर ली।

सनद: हसन
📚बाहवाला
◆सुनन अबू दाऊद 2082
◆मिश्कात 3106
◆अहमद, हाकिम, बैहकी

🔹नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
जब अल्लाह किसी आदमी के दिल में किसी औरत को निकाह का पैगाम देने का ख्याल पैदा कर दे तो फिर इस बात में कोई हर्ज नहीं कि वो शख्स उस औरत को देख ले।

सनद: सहीह
📚बाहवाला:
◆सुनन इब्ने माजा 1864
◆इब्ने शैबा, अहमद, तबरानी कबीर
◆एक और ऐसी ही हदीस सिलसिला सहीहा 1436 में भी मौजूद है।

🔹हजरत अबू हुमैद रज़ि कहते हैं कि नबी सल्ल. ने इरशाद फरमाया:
जब कोई आदमी किसी को निकाह का पैगाम भेजे तो उसे देख लेने में कोई हर्ज नहीं, अगरचे उस औरत को इल्म न हो, लेकिन शर्त ये है कि वो उसे निकाह का पैगाम भेजने की गरज़ से देख रहा हो।

📚बाहवाला:
◆सिलसिला सहीहा 1438

🔹अबू हुरैरा रज़ि बयान करते हैं कि एक शख्स ने नबी सल्ललाहो अलेयहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर कहा कि, “मैंने अन्सार की एक औरत से निकाह करने का इरादा किया है।”
आप सल्ल. ने फरमाया:
तुम उसे देख लो क्योंकि अन्सार की आँखों में कुछ ऐब होता है(आँखे छोटी होती है)।

📚बाहवाला:
◆सहीह मुस्लिम 3485
◆मिश्कात उल मसाबीह 3098
◆सिलसिला सहीहा 1439
◆इब्ने हिब्बान, बैहकी, दार कुत्नी

🔹एक औरत नबी सल्ल. के पास खुद को हिबा करने आई तो नबी सल्ल. ने उसकी तरफ एक नज़र उठाकर देखा फिर नजरें नीची कर ली और सर झुका लिया।
📚बाहवाला:
◆सहीह बुखारी 5030

खुलासा:
●ऊपर बयान की गई अहादीस से हमें ये पता चलता है कि निकाह से पहले लड़की को एक नजर देखा जा सकता है।

असल में ये गुंजाइश इस वजह से है कि लड़के और लड़की एक दूसरे को देख कर मुतमइन हो जायें और फिर उनके बीच मुहब्बत पैदा हो सके। साथ ही अगर कोई खास खूबी आप अपने शरीक ए हयात(जीवनसाथी) में चाहते हैं तो वो भी देख लें, जिससे आपका दिल इस रिश्ते पर मुतमइन हो जाये।

●अक्सर देखने में आता है कि कई बार सिर्फ वालिदैन ही अपनी औलाद के निकाह के लिये लड़की को देखना काफी समझते हैं और लड़के की पसन्द को कोई तव्वजोह नहीं दी जाती है। ये एक गलत रस्म और मानसिकता है क्योंकि जब सारी उम्र उन दोनों को एक साथ रहना है तो उन्हें एक दूसरे से कोई रुझान होना ही चाहिये। वरना इसके नतीजे हमें यही नजर आते हैं कि शादी के कुछ दिनों बाद दोनों में नफरत पैदा होती है, लड़का अपनी बीवी से बेजार और बेफिक्र हो जाता है, और इसका सारा इल्जाम अपने घर वालों पर मढ़ता है कि घर वालों ने उससे कोई मशविरा नहीं किया, इस तरह घर खानदान में फसाद फैल जाता है, और बिलआखिर तलाक तक नौबत पहुँच जाती है।

●अफसोस की बात ये है कि कई बार ये वो लोग होते हैं जो मंगेतर को देखने की नबवी हिदायत को बुरा समझते है, लेकिन अपनी घर की बेटियों और बहनों को बेपर्दा बाहर घूमने की इजाजत दे देते हैं , अकेले सफर की इजाजत दे देते हैं, शादी ब्याह में भी बेपर्दगी के साथ खुला फिरने की इजाजत उन्हें होती है, लेकिन मंगेतर को देखने की इजाजत उन्हें नहीं होती।

●ये तो समाज के एक तबके का हाल है, इसके मुखालिफ एक और तबका इस इजाजत का इतना गलत फायदा उठाता है कि ये शादी से पहले ही लड़के लड़कियों को मियाँ बीवी जैसी हैसियत दे देता है।
इस्लाम ने लड़की को एक नजर देखने की जो इजाजत दी है निकाह करने को लिए.

जब तक निकाह नहीं होता, तब तक इस तरह की बेतकल्लुफी सिर्फ समाजी फसाद की जड़ ही बनती है और इससे कोई खैर निकल कर नहीं आता।
साफ अल्फाज में निकाह के पहले इस तरह की मुलाकातें किसी भी तरह से जायज नहीं हैं।

निकाह से पहले लड़की को देखने में सबसे अहम शर्त ये है कि लड़की को निकाह करने की नीयत से ही देखा जाये, मतलब ये है कि उसी लड़की को देखने की इजाजत है जिससे मर्द निकाह का ख्वाहिशमंद हो, बिना इस नीयत के लड़कियों को घूरना क़तअन जायज़ नहीं है।

इसमें एक बात और साफ रहे कि जिस लड़की से निकाह करने का इरादा हो उसे भी बेवजह देखना और उसे बेवजह घूरना सही नहीं, क्योंकि निकाह से पहले देखने का मक़सद उसमें किसी खूबी या खामी की तलाश करना है, और ये भी जवाज़ की हद तक है, जब उसमें मनचाही खूबी देख ली जाये तो फिर उसे भी बेवजह देखा ना जायेगा।

●निकाह से पहले किसी ऐब या बुराई से बचने के लिये भी लड़की को देखना जायज़ है, अब चाहे ये बुराई उसकी जिस्मानी बुराई हो या उसके अख्लाक की, इसकी वजह यही है की इससे आपसी मुहब्बत बढ़ती है और सूरत और सीरत की तसल्ली होने की वजह से इन्सान का दिल मुतमइन हो जाता है।

●निकाह के मौके पर किसी और से लड़के या लड़की की खामियाँ पता करना भी जायज़ है और इसमें कोई हर्ज़ नहीं है, साथ ही इस तरह की खामियाँ बताना भी गीबत में शुमार नहीं होता और ये भी जरूरी है कि जिससे इस तरह की जानकारी मांगी जाये वो अल्लाह से डरते हुये साफ सच्ची बात बता दे, जिससे आगे आने वाले मामलात बेहतर हो सके।

इस्लाम मैं निकाह के लिये लड़की औरत की रजामंदी जरूरी है...?

🔹हजरत अबू हुरैरह रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया
बेवा का निकाह उस वक़्त तक न किया जाये जब तक उसकी इजाजत न ली जाये और कुँवारी औरत का निकाह भी उस वक़्त तक न किया जाये जब तक उसकी इजाज़त न मिल जाये।
सहाबा ने पूछा, “या रसूलल्लाह सल्ल. कुँवारी औरत इजाज़त कैसी देगी ?”
आप सल्ल. ने जवाब दिया,”उसकी सूरत ये है की वो खामोश रहे। ये ख़ामोशी ही उसकी इजाज़त समझी जाएगी।”
📚बाहवाला:
◆सहीह बुखारी 5136, 6968, 6970
◆सहीह मुस्लिम 3473 ◆सुनन नसई 3269 ◆सुनन इब्ने माजा 1871 ◆सुनन अबू दाऊद 2094 ◆मिश्कात 3126

ऐसी ही रिवायत हज़रत आयशा रज़ि से भी मिलती है
◆सुनन नसाई 3268
◆सिलसिला सहीहा 1429

ऐसी ही एक और रिवायत हज़रत अदी बिन अदी किन्दी रज़ि से नकल की जाती है, जिसमें ये अल्फाज हैं कि नबी सल्ल. ने फरमाया
(निकाह के बारे में मशवरा करने पर) बेवा तो अपने बारे में खुद वज़ाहत कर देती है और कुँवारी लड़की की रजामंदी उसका खामोश रहना है।
◆सिलसिला सहीहा 1430

🔹हजरत अबू मूसा अशअरी रज़ि से रिवायत है कि नबी सल्ल. ने फरमाया
कुँवारी बच्ची (के निकाह के बारे में) खुद उससे मशवरा करो और उसकी खामोशी उसकी इजाजत होगी।
📚बाहवाला
◆सिलसिला सहीहा 1433

हजरत अबू हुरैरह रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया
 कुँवारी यतीम बच्ची से भी उसके निकाह के बारे में पूछा जायेगा, फिर अगर वो खामोश रहे तो यही उसकी इजाजत है और अगर वो इन्कार कर दे तो फिर उस पर ज्यादती न की जाये।
📚बाहवाला
◆मिश्कात 3133
◆अबू दाऊद 2093 ◆तिर्मिज़ी 1109 ◆नसाई 3272 ◆अहमद

🔹हजरत अबू मूसा रज़ि बयान करते हैं कि नबी सल्ल. ने फरमाया
जब आदमी अपनी बेटी की शादी करे तो पहले उससे इजाजत ले ले।
📚बाहवाला:
◆सिलसिला सहीहा 1428

🔹हजरत उक़्बा बिन आमिर रज़ि से रिवायत है कि नबी सल्ल. ने इरशाद फरमाया:
अपनी बेटियों को (निकाह के लिये) मजबूर न करो, क्योंकि वो दिल बहलाने वाली (गम ख्वारी करने वाली) और अहमियत की हामिल हैं।
📚बाहवाला
◆सिलसिला सहीहा 1432

🔹जब रसूलल्लाह सल्ल. अपनी किसी बेटी की शादी करते तो उसके पर्दे के पास बैठ कर इजाजत लेने के लिये इस तरह फरमाते:
फ्लाँ आदमी फ्लाँ औरत का जिक्र कर रहा था, इन दोनों का नाम भी लेते।

अगर वो खामोश रहती तो उसकी शादी कर देते और अगर वो नापसन्द करती तो पर्दा गिरा देती थी, जब वो पर्दा गिरा देती तो फिर आप सल्ल. उस मर्द से उसकी शादी न करते थे।

💠ये हदीस हज़रत आयशा, हजरत अबू हुरैरह, हजरत इब्ने अब्बास, हजरत अनस बिन मालिक रज़ि से रिवायत है।
📚बाहवाला
◆सिलसिला सहीहा 1431

🔹हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि. से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फरमाया :
 बेवा औरत (अपने शौहर को चुनने में) अपने आप पर अपने वली से ज्यादा हक़ रखती है और कुँवारी से भी इज़ाज़त तलब की जाएगी और उसकी इजाजत उसकी खामोशी है।

📚बाहवाला:
◆सहीह मुस्लिम 3476
◆अबू दाऊद 2098 ◆जामेअ तिर्मिज़ी 1108 ◆सुनन नसई 3262 ◆सुनन इब्ने माजा 1870
◆सिलसिला सहीहा 1435 ◆मिश्कात 3127
◆मुसनद अहमद, मुवत्ता मालिक, दारमी

💠इब्ने अब्बास रज़ि की एक और रिवायत में है कि
कुँवारी लड़की से उसका बाप इजाजत लेगा

📚बाहवाला
◆सिलसिला सहीहा 1434
◆सुनन अबू दाऊद 2099

खुलासा:
●इन अहादीस से पता चलता है कि जिस तरह इस्लाम ने मर्द को अपनी बीवी को पसन्द करने का हक़ दिया है उसी तरह औरत को अपना शौहर चुनने की पसन्द नापसन्द को पूरी अहमियत दी है।

●हमारे समाज में निकाह करते वक़्त औरत की मर्ज़ी और उसकी पसन्द को पूरी तरह नजर अंदाज किया जाता है, लेकिन नबी सल्ल. की तालीमात ये नहीं है। आप सल्ल. ने उस जमाने में औरत को ये हक़ दिया था जिस जमाने में औरत को अपनी पसंद का कोई हक़ हासिल न था।

●औरत को ये हक़ इसलिये दिया गया है कि अगर उसे लड़का पसन्द न हो तो वो पहले ही मना कर दे जिससे आने वाले वक़्त में उसकी पसन्द का कोई और रिश्ता उसे मिल जाये।

●अपना फैसला अपने घर के बच्चियों पर थोपने वाले लोग अपनी बेटियों पर जुल्म करते हैं जो उसकी मर्ज़ी के बिना उसे पूरी जिंदगी के लिये ऐसे आदमी के हवाले कर देते हैं, जिसे वो पसंद नहीं करती। और इस फैसले के दूरगामी नतीजे निकलते हैं, मसलन:

●औरत के जेहन में अपने शौहर से वो मुहब्ब्त पैदा नहीं होती जो होनी चाहिये।

●अगर इस नाराजगी का जिक्र वो अपने शौहर से करे तो उसके घर के बिगड़ने का खतरा रहता है।

●कई बार औरतों में इस वजह से शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं।

●मां बाप के बिगड़े हुये रिश्ते का सीधा असर बच्चों पर पड़ता है और उनकी तालीम और तरबियत सही तरीके से नहीं हो पाती है।

●मामला बढ़ने पर लड़ाई झगड़ा और घरेलू हिंसा के मामलात शुरू हो जाते हैं और बात बिगड़ते बिगड़ते तलाक तक पहुँच जाती है।

●इसके साथ ये भी ख्याल रखा जाये कि निकाह में औरत के वली की मर्ज़ी भी शामिल हो, यानी जिस रिश्ते के बारे में लड़की और उसके वली(बाप वगैरह) दोनों मुतमइन हों, वहीं लड़की का निकाह होना चाहिये।

●जब औरत के रिश्ते में उसके घर वाले सिर्फ अपनी मर्ज़ी चलाते हैं या इसके उलट पूरा इख्तियार लड़की को दे देते हैं तो अक्सर देखने में आता है कि इस तरह के निकाह पायेदार नहीं होते।

कुँवारी औरत को अपनी पसन्द जाहिर करने का ये तरीका बताया गया है कि वो खामोश रहे, अगर उसे लड़का पसन्द नहीं है तो उसे साफ मना कर देना चाहिये या जिस तरह भी मुनासिब हो अपने वालिद या अपने वली को इस बात का इशारा कर देना चाहिये कि वो इस रिश्ते से सहमत नहीं है।

●नबी सल्ल. के दौर में औरतें अपने कमरे वगैरह का पर्दा गिरा देती थीं, जिसका मतलब ये होता था कि उन्हें ये रिश्ता मंजूर नहीं। आज के दौर में कोई और तरीका भी अपनाया जा सकता है इसमें कोई हर्ज़ नहीं है।

●बेवा या तलाकशुदा औरत को साफ अल्फाज में बता देना चाहिये कि उसे रिश्ता पसन्द है या नहीं और कुँवारी को भी खामोशी को तोड़कर या कोई इशारा देकर अपनी नापसन्दगी का ऐलान कर देना चाहिये।

●ये एक ऐसा मौका है जिसमें औरत को अपनी राय पूरी जुर्रत के साथ अपने घर वालों के सामने रख देनी चाहिये, क्योंकि निकाह के बाद में अपनी राय जाहिर करना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है और इसका कोई फायदा भी नहीं होता, लिहाजा वक़्त रहते अपनी राय को जाहिर करना ही अक्लमंदी है।

●साथ ही वलियों को भी अपनी बच्ची या बहन की राय का एहतेराम करना चाहिये और उससे उसके फैसले की माकूल वजह भी पूछ लेनी चाहिये। और अपना फैसला घर की बेटीयों पर थोपकर पन पर जुल्म या ज्यादती नहीं करनी चाहिये।

●इसमें एक बात ये भी ध्यान रखनी चाहिये कि माँ बाप का अपनी औलाद, खास तौर से लड़कियों के साथ बातचीत करने का माहौल हो, एक ऐसा दोस्ताना माहौल हो जिसमें तमीज और तहजीब का भी पूरा ख्याल रखा जाये और जरूरत की बातें भी औलाद अपने वालिदैन के साथ खुल कर साझा कर सकें।

●इस तरह मुमकिन हैं कि जब हमारे घर की बच्चियों और वालिदैन के बीच कलामी खला (Communication Gap) खत्म होगा तो इनके निकाह और बेहतर जगह होंगे और इससे इस्लामी मुआशरा मजबूत होगा।

✨लड़की के मर्ज़ी के खिलाफ किया गया निकाह बातिल है✨

🔹हजरत खन्सा बिन्ते ख़ज़ाम रज़ि से रिवायत है कि वो बेवा थी, और उनके वालिद ने उनकी शादी कर दी। खन्सा रज़ि को यह निकाह मन्जूर नहीं था तो वो रसूलल्लाह सल्ल. की खिदमत में हाजिर में हाजिर हुई और अपना मामला बयान किया। इस पर आप सल्ल. ने उनका निकाह फस्ख (निरस्त/खत्म) कर दिया।

इब्ने माज़ा की रिवायत में है :
उनके वालिद का किया हुआ निकाह फस्ख कर दिया।

📚बाहवाला:
◆सहीह बुखारी 5138,5139,6945,6969 ◆इब्ने माज़ा 1873 ◆अबू दाऊद 2101 ◆नसाई 3270 ◆मिश्कात 3128
◆मालिक, अहमद, दारमी

🔹हजरत आयशा रज़ि बयान करती है कि एक नौजवान औरत नबी सल्ल. के पास आई और उसने अर्ज़ किया, “मेरे बाप ने मेरा निकाह अपने भतीजे से कर दिया है। ताकि मेरी वजह से उसकी जिल्लत खत्म हो जाये।”
इस पर नबी सल्ल. ने उसके वालिद को बुलाया और फिर फैसला उस औरत के हक़ में किया और उसे इख्तियार दे दिया (चाहे निकाह कायम रखे या चाहे निकाह खत्म करे)
तो उस औरत ने कहा, “मेरे वालिद ने जो (निकाह) किया वो मैंने मान लिया है। लेकिन मेरा मक़सद ये था कि औरतों को ये मालूम हो जाये कि उनके वालिदों को उन पर (जबरन निकाह कर देने का) कोई इख्तियार नहीं पहुँचता।”

♻सनद: सहीह
📚बाहवाला:
◆सुनन इब्ने माज़ा 1874
◆सुनन नसाई 3271

🔹हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि. से रिवायत है कि एक कुँवारी लड़की नबी सल्ल. के पास आई और जिक्र किया कि उसके वालिद ने उसका निकाह कर दिया है हालाँकि वो उस शख्स को नापंसद करती है । तो नबी सल्ल. ने उसे इख्तियार दे दिया (चाहे निकाह कायम रखे या चाहे निकाह खत्म करे)

सनद: सहीह
📚बाहवाला:
◆सुनन इब्ने माजा 1875
◆सुनन अबू दाऊद 2096, 2097

खुलासा:
●इन अहादीस से मालूम हुआ कि निकाह के मामले में बाप या कोई और वली लड़की पर दबाव बना कर जोर जबरदस्ती से निकाह नहीं करवा सकता, अगर वो ऐसा करता है तो यह निकाह बातिल होगा और इस्लामी अदालत सारे सबूतों और हालात की बिना पर इसे फस्ख कर देगी यानी यह निकाह खत्म हो जायेगा।

●इमाम नववी रह. कहते हैं कि इस मसले पर उम्मत का इज्माअ है [मिश्कात 3128 की शरह]

●पहली हदीस से मालूम हुआ की अगर तलाकशुदा या बेवा औरत का निकाह उसकी मर्ज़ी के खिलाफ किया जाये तो उसे पूरा इख्तियार है कि वो इस निकाह को अदालत में जाकर फस्ख (निरस्त /खत्म) करवा ले।

●तीसरी हदीस खास तौर से कुँवारी औरत के बारे में है। ये हदीस जो इब्ने अब्बास रज़ि से रिवायत है इसका हुक्म उस सूरत में है जब ब्याही हुई लड़की की रुखसती न हुई हो। यानी रुखसती से पहले उस औरत को पूरा हक़ है कि वो अपने शौहर के घर न जाये, लेकिन अगर रुखसती हो गयी है तो रुखसती के बाद खुला या तलाक़ या किसी शरई सबब की बिना पर ही उसे अपने शौहर से अलग होने का इख्तियार हासिल हो सकता है। [फ़िक़्हुल हदीस 2/124]

●साथ मे ही ये भी ख्याल रहे कि निकाह फस्ख करने का हक़ अदालत का है, ये मामला पहले काज़ी के पास शरई अदालत में जायेगा और फिर उसके फैसले पर ही निकाह फस्ख होगा; लड़की या उसके घर वालों के कहने से निकाह ‘फस्ख’ नहीं होता...!!

अल्लाह हम सबको पढ़कर समझने और अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये आमीन सुम्मा आमीन.

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