Sunday, 29 May 2022

पूजा स्थल कानून 1991 अपने ही देश के साफ़ कानून को क्यूं नहीं समझ पा रहे हैं कानून के रखवाले...?


एस एम फ़रीद भारतीय
*सम्पादकीय एनबीटीवी न्यूज़/इंडिया*
मौजूदा हालात में ज्ञानवापी मस्जिद देश का सबसे चर्चित मुद्दा बना हुआ है जिसे सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक ले जाया गया, इसी मुद्दे के बीच एक ऐसा भी मुद्दा है जो तेजी से चर्चा में आ गया है और वह मुद्दा है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून, सुप्रीम कोर्ट में देश के मुस्लिम पक्ष की तरफ़ से एक याचिका दायर कर कहा गया है कि वाराणसी कोर्ट का आदेश 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991' का खुला उल्लंघन है, लेकिन क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट और क्या कहते हैं इसके एक्ट, आइए हम आपको बताते हैं...?

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 कहता है...?
वर्ष 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता, यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है, यह कानून उस वक़्त कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी, यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा देश मैं बेहद गर्म था.

इसी प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 2
*यह धारा कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा.*

इसी प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 3
इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए.

इसी प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (1)
*इस कानून की धारा 4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा.*

साथ ही प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (2)
धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे।

आगे प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 5
*में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा.*

इस कानून के पीछे का मकसद क्या है...?
*यह कानून पूजा स्थल कानून, 1991 तब बनाया गया जब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर भी पहुंचा था, इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा, उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे, बस फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी.*

कानून तोड़ने पर पेनल्टी क्या है...?
यह कानून सभी के लिए समान रूप से कार्य करता है, इस एक्ट का उल्लंघन करने वाले को तीन साल की सजा और जुर्माने का भी प्रावधान इस कानून मैं है...!

*अब ये सवाल पैदा होता है कि बिल्कुल सीधा और सच्चा कानून है, जिसको मानते हुए मुल्क के मुसलमानों ने मुल्क मैं अमन चैन बरकरार रखने के लिए अपनी बाबरी मस्जिद को जानबूझकर खो दिया, आगे बड़ी बैंच मैं अपील की गुंजाइश कानून और संविधान के मुताबिक थी, मगर सभी ने सुप्रीम कोर्ट की बात को माना, तब उस फ़ैसले मैं भी इस 1991 कानून का ज़िक्र किया गया है, फिर भी आज देश को दहशत मैं धकेला जा रहा है आख़िर क्यूं यही सबसे बड़ा सवाल है...??*

*क्यूं कानून के रखवाले ही कानून का मज़ाक बना रहे हैं.*

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