'दलित हूं इसलिए मेरे से खाना नहीं लिया और मुंह पर थूका', Zomato डिलिवरी बॉय के आरोपों पर लखनऊ पुलिस ने केस दर्ज किया #Zomato #UttarPradesh
ये कैसी मुहब्बत, नफ़रत की सारी हमें पार, लाने वाले की जाति पूंछी, मगर अनाज उगाने वाला, काटने वाला, पीसने वाला, गूंदने वाला और बनाने वाले के साथ पैक करने वाला भी तो अधिकतर इसी जाति या समाज का होता है, क्यूं सबकुछ नहीं छोड़ दे...?
दूसरे ये नतीजा है पैसा लेकर वोट के समय हिंदू होने का दिखावा करने का, काश वोट के समय हिंदू मुस्लिम ना बनकर एक भारतीय बने होते, जिसने जीने का हक और इंसाफ़ के लिए कानून बनाये उसी को नकार दिया, अब पछतावा करने से कुछ नहीं होने वाला, क्यूंकि ये लोग जानते हैं वोट के समय पैसा बोलता है और साथ मैं अगर हिंदू मुस्लिम कार्ड हो तब संख्या हिंदूओं की अधिक होती है, नतीजा सामने है...?
काटते हैं, पिटते हैं और ज़लील किये जाते हैं, आयोग बनाया गया आयोग मैं बैठे हमदर्द कहते हैं हम पर लिखित शिकायत है ही नहीं और जब शिकायत होती है तब जवाब होता है जांच चल रही है हमने रिपोर्ट मांगी है, तब तक रिपोर्ट कर्ता पर दबाव बनता है या फिर से मारा पीटा जाता है तब मजबूर व डर कर वो अपनी शिकायत वापस ले लेता है, आयोग को जवाब मिलता है मामला सुलह सफ़ाई से निपट गया है, लिखित मैं देकर केस वापस ले लिया है, यही एक बार नहीं बार बार हज़ार बार होता है और दबे कुचलों के लिए कानून व संविधान के ज़रिये ज़िम्मेदार अपनी ही क़ौम के ज़ुल्म को अपनी सीट व मिल रही सुविधाओ के लालच मैं नज़र अंदाज़ कर देते हैं, करें भी क्यूं ना, जिसने आपके लिए ये आयोग वा कानून बनाये उस सरकार के साथ आपने किया क्या...?
लिहाज़ा जो बोया है वो तो काटना ही पड़ेगा, आज नहीं तो कल दिन सबका आयेगा, कटाई सबकी होगी, क्यूंकि आपको देश और एकता की चिंता नहीं थी, बल्कि चिंता थी कुछ पैसों, शराब और लालच के कारण झूंठे वादों की, कुछ तो ख़ुद बिके और कुछ नेताओं के ज़रिये बेच दिये गये...!
याद करो वो मंज़र जब बाबरी मस्जिद को शहीद किया जा रहा था...? तब वो जो भीड़ थी उसमें हिंदू बनकर सबसे आगे संविधान की धज्जियां उड़ाने मैं कौन आगे था, कौन गुम्बद पर चढ़कर एक इमारत नहीं बल्कि कानून को खोद रहा था, हमेशा ही इस्तेमाल होते आये हो, यही वजह है बार बार पिटना और ज़लील होना, जिनको नेता बनाकर पदों पर बिठाया क्या कभी उनसे सवाल किया कि ऐसा क्यूं हो रहा है नेता का मतलब क्या होता है...?
नेता ने पद पाते ही हिसाब लगाना शुरू कर दिया कब कहां किसको कितने मैं बेचना है और उसने बेचा भी, बेच कर अकूत सम्पत्ति जमा की मगर तुमको नेता फिर भी अपना लगा, सवाल नहीं पूंछा बल्कि मदारी के बंदर बनकर सबकुछ जानते हुए भी नाचते रहे क्यूंकि एक बड़ी घुट्टी पिलाई हुई थी और वो थी हिंदू मुस्लिम की कहा गया हिंदू ख़तरे मैं है, तुमने मान लिया ये नहीं पूंछा सरकार मैं कौन है मुसलमान या हिंदू, कानून के रखवाले कौन हैं मुसलमान या हिंदू, न्याय पालिका मैं उच्च पदों पर कौन हैं मुसलमान या हिंदू, कार्यपालिका किसके हाथ है मुसलमान या हिंदू, विधायिका मैं कौन हैं मुसलमान या हिंदू...?
सबकुछ आंख बंद करके माना और आज जो देश मैं हो रहा है उसके ज़िम्मेदार तुम ख़ुद हो, पहला या दूसरा कदम तुम्हारा ही इस देश की मौजूदा हालात का ज़िम्मेदार है, फिर कहते हो हम पर ज़ुल्म हो रहा है कोई सुनता नहीं है, बाबा साहब को मानते हो लेकिन ये भूल जाते हो बाबा साहब को बाबा साहब बनने का हक किसने दिलाया, उससे तो नफ़रत करते हो, क्यूं सही कहा ना...?
सोचना ज़रूर जो कहा कितना सच है...??
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