Tuesday, 5 July 2022

अज़ान पर बहस करने वाले समझ लें अज़ान क्या है...?

अज़ान पर बहुत चर्चा हुई और शायद आगे भी हो, समझे अज़ान क्या है, जो बोला या पढ़ा उसका मतलब क्या है...?

एस एम फ़रीद भारतीय 
अज़ान (उर्दू: أَذَان) या अदान। इस्लाम में मुस्लिम समुदाय अपने दिन भर की पांचों नमाज़ों के लिए बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कब्यान), उसे अज़ान कहते हैं, पांचों वक़्त जो व्यक्ति अज़ान पढ़ कर नमाज़ियों को [मस्ज़िद] की तरफ़ बुलाने वाले को मुअज़्ज़िन कहते हैं.

मदीना तैयबा में जब नमाज़ बाजमात के लिए मस्जिद बनाई गई तो जरूरत महसूस हुई कि लोगों को जमात (इकटठे नमाज पढने) का समय करीब होने की सूचना देने का कोई तरीका तय किया जाए। रसूलुल्‍लाह ने जब इस बारे में सहाबा इकराम (मुहम्मद साहिब के अनुयायी) से परामर्श किया तो इस बारे में चार प्रस्ताव सामने आए:

प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया जाए.
किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए.
यहूदियों की तरह बिगुल बजाया जाए.
ईसाइयों की तरह घंटियाँ बजाई जाएं.

उपरोक्त सभी प्रस्ताव हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गैर मुस्लिमों से मिलते जुलते होने के कारण पसंद नहीं आए, इस समस्या में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा इकराम चिंतित थे कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने स्वप्न (ख़्वाब) में देखा कि फरिश्ते ने उन्हें अज़ान और इक़ामत के शब्द सिखाए हैं, उन्होंने सुबह सवेरे हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में हाज़िर होकर अपना सपना (ख़्वाब) बताया तो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे पसंद किया और उस सपने को अल्लाह की ओर से सच्चा सपना बताया.

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से कहा कि तुम हज़रत बिलाल को अज़ान इन शब्‍दों में पढने की हिदायत कर दो, उनकी आवाज़ बुलंद है इसलिए वह हर नमाज़ के लिए इसी तरह अज़ान दिया करेंगे, इसलिए उसी दिन से अज़ान की प्रणाली स्थापित हुई और इस तरह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम के पहले अज़ान देने वाले के रूप में प्रसिद्ध हुए.

अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर,

अल्लाह सब से महान है
अल्लाह सब से महान है

अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर,

अल्लाह सब से महान है
अल्लाह सब से महान है

अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह
अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह

मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई दूसरा इबादत के काबिल नहीं
मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई दूसरा इबादत के काबिल नहीं

अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह
अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह

मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्ल. अल्लाह के रसूल हैं
मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्ल. अल्लाह के रसूल हैं

ह़य्य 'अलस्सलाह
ह़य्य 'अलस्सलाह,

आओ इबादत की ओर
आओ इबादत की ओर

ह़य्य 'अलल्फलाह
ह़य्य 'अलल्फलाह,

आओ सफलता की ओर
आओ सफलता की ओर

(अस्‍सलातु खैरूं मिनन नउम
अस्‍सलातु खैरूं मिनन नउम) * सुबह फ़जर् की नमाज़ मैं.

नमाज़ नींद से बहतर है
नमाज़ नींद से बहतर है* ये सुबह की अज़ान मैं कहा जाता है.

अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर,

अल्लाह सब से महान है
अल्लाह सब से महान है

ला-इलाहा इल्लल्लाह 
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के काबिल नहीं.
(सहीह बुख़ारी 370/375 अज़ान का ब्यान)

अब समझ गये होंगे कि यहां किसी इंसान की तारीफ़ नहीं और ना ही अल्लाह के आख़िरी मैसेंजर नबी ए करीम सअव की कोई तारीफ़ है, बस जो तरीका ईश्वर ने संदेश देकर बताया उसे ही पढ़ा या कहा जाता है, पूरी दुनियां मैं अज़ान को किसी एक शब्द मैं कोई बदलाव आपको नहीं दिखेगा, बेशक उस मुल्क की बोली या ज़ुबान कुछ भी हो अज़ान का तरीका एक ही है, क्यूंकि यही अल्लाह ईश्वर का संदेश है, हां कुछ लोगों ने हद से ज़्यादा तेज़ आवाज़ करके अज़ान पर उंगली उठाने का काम ज़रूर किया है, लेकिन ये ग़लती मस्जिदों की कमेटियों की है ना कि इस्लाम की...!

यानि अज़ान उस अल्लाह की बढ़ाई की गई है जिसका कोई मुकाबला नहीं है, हम सब उसी के ग़ुलाम हैं, ये ज़मीन आसमान, सुमंदर और सितारे, चांद सूरज और जितने भी दुनियां मैं ज़िंदा या मुर्दा दिखने वाली चीज़ें हैं, ये सब उसी एक अल्लाह की बनाई हुई हैं, और ये सब बताने के लिए अल्लाह ने करीब एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर यानि अपने देव दूतों को भेजा, जिनको हम अलग अलग नामों से जानते हैं.

मगर सभी देवदूत एक ईश्वर का संदेश देकर उसी ते पास कभी वापस ना आने वाली जगह पर चले गये, हम सबको भी वहीं लौटकर जाना है, लिहाज़ा समझना चाहिए कि हम जाने अनजाने कहीं कोई ग़लती कर अपने लिये और परेशानी को बढ़ा तो नहीं रहे हैं...?

किसी धर्म को ना मानना अलग बात है, लेकिन किसी को जबरन अपने धर्म मैं लेकर आना या उसपर किसी तरहां का दबाव बनाकर ये कहना कि अगर तूने मेरे वाले ईश्वर को नहीं माना तो तुझे जीने का कोई हक नहीं इसकी इजाज़त ना तो इस्लाम देता है और ना ही दुनिया का कोई और मज़हब, लिहाज़ा हमको अपने को प्यार और भाईचारे को कायम रख एक दूसरे की मदद करनी चाहिए, तभी हम अपने धर्म के सही मानने वाले बन सकते हैं, क्यूंकि यही ईश्वर का संदेश है...!!

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