भारत के 25 करोड़ मुसलमान अगर ईद के दिन एक बार में एक व्यक्ति 20 रुपये की कोल्डरिग पीता है तो इजराइल को 500 करोड़ रुपये का फायदा होगा, जबकि ईद के दिन ज्यादातर सभी के घरों पर कोल्डरिगं
इस्तेमाल की जाती हैं, कभी बिरादरी के लोग एक दूसरे के घर जाते हैं तो यार दोस्त, रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता है.
सोचो,जब एक टाइम में इजराइल को 500 करोड़ रुपये का फायदा हो रहा है तो पूरा दिन में कितना होगा,अरबों खरबो रुपये और हमारे इसी पैसे से वो हमारे ही फिलिस्तीन भाईयों पर बम बरसा रहा है,
इसीलिए बुजुर्गाने दीन का ऐलान है कि इस ईद पर ना किसी को कोल्ड्रिंक पिलायेगे और ना ही पीयेंगे,
आपकी या जिसने लिखा है उसकी सोच बहुत अच्छी है, यही आज हर मोमिन की सोच है, यानि बस सोच, वरना ये असल मैं मुमकिन नहीं है, सवाल ये कि ये सब मुमकिन क्यूं नहीं है...?
तब जवाब है क्यूंकि हमारा कोई नेता या रहबर नहीं है और हम बनाने चाहते भी नहीं हैं, क्यूंकि हमारे ख़्यालात रोज़ कपड़ों की तरहां बदलते रहते हैं, हम कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं.
*ग़ज़ा की जंग जब से शुरू हुई है तब से कई बार ऐसी पोस्ट सामने आ चुकी हैं और साथ ही कई शादियों मैं जाना भी हुआ, वहां इसराइल के बहुत से प्रोडक्ट देखने को भी मिले, जिनको देखकर जानने की कोशिश की गई कि क्या आपको मालूम नहीं इनके बहिष्कार का ऐलान किया गया है...?*
जवाब मिला मालूम है बहिष्कार किया गया है मगर हमारे सामने इसकी जगह दूसरा कौनसा उत्पाद है जिसको हम अपने मेहमानों के लिए इस्तेमाल करें, सिर्फ़ कह देने से काम नहीं चलता, दूसरे मैं नहीं चाहता था मगर औलाद के आगे मजबूर हो गया, उन्होंने कहा कि हमारी दस बीस पेटी से कौनसा फ़र्क पड़ रहा है, अभी शादी कर लेते हैं फिर पीना छोड़ देंगे...!
मैं बस देखता ही रह गया, इसलिए कि मैं और मेरे कुछ अज़ीज़ इनका इस्तेमाल आज से नहीं उस वक़्त से नहीं करते जब ईराक़ से इस्लाम के दुश्मन टकराये थे और इराक़ को तबाह ही नहीं किया बल्कि वहां क़द्दावर मुजाहिदों को शहीद किया था, और अफ़गान पर हमले के बाद तो बिल्कुल ही दूरी बना ली हमने.
ख़ैर आपने जो कुछ कहा है काश इसपर अमल हो पाता हमको अक़्ल आ पाती, हम कोई रास्ता एक होकर निकाल पाते, लेकिन बस ये ज़ुबांनी चल रहा है और शायद चलता रहेगा...
आपको बता दूँ कि हम उस क़ौम के मानने वाले हैं जो हर साल करीब पांच सौ करोड़ रूपया ऐसे ही फेंक देते हैं, मगर फिर भी पंचर वाले कहलाते हैं, हमारी खरबों डॉलर की जायदाद पर सरकारी और ग़ैर सरकारी कब्ज़े हैं मगर हम और हमारी क़ौम को हिकारत की नज़र से देखा जाता है, हर साल देश की जीडीपी से कई गुना हम ख़र्च करने के बाद भी ग़रीब कहे जाते हैं, जानते हैं क्यूं...क्यूंकि हम लावारिस बने हुए हैं, हम अपने अख़लाक़ को भूल चुके हैं, हम दीन की पैरवी नहीं करते, ग़ुलामी की चादर हमने ओढ़ ली है...
*एस एम फ़रीद भारतीय*
लेखक, सम्पादक व मानवाधिकार सलाहकार
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