आप लंबे समय से भारतीय मीडिया को एक मीडिया पर्यवेक्षक के रूप में देख रही हैं. टेप और रिकॉर्डिंग को आपने सुना होगा. इसके परिप्रेक्ष्य में मौजूदा भारतीय पत्रकारिता के बारे में आपकी क्या राय है ?
मैंने टेप को पढ़ा है और कुछ रिकॉर्डिंग भी सुनी है. इससे साफ़ पता चलता है कि कुछ बड़े पत्रकारों – का सत्ताधारी लोगों के साथ कुछ अनैतिक सांठगांठ है. ये पत्रकार कॉपोरेट घरानों और उनके प्रचारकों की पैरवी करते हैं. उनसे मुझे यह भी पता चला कि पत्रकार पूरे तौर पर उन तरीकों के साथ भेदभाव नहीं बरतते, जिनका उपयोग करके वे उन तक अपनी पहुंच बनाते हैं, जिन्हें उन्हें रिपोर्ट करनी होती है।
प्रिंट, वेब और टेलीविजन सहित भारतीय मीडिया के विभिन्न मंचों पर आए फोन टैप संबंधी समाचार के कवरेज पर आप क्या सोचती हैं?
इस समाचार का कवरेज मानक से परे है. एक को छोड़ दिल्ली के सभी अखबारों ने इस खबर की उपेक्षा करना ठीक समझा. सभी टीवी समाचार चैनलों ने भी ऐसा ही किया.यह मौन अपने आप में बहरा बना देनेवाली स्थिति है. दक्षिण भारत में इस समाचार की उपेक्षा करने के मामले में एकरूपता नहीं रही. द हूट मुख्यत: इसीलिए शुरू किया गया, क्योंकि भारतीय मीडिया खुद अपनी खबर नहीं प्रसारित या प्रकाशित करती. इसमें बदलाव आना शुरू हुआ है, इसीलिए मैं हैरान हूं कि अधिकांश समाचार संस्थानों ने मीडिया से संबंधित टेपों की खबर प्रकाशित करने का साहस नहीं किया, जबकि वे 2जी घोटाले संबंधी अन्य आयामों को प्रकाशित कर रहे हैं. (2008 में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा द्वारा फोन कंपनियों को दूसरी पीढ़ी के स्पेक्ट्रम के आवंटन पर बढ़ते जा रहे राजनीतिक शोरगुल के बीच ये टेप सामने आए. ए. राजा ने 14 नवंबर को इस्तीफा दे दिया, लेकिन वे खुद को निर्दोष मानते हैं.—आईआरटी)
क्या भारतीय न्यूज़ रूम में ऐसी नैतिक नीतियां हैं, जिनसे पत्रकार परिचित हों और उनका पालन करते हों?
मेरे ख्याल से कुछ पत्रकार इसका पालन करते हैं और कुछ नहीं करते. एनडीटीवी जैसा संस्थान निश्चित रूप से कहेगा कि वे इन नैतिकताओं का पालन करते हैं. लेकिन ये नीतियां काम करने चंद पत्रकारों पर तो लागू होती हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि संपादक, संपादकीय निदेशक और स्टार एंकर इसे अपने ऊपर लागू मानते हैं.
पिछले एक दशक में भारतीय मीडिया का तेजी से विस्तार हुआ है. क्या इस तेज विकास का पत्रकारिता की नैतिकता पर असर पड़ा है ?
हाँ यह सही है कि प्रतिद्वंद्विता के कारण बहुत सारी नैतिकता की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. लेकिन साथ ही पत्रकारिता के कुछ पहलुओं का विकास भी हुआ है. जैसे कि आर्थिक पत्रकारिता, वहां नैतिकता संबंधी नीतियां विकसित हुई हैं. लेकिन टीवी न्यूज़ में ऐसा नहीं हुआ है. टीवी न्यूज़ का तेजी से विस्तार हो रहा है लेकिन नए कर्मियों और पत्रकारों को प्रशिक्षित करने के लिए वहां वरिष्ठ समाचार संपादकों और प्रशिक्षकों की भारी कमी है.
भारत में समाचार संकलन और रिपोर्टिंग के बीच कौन-सी बड़ी खाई आप देखती हैं और इसे पाटने के लिए आप की क्या सलाह है?
इसका जवाब बहुत लंबा हो जाएगा. मुख्य रूप से प्रत्येक समाचार संस्थान को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पास पहरेदार के रूप में एक अनुभवी, तीक्ष्ण बुद्धि संपन्न और नैतिकतावादी समाचार संपादक या स्थानीय संपादक हों. दरअसल यह समय एक पाठक-संपादक रखने का है, जो अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हो.
(वॉल स्ट्रीट जर्नल के सहयोगी साईट इंडिया रियल टाइम्स से साभार)
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