Sunday 8 January 2012


छिपे चेहरे को सामने लाने का संकल्‍प पूरा  ?

साध्वी चिदर्पिता गौतम द्वारा शुरू की गयी जंग का कानूनी हश्र क्या होगायह तो आने वाला समय ही निश्चित करेगाजो भी होपर मुझे न्याय के लिए कानून से अधिक ईश्वर पर विश्वास हैक्योंकि उसकी अदालत से कथित स्वामी चिन्मयानंद उर्फ कृष्ण पाल सिंह का बचना संभव ही नहीं हैइसलिए मैं कथित स्वामी के पाप ईश्वर पर छोड़ कर साध्वी को बीती जिंदगी भूल जाने के लिए प्रेरित कर सकता थालेकिन मैंने ऐसा नहीं कियाक्योंकि परिचय होने के बाद साध्वी चिदर्पिता की नरकीय जिंदगी की मुझे जिस दिन जानकारी हुईउसी दिन मैंने यह संकल्प ले लिया था कि गेरुआ वस्त्रों के अंदर छिपेइस वहशी दरिंदे का असली चेहरा जनता के सामने अवश्य लाऊंगावो संकल्प पूरा हो गया है। हालांकि कानून अपना काम कर रहा है और साध्वी को अदालत से भी न्याय मिलेगापर वास्तव में मुझे व्यक्तिगत तौर पर सुखानुभूति हो रही है।
स्थानीयप्रांतीय या राष्ट्रीय स्तर के हर क्षेत्र से जुड़े खास लोग कथित स्वामी के चरित्र और व्यवहार की सच्चाई पहले से ही जानते हैंपर अब देश का बच्चा-बच्चा जान गया हैइसलिए अब जनता फैसला करे कि ऐसे अधार्मिक व्यक्ति को गेरुआ वस्त्र धारण करने का अधिकार हैक्या ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति को जनप्रतिनिधि बनने का अधिकार हैक्या ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति को देश की प्रतिष्ठित संस्थाओं का अध्यक्ष बने रहने का अधिकार है?चालचरित्र और चेहरे की बात करने वाली भाजपा में वरिष्ठ नेता के तौर पर प्रतिष्ठित इस पेशेवर धंधेबाज को भाजपा में रहने का अधिकार हैसंत समाज में शिखर पर माने जाने वाले सरस्वती संप्रदाय में ऐसे लोगों को रहने का अधिकार होना चाहिए और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या इस वहशी को हम सब से सम्मान पाने का अधिकार हैयह ऐसे सवाल हैं कि जिनका कानून से कोई लेना-देना नहीं हैइसलिए पूरा घृणित मामला आपकी अदालत में ला दिया गया है। अब मंथन के बाद आप स्वयं निर्णय लें। आपकी आत्मा से जो आवाज आयेवह परिणाम सुना देनाउसे मैं क्या स्वयं भगवान भी मानने को बाध्य होंगेक्योंकि पंच ही परमेश्वर होते हैं।
  मेरी महान कहलाने की या बनने की भी कोई इच्छा नहीं है। मैं आम आदमी वाली ही जिंदगी जीने का पक्षधर हूं और मरने के बाद भी कलम के सिपाही के रूप में जाना जाऊंइसके लिए ही रात-दिन मेहनत करता हूंपर लडऩे की आदत शुरू से ही हैजो पूज्य पिता से खून में मिली है। सच्चाई के लिए किसी भी हद तक जाने का साहस पूज्य मां से मिला हैजो अंतिम सांस तक रहेगा। यह संयोग ही है कि सामने देश का पूर्व गृह राज्यमंत्री हैपर लडऩे से पहले मेरे मन में एक क्षण को भी नहीं आया कि लड़ाई किससे शुरू करने जा रहा हूंमैंने किसी से सलाह भी नहीं लीक्योंकि मेरे परिजनरिश्तेदार और मित्र अच्छी तरह जानते हैं कि यह सच के लिए किसी से भी भिड़ जाता हैतो सच के लिए लडऩे से कौन मना करेगा?

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