एस एम फ़रीद भारतीय
अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा यह तो 17 जुलाई को मतदान व 20 जुलाई को मतगणना के बाद अधिकृत रूप से तय होगा, लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष द्वारा शुरू हुए दलित-दलित के खेल ने कई सवालों को जन्म दे दिया है, सबसे पहला सवाल दलित की परिभाषा क्या है? दूसरा क्या वास्तव में राष्ट्रपति पद के हमारे दोनों उम्मीदवार दलित हैं? तीसरा और अंतिम सवाल यदि देश
का राजा ही दलित होगा तो फिर प्रजा का क्या होगा? अब आइए दलित शब्द की गहराई तक जाने का प्रयास करते हैं। दलित का अर्थ है दलन किया हुआ अर्थात मसला हुआ, मर्दित, दबाया हुआ या फिर कुचला हुआ, रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार के बारे में जितना पढ़ा है तो दोनों महानुभाव विद्वान हैं और देश का राष्ट्रपति बनने की सभी योग्यताएं रखते हैं इसमें कोई शक नहीं।
लेकिन मैने यह नहीं पढ़ा कि इनका आखिरी बार शोषण कब हुआ था? उन्हें किसने दबाया या कुचला या फिर उनका उत्पीडऩ किया? किसी को याद हो तो वह बता सकता है। यदि नहीं तो फिर यह लोग दलित कैसे हो गए।
वैसे जो मैं कह रहा या लिख रहा हुँ वो बात इन दोनों को कहनी ओर करनी चाहिए मगर देश की राजनीति के ये मोहरे हैं दलितों के घर पैदा ज़रूर हुऐ सरकारी लाभ भी मिला ओर इनके समाज ने इनको यहां तक पहुंचाया भी लेकिन यहां पहुंचकर या इससे आगे पहुंचकर ये अपने समाज को क्या देंगे?
दूसरा सवाल देश मैं दलित बहुंत ही ऊंचे ऊंचे मुकाम पर रहे हैं क्या उन्होनें कभी दिल से दलितों पर शोषण को रोकने के लिए कोई कड़ा कानून बनाया ओर अगर बना भी तो क्या वो कानून दलितों के काम आया या यूं कहूं कि उत्पीड़न करने वालों मैं उस कानून का ख़ौफ़ है ?
सबसे बड़ी बात आज की मौजूदा सरकार दलित पर कुछ दिन पहले किये गये जुल्मों को भुलाकर अब चुनाव मैं दलित कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है क्या वो उन बेगुनाह दलितों को जेल से रिहा करेगी जो अपने समाज ओर अपने को बचाने मैं कानून के शिकंजे मैं फंस चुके हैं ।
आज इस बड़े चुनाव के वक़्त लग रहा है दलित की भी दो जातियां हो गई हैं एक सत्ता पक्ष का दलित जो कुछ भी करे उसे छूट है दूसरा विपक्ष का दलित जो घर मैं भी अगर बैठा है तब वो गुनाहगार है उस ज़ुल्म का जो उसने करना तो दूर, पास क्या दूर से भी नहीं देखा ।
अब मान लीजिए कि यह दलित हैं तो फिर भविष्य में देश की तस्वीर क्या होगी, यह लोग विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व करने जाएंगे तो क्या कहेंगे कि मैं उस देश का राजा हूं जहां जाति पूछकर ताज पहनाया जाता है, देश के दोनों बड़े गठबंधनों और सत्ता के गलियारों में बैठे लंबरदारो शर्म करो, भारत को विश्व में सिरमौर बनाना चाहते हो और आजादी के छह दशक बाद भी भारतीय नहीं बन पाए, बेहद शर्मनाक...
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