*एस एम फ़रीद भारतीय*
कीमती वक़्त मैं से वक़्त निकालकर जरूर पढ़े ??
एक गिद्ध का बच्चा अपने मां-बाप के साथ रहता था, एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला- पिताजी, मुझे भूख लगी है, ठीक है, तू थोड़ी देर इंतज़ार कर, मैं अभी लेकर आता हुँ, कहते हुए गिद्ध उड़नकर जाने लगा, तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, रूकिए पिताजी, आज मेरा दिल इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है.
ठीक है, मैं देखता हूं, कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने
बच्चे का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया.
बस्ती के पास पहुंचकर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मंडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली, थका-हारा वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घौंसले में पहुंचा.
उसे देखकर गिद्ध का बच्चा बोला, पिताजी, मैं तो आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?
बच्चे की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया, वह बोला, ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर, कहते हुए गिद्ध फिर: उड़ गया.
उसने इधर-उधर बहुत तलाशा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली.
अपने घोंसले की ओर लौटते वक़्त उसकी नज़र एक मरी हुई गाय पर पड़ी, उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के गोश्त का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुंचा.
यह देखकर गिद्ध का बच्चा एकदम से बिगड़ उठा, पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है ओर मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है, क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?
यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ, उसने दिल ही दिल एक योजना बनाई और योजना को अंजाम देने के लिए निकल पड़ा.
गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्रीवाल के अंदर डाल दिया, उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया, गोश्त के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी.
रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गयी, यह देखकर गिद्ध बहुत ख़ुश हुआ, उसने एक इन्सान के शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने घौंसले में जा पहुंचा.
यह देखकर गिद्ध का बच्चा बहुत ख़ुश हुआ, वह बोला, पापा ये कैसे हुआ ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहां से मिला?
गिद्ध बोला, बच्चे ये इन्सान कहने को तो खुदको अक़्ल के मामले में सबसे अफ़ज़ल समझता है, पर ज़रा-ज़रा सी बात पर 'जानवर' से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने- मारने पर उतारू हो जाता है.
इन्सानों के रूप में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं.
मैंने उसी का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दिया.
साथियो, क्या हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी उंगलियों पर नचाते रहेंगे?
और कब तक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूल कर इंसानियत का खून बहाते रहेंगे?
अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए मजबूर कर दे, तो प्लीज़ इसे दूसरों तक भी पहुंचाए.
क्या पता आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने की वजह बन जाए...
शुक्रिया दिलसे !!
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