Friday, 13 October 2017

मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ बदसुलूकी करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ दर्ज होगी FIR नही तो एसएसपी पर होगी कार्यवाही- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

नई दिल्ली- आज कुछ सपना साकार होने के साथ रंग लाई है *पीयूसीएल* की मेहनत जब रास्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र ओर राज्य सरकारों को भी चेताते हुए कहा कि मानवाधिकार कार्यकर्ता नही है भीड़ का हिस्सा, मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ बढ़ती ज्यादती और पुलिस के अनुचित व्यवहार के चलते कई बार मानवाधिकार कार्यकर्ता आजादी के साथ अपना काम नही कर पाते है. उसी को ध्यान में रखते हुए रास्ट्रीय मानवाधिकार आयोग  के अध्यक्ष ने राज्य सरकारों को चेतावनी देते हुए निर्देश भी दिया है कि पुलिस आदि मानवाधिकार कार्यकर्ता के साथ बदसलूकी ना करें.

मानवाधिकार कार्यकर्ता भीड़ का हिस्सा नही है.

किसी स्थान पर हिंसा या बवाल होने की स्थिति में मानवाधिकार कार्यकर्ताओ जो स्वयं सेवी संस्थान को उनके काम करने में पुलिस व्यवधान नही पहुँचा सकती, पुलिस जैसे भीड़ को हटाती है वैसा व्यवहार मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ नही कर सकती, ऐसा होने की स्थिति में बदसलूकी करने वाले पुलिसवालों या अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया जायेगा.

अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह कोर्ट में एक अधिवक्ता अपने मुवक्किल का हत्या का केस लड़ता है पर वह हत्यारा नही हो जाता है, उसी प्रकार किसी सावर्जनिक स्थान पर मानवाधिकार कार्यकर्ता NGO अपना काम करते है पर वे भीड़ का हिस्सा नही होते, इसलिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को उनके काम से रोकना मानवाधिकार की स्वतंत्रता का हनन करना है !

सभी राज्यों को दिए निर्देश
रास्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ने देश के केबिनेट सचिव, गृह सचिव, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों व गृह सचिवों को इस सम्बन्ध में निर्देश भेजा है... और उसमे स्पष्ट कहा है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ पुलिस या अर्द्ध सैनिक बलों की हिंसा बर्दाश्त नही की जायेगी.

सरकारे ये सुनिश्चित करें कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ ऐसी कोई कार्यवाही कही न हो, पुलिस की मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ की गई हिंसा मानवाधिकार की स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन माना जायेगा, और  संविधान की धारा के तहत बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मी या अधिकारी पर आपराधिक मामला दर्ज होगा.

नोट- आप नहीं जानते होंगे कि देश का सबसे पहला मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल है ओर तीनों राष्ट्रीय आयोग पीयूसीएल की याचिका पर ही बने हैं, सबसे आखिर मैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ जबकि सबसे पहले अल्पसंख्यक आयोग का दोनों के बीच महिला आयोग का गठन पीयूसीएल ने कराया.
मुझे गर्व है कि मैं पिछले अठ्ठाइस सालों से पीयूसीएल से जुड़ा हुँ.

*एसएम फ़रीद भारतीय*
लेखक सोशलिस्ट मानवाधिकार कार्यकर्ता

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