Tuesday 3 October 2017

सच मैं जब पढ़ेगा इंडिया तब आगे बढ़ेगा इंडिया ?

एस एम फ़रीद भारतीय
*सम्पादक सैफ़ी पोस्ट*

पढ़ेगा भारत, बढ़ेगा भारत ?
पढ़ेगा इंडिया तभी तो
आगे बढ़ेगा इंडिया ?
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ ?
पढ़ोगे नहीं तो आगे बढ़ोगे नहीं ?

ये सारे नारे वो हैं जिनको एक तरफ़ा सोच ज़हन मैं आने के बाद लागू किया गया है, देश के राजनेता ओर सरकार चाहते है कि भारत अमेरिका, फ़्रांस, जापान, जर्मन ओर पैरिस बन जाये, हमारी भी पढ़ाई के नाम पर पहचान हो दुनियां मैं नाम हो, क्या ये सोच सही है, क्या इस सोच ओर कार्यवाही से मेरा देश आगे बढ़ेगा, किसको इसका फ़ायदा मिलेगा ?

आईये इन मुद्दों पर फिर से सोचते हैं कि पढ़ाई लिखाई से किसको क्या मिलेगा !

मान लो मैं अपनी क़ौम ओर क़बीले की बात करूं तब मेरे क़बीले का काम औज़ार ओर हथियार बनाने के साथ खेतीबाड़ी करना भी है, मेरे क़बीले के लोग जिनको आज सैफ़ी यानि लोहे ओर लकड़ी के काम करने वालों के रूप मैं जाना जाता है, सैफ़ी क़बीले के लोग बहुत ही मिलनसार होने के साथ दयालु भी होते हैं, सैफ़ी को पैदाईशी इंजिनियर भी कहा जाता है, कितना भी मुश्किल काम हो ये चुटकियों मैं पूरा करने का जज़्बा अपने हुनर के साथ करने का रखता है !

अब मान लो सैफ़ी क़बीला या बाकी काम ओर मज़दूरी करने वाला समाज अपने बच्चों को सौ फ़ीसद पढ़ाई के क्षेत्र मैं डाल दे तब जो काम ये लोग करते हैं उनको कौन करेगा, कैसे भारत के किसान ओर मज़दूर की समस्याऐं पूरी होंगी, कैसे खेतों मैं अनाज उगाया जायेगा, कैसे इंसानी ज़रूरतों के लिए काम करने वाले मज़दूर पैदा होंगे, क्या बच्चा पढ़ लिखकर वो सब फिर से कर पायेगा ?

नहीं कर पायेगा ओर ना ही सरकार आज इनकी मदद कर रही है ओर ना ही कल कोई मदद कर पायेगी तब देश की हालत बेइंतहा ख़राब होगी, आज भी देश मैं पढ़े लिखे बेरोज़गारों की बड़ी तादाद है, लाखों घर अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के चक्कर मैं अपना सब कुछ दाव पर लगाकर अपने बेटे को रोज़गार ना मिलने पर तबाह ओर बर्बाद कर चुके हैं.

ओर जबजब सरकार ने विदेशों से मुकाबला करते हुए विदेशी नीति को भारत पर जबरन थोपा है तब तब भारत के नागरिकों को उसका उल्टा परिणाम मिला है, कैसे आईये आपको समझाते ओर दिखाते हैं ?

देश मैं जब से मशीनी करण हुआ है तब से देश की हालत अंदर से सुधरने के बजाये बिगड़ी है क्यूंकि मशीनों ने भारत से रोज़गार छीनने के साथ अपने कामों को कभी भी पूरी तरहां पूरी ईमानदारी से अंजाम नहीं दिया है ?

सफ़ाई पर हम सबसे पहले आते हैं ?
पहले नगरपालिकाओं मैं सफ़ाई कर्मियों की भर्ती इलाकों मैं सफ़ाई के लिहाज़ से हुआ करती थी, आज जब से नगरपालिकाओं मैं मशीने जेसीबी ट्रेक्टरों ने काम करना शुरू किया है तब ही से देश के शहरों मैं गंदगी के ढेर लगने शुरू हुए हैं, जानते हैं क्यूं ?

क्यूंकि मशीनें अपना काम उस तरहां नहीं करती जिस तरहां पहले सफ़ाई कर्मचारी किया करते थे ओर ना ही मशीनें उस जगह पहुंच पाती हैं जहां सफ़ाई कर्मचारी पहुंच जाया करते थे, वहीं मशीनों ने सफ़ाई कर्मचारियों को भी लापरवाह ओर नकारा बना दिया है, पहले सफ़ाई कर्मचारियों की पोस्ट के लिए मारामारी रहती थी ओर ये लोग दिलसे काम किया करते थे लेकिन आज हालात आपके सामने हैं ?

अब आते हैं देश की दो सबसे बड़ी ज़रूरतों पर यानि किसान ओर मज़दूरी पर ये ही दोनों देश की सबसे बड़ी ताक़त हैं, इन्हीं के भरोसे देश चल रहा है ओर आज सबसे कड़वा सच भी यही है कि देश का किसान ओर मज़दूर दोनों ही परेशान हैं, आज किसान ओर मज़दूरों के बेटे अपने पुश्तैनी काम को करने के लिए तैयार नहीं हैं, लाखों किसान अपने पैरों पर ख़ुद कुल्हाड़ी मार चुके हैं, हज़ारों परेशान आकर ख़ुदकुशी कर चुके हैं जानते हैं क्यूं ?

क्यूंकि उन्होंने अपनी औलाद को पढ़ा लिखाकर बड़ा अफ़सर या सरकारी कर्मचारी बनाने के लिए अपनी मेहनत ओर खेतों को गिरवी रखकर बैंकों साहुकारों से इस उम्मीद पर कर्ज़ा ले लिया कि पढ़कर जब बेटा बड़ा बनेगा तब वो सबकुछ ठीक कर देगा, लेकिन उसके सभी सपने तब चकनाचूर हो गये जब वो पढ़ लिखने के बाद आज भी दरदर की ठोकरें खा रहा है, पढ़ाई लिखाई ज़्यादा करने की वजह से अब खेती ओर मज़दूरी करते मैं उसको शर्म आती है, बूढ़े मां बाप की हड्डियों मैं अब इतना दम नहीं कि वो खेती या मज़दूरी कर सकें, तब आज घर मैं खाने के लाले पड़े हैं !

मेरे कहने का मतलब ये भी नहीं है कि आप अपनी औलाद को बिल्कुल ना पढ़ाये या सरकार पढ़ाई की योजनाओं को बंद कर दे, नहीं बिल्कुल नहीं मेरे कहने का मतलब ये है कि जिस तरहां से आज हमारी पीढ़ी को बड़े सपने दिखाकर पढ़ाई के संस्थान लूट रहे हैं आज पढ़ाई के मंदिर लूट के अडडे बन चुके हैं वो बंद होने चाहिए.

पढ़ाई लिखाई इतनी हो जितनी एक आदमी को अपने कारोबार या आपसी बोलचाल के लिए ज़रूरी है, अंग्रेजों का मुकाबला पढ़ाई मैं करने हमारी सरकार की बेवकूफी है, मशीनी करण भी जहां विदेशियों की ज़रूरत है वहीं हमारी तबाही है क्यूं, क्यूंकि विदेशियों की आबादी हमारे मुल्क की आबादी के मुकाबले कुछ भी नहीं है, दूसरे जिसको हम पढ़ाई का आधार मानते हैं अंग्रेजी ? अरे भाई वो उनकी मादरे ज़ुबान है !

मेरा सरकार से अनुरोध है कि वो अपने देश की शिक्षा के तरीके को बदले, कोर्स मैं बदलाव हो पढ़ाई ऐसी हो जिससे पढ़ने वाला अपने पुश्तैनी काम से दूर ना जाकर उसको बढ़ावा दे सारे ही अगर इंजीनियर बन जायें या डाक्टर बन जायें तब मज़दूरी कौन करेगा, क्या मेरे देश के सभी पढ़े लिखों को रोज़गार मिल गया ???

जवाब किसी के पास हो तो बतायें ?

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