Tuesday, 5 December 2017

सवाल-बढई में और सैफी में क्या फर्क है. नज़र मौहम्मद

सवाल कुछ अधूरा सा लगा माज़रत के साथ जवाब देने की कोशिश कर रहा हुँ.
लोहार ओर बढ़ई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं कहते हैं ना एक मां के पेट से पैदा हुए मगर रास्ता अलग अलग चुन लिया, जैसे सभी जानते हैं कि बढ़ई का काम लकड़ी से बनने वाली चीज़ों से ताल्लुक रखता है ओर लोहार लोहे से काम करने वाले होते है.

सैफ़ी नाम भी दोनों को एक करने की गरज से वजूद मैं लाया
गया वरना एक वक़्त ऐसा आ गया था जब दोनों भाई अपने पेशों की वजह से सरकार ने अलग करने की नाकाम कोशिश की थी तब कुछ दानिशवरों ने फ़िक्र करके बड़ी मेहनत के बाद दोनों को एक सैफ़ी नाम के धागे मैं पिरोकर एक किया ओर यही वजह है आज हम सैफ़ी नाम के साथ एक हैं.
लेकिन आपका सवाल ये नहीं है जो मैने बताया है आपका कहने का मतलब है बढ़ई ओर लोहार की सोच ओर मेजबानी मैं क्या फ़र्क है सही कह रहा हुँ ना मैं नज़र साहब ?
अगर ईमानदारी से हां तब मैं आपको बता दूँ दोनो पेशेवरों की सोच मैं ज़मीन ओर आसमान का फ़र्क है.
लोहार एक मज़बूत सोच वाला बहुत मेहनतकश होता है जो लोहे के गरम होने का इंतज़ार बड़े इत्मिनान से गर्मी मैं गरमी को बर्दाश्त करते हुए करता है ओर गरम होने पर चोट मारकर उसको वो शक्ल देता है जो वो बनाना चाहता है, जबकि लोहे की बहुत सी किस्मे होती हैं लेकिन लोहार सबकी किस्म पहचान कर उसी हिसाब से गरम करता है ओर लोहा भी लोहार के इशारे पर ही अपनी ताक़त को भूल नरम होकर अपनी शक्ल मैं आने के लिए तैयार रहता है, यही हुनर लोहार के अंदर भी गहराई तक उतर जाता है ओर वो मानने वाला बन जाता है.
वहीं बढ़ई का काम करने वाले मेरे अज़ीज़ साथी अपने हुनर से गीली ओर सूखी दोनों लकड़ियों को काबू मैं करने का हुनर रखते है ओर बहुत ही तेज़ तर्रार होते हैं, क्यूंकि लकड़ियों मैं बहुत किस्म की लकड़ियां होती हैं, ओर हर लकड़ी का एक अलग मिजाज़ होता है कभी कभी लकड़ी अपने मिजाज़ से अलग रंग दिखाती है जिसे काबू मैं करने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते है मगर बढ़ई उसके मिजाज़ को बदलता देखने के लिए बैठकर इंतज़ार नहीं करता बल्कि लकड़ी को अकेला धूप मैं सिकने के लिए छोड़कर अपने दूसरे कामों मैं मसरूफ़ रहता है.
ओर जब लकड़ी का मिजाज़ बदल जाता है तब वो उसका इस्तेमाल अपने हिसाब से करता है कभी कभी मिजाज़ को समझने मैं चूक भी हो जाती है ओर लकड़ी अपना असली रूप दिखा बनाई गई चीज़ की शक्ल बिगाड़ कर देती है, तब भी बढ़ई बुराई अपने उपर नहीं आने देता उसका जवाब लकड़ी की ख़ामी बताने के साथ बनवाने वाले की जल्दबाजी बता ख़ुद को साफ़ बरी कराने वाला होता है.
अब फ़र्क की बात करते हैं लोहार एक ठिया बंद इंसान (क़ौम) है, जिसको जो भी कराना है उसे उसके ठिये यानि दुकान पर जाना होगा ओर तब लोहार को मेज़बानी का मौका मिलता है अपने दरवाज़े पर, जबकि बढ़ई का काम करने वाले ठिया बंदी के साथ दरवाज़ों पर पहुंचकर काम को देखते ओर करते हैं तब वो मेजबानी का मौक़ा गवां कर ख़ुद एक मेहमान बन जाते हैं यानि सामने वाला मेजबान ओर ख़ुद मेहमान तब ऐसे मैं लोहार जैसा की ऊपर लिखा गया है मानने वाला होता है जबकि बढ़ई के अंदर आज भी मनवाने वाले का ही दिमाग है वो मानने वाला नहीं बन पाता बस यही फ़र्क है सैफ़ी ओर बढ़ई मैं.
आपके सवाल को अधूरा मैने इसलिए कहा क्यूंकि आपने खुलकर लोहार बढ़ई ना लिखकर सैफ़ी लोहार के लिए लिखा ओर बढ़ई नाम तो सामने मौजूद ही.
लिखने मैं कोई चूक हुई हो तो सभी से मांफ़ी चाहुँगा उम्मीद है आप मुझे माँफ़ करेंगे.
आपका ख़ादिम 
एस एम फ़रीद भारतीय

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