Tuesday, 15 October 2019

बादशाह सलाउद्दीन अय्यूबी जिन्होंने ईसाईयों से जेरुशलम छीना, मगर समान जीने का हक़ भी दिया...?

एस एम फ़रीद भारतीय
जहां एक ओर साम्राज्यवाद का माहौल था तो वहीं, दूसरी तरफ मुस्लिम वास्तुकला ने नई इमारतों को शक्ल दी, अपने साम्राज्य को बढ़ाने के साथ ही बहुत से इस्लामी शासकों ने दरियादिली, बहादुरी की मिसालें भी पेश कीं.

उन्हीं में से एक थे 12वीं सदी के मुस्लिम शासक सलाउद्दीन अय्यूबी, जिसने
ईसाईयों से जेरुशलम छीना और वहां अय्यूबी साम्राज्य की स्थापना की...?
चलिए जानते हैं बादशाह सलाउद्दीन अय्यूबी के बारे में –
बादशाह सलाउद्दीन अय्यूबी ने अपने चाचा से लिया था सैन्य प्रशिक्षण, बात है 1137 ई. को इराक के टिकरित शहर के एक कुर्द सुन्नी सैन्य परिवार में पैदा हुए सलाउद्दीन अय्यूबी की जिनका पूरा नाम सुल्तान अल नासिर सलाहुद्दीन अय्यूबी यूसुफ इब्न अय्यूब था, इन्होंने बचपन में ही काफी महत्वपूर्ण धर्मशास्त्रों की पढ़ाई कर ली थी, इन्होंने कुरान के साथ-साथ खगोल विज्ञान, गणित और कानून की शिक्षा भी हासिल की थी.
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह एक युवा सैनिक के तौर पर राज्य सेना में शामिल हो गए, सलाउद्दीन ने अपने चाचा असद अल दिन शिकखोह के अधीन अपना सैन्य परिक्षण आरंभ कर दिया, उस समय वह असद ज़ेगिद साम्राज्य की सैन्य टुकड़ी के सेनापति थे, अपना परिक्षण पूरा करने के बाद सलाउद्दीन को छोटी मोटी लड़ाईयों में अपना जौहर दिखाने का अवसर मिला, जिसे उसने दोनों हाथों से कबूला.
लड़ाई के दौरान सलाउद्दीन का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा, जिसकी बदौलत आगे चलकर उसे सेना के अभियानों में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाने लगी, जिसे उन्होंने बाखूबी निभाया.
बादशाह सलाउद्दीन अय्यूबी को उनकी काबिलियत ने शहंशाह बनाया, सलाउद्दीन की बहादुरी और युद्ध की समझ को देखते हुए साल 1169 में उन्हें सेनापति नियुक्त कर दिया गया, सलाउद्दीन के चाचा शिकखोह की 1169 ई. में मौत के बाद सलाउद्दीन को काहिरा में फातिमिद राजवंश के खलीफ़ा ने अपना वजीर नियुक्त कर लिया.

कहा जाता है उन्होंने वजीर बनते ही फ़ातिमिद साम्राज्य को कमजोर किया, और फ़ातिमिद की पैदल सेना को ख़त्म कर अपनी स्थिति को मज़बूत कर लिया और आखिरकार 1171 ई. में फ़ातिमिद ख़लीफ़ा को खत्म कर सलाउद्दीन ने बगदाद में सुन्नी ख़लीफ़ा को मान्यता दे दी.
सन 1174 ई में सीरिया के उत्तरी मेसोपोटामिया के सैन्य नेता नूर अल-दीन की मौत के साथ ही वहां सलाउद्दीन का एकछत्र राज कायम हो गया.
इस समय सीरिया पर जेनगिदस का शासन था, मगर राजा की अचानक मौत के बाद गद्दी की जिम्मेदारी जेनगिद के नाबालिग उम्मीदवार के कंधों पर आ गई, ये सलाउद्दीन के लिए एक सुनहरा मौका था, और उसने इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए सीरिया पर अपनी हुकुमत जमा ली.
सलाउद्दीन ने सीरिया पर विजय प्राप्त करने के लिए मिस्र की संपत्ति का उपयोग किया, फिर उत्तरी मेसोपोटामिया जीतने के लिए सीरिया की, और उत्तरी मेसोपोटामिया की संपत्ति को लेवांत तट के ईसाई राज्यों को जीतने में झोंक दिया.
युद्ध में जीती गई संपति का उपयोग कर सलाउद्दीन ने बहुत से स्कूलों, अस्पतालों और संस्थाओं का निर्माण भी करवाया, साथ ही उन्होंने सामाजिक न्याय की भी उचित व्यस्था की.
साल 1174 से लेकर 1187 तक लड़े गए अनेकों युद्धों में एक के बाद एक जीत हासिल करने के बाद सलाउद्दीन का शासन अब अलेप्पो, दमिश्क और मौसूल समेत कई अन्य क्षेत्रों में फैल चुका था.
इन सभी जगहों पर सलाउद्दीन ने अपने रिश्तेदारों को सरकारी पदों पर बहालकर दिया और यहां अय्यूबी साम्राज्य की स्थापना की.
लेकिन सलाउद्दीन का यह शांत शासन अधिक समय तक चल नहीं पाया, क्योंकि इस दौरान ईसाईयों की क्रूसेडर सेना मुस्लिम साम्राज्य को खत्म करने के लिए सलाउद्दीन के समक्ष आ खड़ी हुई, क्रूसेडर सेना यूरोप के उन ईसाईयों की फौज थी, जो दुनिया से मुस्लिमों को खत्म कर देना चाहते थे, लेकिन उनके इस सपने को ख़ाक़ में मिलाने के लिए सलाउद्दीन सामने खड़े हुए थे.
इस दौरान साल 1187 में इस्लामिक और क्रूसेडर फौजों के मध्य हतिन का युद्ध हुआ, इस युद्ध में सलाउद्दीन ने अपनी युद्ध नीति का बखूबी प्रयोग किया और क्रूसेडर सेना को धूल चटाई, हतिन का युद्ध जीतने के बाद सलाउद्दीन के लिए क्रुसेडर शहर जेरुशलम के दरवाजे खुल गए थे, अपनी इस जीत के बाद सलाउद्दीन ने न सिर्फ जेरुशलम बल्कि उसके आसपास के अन्य शहरों को भी अपने कब्जे में ले लिया.
हालांकि अपनी हार के बाद भी क्रूसेडर सेना पीछे नहीं हटी और वह लगातार सलाउद्दीन के खिलाफ युद्ध करती रही, तीसरे युद्ध में क्रूसेडर सेना का नेतृत्व करने इंग्लैंड के राजा रिचर्ड प्रथम खुद आए. जिसके चलते आखिरकार क्रूसेडर सेना ने सलाउद्दीन की फ़ौज को मात दे दी.
युद्ध में हार के बाद सलाउद्दीन ने राजा रिचर्ड के साथ समझौता कर लिया, जिसके तहत वह राजा को इस बात पर मनाने में कामयाब रहे कि जेरुशलम में मुस्लिम समुदाय का प्रभुत्व बरकरार रहे.
जेरुशलम में जब सलाउद्दीन का राज आया, तो वहां रहने वाले ईसाईयों को अपनी मौत का खौफ सताने लगा, उन्हें डर था कि कहीं सलाउद्दीन की फौज उन लोगों की हत्या ना कर दे, हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ और सलाउद्दीन ने अपनी उदारता और एक सच्चा मुस्लिम होने का सबूत देते हुए एक मिसाल कायम की और उन्होंने ना सिर्फ ईसाईयों को खुल कर जीने का हक दिया, बल्कि उन्हें समान हक़ भी दिए.
सलाउद्दीन अय्यूबी की यह उदारता केवल जेरुशलम में रह रहे ईसाइयों तक ही सीमित नहीं थी, साल 1192 में सम्राट रिचर्ड के बीमार होने पर भी उन्होंने आपसी भावना का सम्मान करते हुए खुद के चिकित्सक को राजा का इलाज करने के लिए भेजा, इतना ही नहीं जब युद्ध के दौरान रिचर्ड का घोड़ा मर गया था, तब सलाउद्दीन अय्यूबी व उनकी फौज ने सम्मान पूर्वक रिचर्ड को युद्ध भूमि से बाहर जाने दिया और बाद में उन्हें दो घोड़ों की पेशगी भी दी.
सलाउद्दीन के इस उदार व्यक्तित्व ने क्रूसेडर और मुस्लिम समुदाय के आपसी संबंधों को भी सुधारा, साल 1193 में महज 57 साल की उम्र में सलाउद्दीन अय्यूबी इस दुनिया से रुखसत हो गये, जबकि मरने से पहले उन्होंने मुस्लिम साम्राज्य का काफ़ी हद तक विस्तार कर दिया था.

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