Wednesday, 16 October 2019

NRC आसाम पर डरना बंद कर समझने की कोशिश करें...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर NRC देन कांग्रेस की हिंदू मुस्लिम तड़का लगाकर गोदी मीडिया की मदद से पेश कर रही है भाजपा...?

आजकल पूरे मुल्क मैं एन आर सी को लेकर हाहाकार मचा है, जो इसके बारे
बिल्कुल नहीं जानते वही इसका ढोल ज़्यादा पीटकर देश मैं दहशत का माहौल बना रहे हैं, वहीं एन आर सी की जन्मदाता कांग्रेस, जन्म मैं होने वाले दर्द पर आंख मूंदे अपने किये पर बिलबिला रही है, देश मैं सोशल मीडिया के जरिया भगवा ब्रिगेड बढ़ चढ़कर इसको पेश करने मैं लगे हैं, जबकि असम एन आर सी जैसा माहौल पूरे देश मैं लागू नहीं किया जा सकता, तब चलिए जानते हैं एन आर सी असम क्या है...?
भारत के राष्ट्रीय नागरिक पंजी में उन भारतीय नागरिकों के नाम हैं जो असम में रहते हैं, इसे भारत की जनगणना 1951 के बाद 1951 में तैयार किया गया था, इसे जनगणना के दौरान वर्णित सभी व्यक्तियों के विवरणों के आधार पर तैयार किया गया था, जो लोग असम में बांग्लादेश बनने के पहले (25 मार्च 1971 के पहले) आए है, केवल उन्हें ही भारत का नागरिक माना जाएगा.
असम भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसके पास राष्ट्रीय नागरिक पंजी है, नागरिकता हेतु प्रस्तुत लगभग दो करोड़ से अधिक दावों (इनमें लगभग 38 लाख लोग ऐसे भी थे जिनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर संदेह था) की जाँच पूरी होने के बाद न्यायालय द्वारा एन.आर.सी. के पहले मसौदे को 31 दिसंबर २०१७ तक प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था.
31 दिसंबर 2017 को बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया, कानूनी तौर पर भारत के नागरिक के रूप में पहचान प्राप्त करने हेतु असम में लगभग 3.29 करोड आवेदन प्रस्तुत किये गए थे, जिनमें से कुल 1.9 करोड़ लोगों के नाम को ही इसमें शामिल किया गया है.
असम में नागरिक पंजी को आखिरी बार 1951 में अद्यतन किया गया था, उस समय असम में कुल 80 लाख नागरिकों के नाम प्ंजीकृत किए गये थे.
1979 में अखिल आसाम छात्र संघ (AASU) द्वारा अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग करते हुए एक 6 वर्षीय आन्दोलन चलाया गया था। यह आन्दोलन 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शान्त हुआ था.
कालक्रम क्या क्या हैं...?
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सबसे पहले वर्ष 1951 में तैयार किया गया था.
1979 में अखिल आसाम छात्र संघ (AASU) द्वारा अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग करते हुए एक 6 वर्षीय आन्दोलन चलाया गया था.
15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अखिल असम छात्रसंघ का आन्दोलन शान्त हुआ था.
असम में बांग्लादेशियों की बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर नागरिक सत्यापन की प्रक्रिया दिसंबर, 2013 में शुरू हुई थी, मई, 2015 में असम राज्य के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे.
31 दिसंबर, 2017 को असम सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) मसौदे का पहला संस्करण जारी किया गया.
भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने हेतु 3.29 करोड़ आवेदन प्राप्त हुए थे, इनमें से 1.9 करोड़ लोगों को वैध भारतीय नागरिक माना गया है। शेष 1.39 करोड़ आवेदनों की विभिन्न स्तरों पर जांच जारी थी.
एनआरसी की आवश्यकता क्यों पड़ी?
1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा, जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया था.

वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा.
80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया, AASU के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे.
असम समझौता क्या हुआ...?
15 अगस्त, 1985 को AASU और दूसरे संगठनों तथा भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है.

इस समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले हिंदू- मुसलमानों की पहचान की जानी थी तथा उन्हें राज्य से बाहर किया जाना था.
इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया। इसके अंतर्गत असम के आर्थिक विकास के लिये विशेष पैकेज भी दिया गया.
साथ ही यह फैसला भी किया गया कि असमिया भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिये विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे। असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया.
वर्ष 2005 में सरकार ने 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला किया और तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च, 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से प्रवेश करने वाले लोगों का नाम भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़नशिप में जोड़ा जाएगा.
लेकिन यह विवाद सुलझने की बजाय और अधिक बढ़ता गया तथा मामला कोर्ट पहुँच  गया। इसके बाद साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में नागरिकों के सत्यापन का कार्य शुरू किया गया। इसके लिये पूरे राज्य में कई NRC केंद्र खोले गए। 
नागरिकों के सत्यापन के लिये यह अनिवार्य किया गया कि केवल उन्हें ही भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों। 
नागरिकता की समाप्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ
एनआरसी की सूची जारी होने के बाद लोग स्टेटलेस हो गए हैं, अर्थात् वे किसी भी देश के नागरिक नहीं रहे। ऐसी स्थिति में राज्य में हिंसा का खतरा बना हुआ है.

जो लोग दशकों से असम में रह रहे थे, भारतीय नागरिकता समाप्त होने के बाद वे न तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, न इन्हें किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा और अपनी ही संपत्ति पर भी इनका कोई अधिकार नहीं रहेगा.
जिन लोगों के पास स्वयं की संपत्ति है वे दूसरे लोगों का निशाना बनेंगे.

निष्कर्ष क्या निकला...?
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी स्टेटलेसनेस को ख़त्म करना चाहती है, लेकिन दुनिया में क़रीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिनका कोई देश नहीं। ऐसे में भारत के लिये हालिया स्थिति असहज करने वाली होगी.

नागरिकता के इस मामले ने असम ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बहस छेड़ दी है। असम की राजनीति में यह मुद्दा कई वर्षों से चला आ रहा है, अब आवश्यकता है इस मामले को गंभीरता के साथ सुलझाने की, सरकार वही कर रही है, मगर मिसाल वो बन रही है कि घोड़े के नाल ठोकी जा रही थी और दर्द मेंढ़की के हो रहा था...!
नोट- इस लेख को सरकारी आदेशों और समझौतों की तलाश कर तैयार किया गया है...!

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