"एस एम फ़रीद भारतीय"
सबरीमाला केस ने भारत मैं एक नई बहस छेड़ दी है, क्या केरल भी उत्तर प्रदेश की ही तरहां बनेगा, यहां भी ख़ून ख़राबा मारकाट दंगे भड़काये जायेंगे, जब तक वहां भाजपा
अपने पैर नहीं पसार लेती तब तक सबरीमाला का मामला क्या यूंही लटका रहेगा जैसे उत्तर प्रदेश का अयोध्या मामला भाजपा फ़ुल बहुमत आने तक लटका रहा और अब जब भाजपा पूरे जोश मैं तब फ़ैसला तो हुआ मगर फ़ैसले पर कानून के जानकारों ने ऊंगलियां उठानी शुरू कर दीं.
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी अपना फ़ैसला सुना चुकी है, 11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई, 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी.
उसके बाद 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी, कोर्ट ने साफ़ कहा कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है, यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है, यह स्वीकार्य नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब 18 अक्टूबर 2018 को मंदिर के कपाट खुले, तो तमाम महिलाएं भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए पहुंचीं, उस समय माहौल बेहद तनावभरा था, क्योंकि मंदिर का बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजदू महिलाओं को प्रवेश देने के हक में नहीं था, मंदिर के रास्ते में हिंसा हुई, महिला पत्रकारों पर हमले किए गए, मीडिया की गाड़ियां तोड़ी गईं, पथराव-लाठीचार्ज हुआ और लोगों को गिरफ्तार भी किया गया, महिलाओं को मंदिर से 20 किमी पहले से रोक लिया गया था और बहुत सी महिलाओं को आधे रास्ते से ही लौटा दिया गया था.
क्या वजह ये है, सबरीमाला पर एक नज़र इस तरहां भी डालते हैं...?
केरल में सबरीमाला आंदोलन के दौरान बीजेपी ने काफी मेहनत की, लेकिन केरल की जनता ने भाजपा की मेहनत को नकार जीत कांग्रेस की झोली में डाल दी, कांग्रेस ने अपने घटक दलों के साथ राज्य की 20 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की थी, वजह सबरीमाला मुद्दे को लेकर बहुसंख्यकों में काफी गुस्सा था और इसके साथ ही अल्पसंख्यक भी इस पर एकजुट हो गए, इसी वजह से कांग्रेस को दक्षिण भारत के इस राज्य में बड़ी जीत मिली, वहीं भाजपा को अपनी करारी हार का सामना भी करना पड़ा.
अगर हमारी सोच सही है तब ये नये भारत और न्याय व्यवस्था के लिए एक बड़ा ख़तरा है, क्यूंकि इससे लगता है आज़ाद लोकतांत्रिक भारत को एक धर्म का भारत बनाने की तैयारियां की जा रही हैं, इस दबाव मैं पूरी तो की जा सकती हैं लेकिन भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी, ऐसा करने पर आज़ाद भारत दुनियां से अलग थलग पड़ जायेगा ऐसा मेरा अंदेशा है।
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