Saturday, 7 December 2019

रेड्डी काण्ड में लगे हो, मुजफ्फरपुर बिहार बालिका गृह यौन हिंसा को याद कर लो क्या मिला...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
मुज़फ़्फ़रपुर बिहार यौन हिंसा मामले में सीबीआई ने मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर सहित 21 के खिलाफ विशेष पॉक्सो कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी, चार्जशीट में सभी पर
गंभीर आरोप लगाए थे, लड़कियों को गंदे भोजपुरी गानों पर डांस कराया जाता था, उन्हें नशे के इंजेक्शन और दवा देकर सुला दिया जाता, इसके बाद उनके साथ गलत काम किया जाता था.

सीबीआई के एसपी देवेंद्र सिंह की ओर से पिछले 19 दिसंबर 2018 को विशेष पॉक्सो कोर्ट में सभी 21 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी, सभी को भादवि की धारा 323, 325, 341, 354, 376 सी व 34 एवं पॉक्सो एक्ट 2012 की धारा 04, 06,08, 10, 12 व 17 के तहत आरोपित किया गया है, आरोपों के समर्थन के लिए सीबीआई ने 102 गवाहों के साक्ष्य लिए हैं, इसमें बालिका गृह की पीड़ित 33 लड़कियां शामिल थीं.

इस हिंसा के आरोपी थे ब्रजेश ठाकुर, इंदू कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, किरण कुमारी, रवि कुमार रोशन, विकास कुमार, दिलीप कुमार वर्मा, विजय कुमार तिवारी, गुड्डू कुमार पटेल उर्फ गुड्डू, कृष्ण कुमार राम उर्फ कृष्णा, रोजी रानी, रामानुज ठाकुर उर्फ मामू, रामाशंकर सिंह उर्फ मास्टर साहब उर्फ मास्टर जी, डॉ. अश्विनी उर्फ आसमनी, विक्की , साइस्ता परवीन उर्फ मधु व डॉ.प्रमीला के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी, क्या ये सब सज़ा पा चुके...?

जबकि मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन हिंसा कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने ख़ुद बोला था 'बेहद डरावना और भयावह है ये काण्ड, बिहार सरकार कर क्या रही है, मगर हुआ क्या आज भी ये सवाल बना हुआ है, जबकि इस काण्ड की सुनवाई युद्ध स्तर पर की जानी चाहिए थी वो भी तब जब सीबीआई अपनी तरफ़ से चार्जशीट दाख़िल कर चुकी हो, ये काण्ड देश पर बदनुमा दाग़ था...?'

मानवाधिकारियों को गुर्राने वालो याद करो जब मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के बच्चों ने सुप्रीम कोर्ट के जज को पत्र लिखा था, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस मदन बी लोकुर के नाम लिखे पत्र में उनके बच्चों ने कहा पटियाला जेल में उनके पिता ब्रजेश ठाकुर पर अत्याचार किया जा रहा है.

पत्र में आगे लिखा गया था, कि उनके पिता ब्रजेश ठाकुर को शारीरिक और मानसिक यातना दी जा रही हैं, तब सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत एक मेडिकल बोर्ड बनाकर मामले की जांच के आदेश दिए थे, सुप्रीम कोर्ट ने पटियाला के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने मेडिकल जांच कराने का भी आदेश दिया था, एक सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में मेडिकल रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया था.

अब भूलने की बीमारी से बाहर आकर सोचो  इतनी बड़ी घटना पर सरकार को बस फटकार लगी, कानून के नाम पर समय ओर पैसा बर्बाद किया गया, पीड़ित आज किस हाल में हैं सुना है कुछ तो गायब भी हो चुके हैं, हो सकता है मार दी गई हों, दोषी आज भी ज़िंदा हैं क्यूं...?

ये सवाल बनता है, जवाब है हमको भूलने की बीमारी है, हम पुराने काण्ड को भूल नये काण्ड की जांच ओर मांग करने में लग जाते हैं, यही वजह है हर नया काण्ड पुराना होकर नये के नीचे दब जाता है, कुछ को ख़रीद लिया जाता है ओर कुछ को ना बिकने पर मार दिया जाता है जैसे उन्नाव पीड़ित के साथ हुआ है, शायद हमारी बेबसी की वजह से आगे भी होता रहेगा, हैवान इनाम पाकर मस्त रहेंगे ओर पीड़ित दुनियां से कूच करते जायेंगे...!

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