"एस एम फ़रीद भारतीय"
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानि NRC को असम राज्य में अपडेट किया गया जिसमें लगभग 20 लाख लोगों को भारतीय नागरिकता से वंचित कर दिया गया, इस लेख के ज़रिये आप जानेंगे कि असम के लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए किन-किन दस्कीतावेज़ों की
जरूरत पड़ेगी?
असम में NRC को सबसे पहले 1951 में नागरिकों, उनके घरों और उनकी संपत्तियों को जानने के लिए तैयार किया गया था, असम राज्य में NRC को अपडेट करने की मांग 1975 से ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा उठाई जा रही थी.
असम समझौता क्या है पहले ये जाने (1985) बांग्लादेशी स्वतंत्रता से एक दिन पहले 24 मार्च 1971 की आधी रात को राज्य में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के नाम मतदाता सूची से हटाने और वापस बांग्लादेश भेजने के लिए बनाया गया था, असम की आबादी लगभग 33 मिलियन के करीब है, यह एक मात्र ऐसा राज्य है जिसने NRC को अपडेट किया है, NRC की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की गई थी.
NRC राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के उद्देश्य क्या हैं...?
असम में NRC अपडेट का असल कारण प्रदेश में विदेशी नागरिकों और भारतीय नागरिकों की पहचान करना था, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन जैसे संगठनों और असम के अन्य नागरिकों का दावा है कि बांग्लादेशी प्रवासियों ने उनके रोज़गार के अधिकारों को लूट लिया है और वो राज्य में हो रही आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं, इसलिए इन सभी शरणार्थियों को अब अपने देश भेज दिया जाना चाहिए.
इसी कारण सरकार ने NRC प्रक्रिया पर लगभग 1200 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, इसमें 55000 सरकारी अधिकारी शामिल किये गये थे और पूरी कार्यविधी मे लगभग 64.4 मिलियन दस्तावेजों की जांच की गई, ये जानने के लिए कि असम का नागरिक कौन है (Who is citizen of Assam) 25 मार्च, 1971 से पहले असम में रहने वाले लोग असम के नागरिक माने जाते हैं.
इस प्रदेश में रहने वाले लोगों को सूची (ए) में दिए गए कागजातों में से कोई एक जमा करना था, जबकि इसके अलावा दूसरी सूची (बी) में दिए गए दस्तावेजों को अपने असम के पूर्वजों से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए एक दस्तावेज पेश करना था, जिससे यह माना जा सके कि आपके पूर्वज असमी ही थे.
NRC को कैसे अपडेट किया गया है?
यदि कोई भी असम के नागरिकों की चयनित सूची में अपना नाम देखना चाहता है, तो उसे 25 मार्च, 1971 से पहले राज्य में अपना निवास साबित करने के लिए लिस्ट ए में दिए गए किसी एक दस्ताबेज को NRC फॉर्म के साथ जमा करना था.
यदि कोई ये दावा करता है कि उसके पूर्वज असम के मूल निवासी हैं, इसलिए वह भी असम का निवासी है तो उसे लिस्ट बी में बताये गये दस्कितावेज मे से किसी भी एक दस्तावेज के साथ एक NRC फॉर्म जमा करना था.
लिस्ट ए में मांगे गए मुख्य दस्तावज कुछ इस प्रकार थे...?
1. 25 मार्च 1971 तक इलेक्टोरल रोल
2. 1951 का एन.आर.सी.
3. किराया और किरायेदारी के रिकॉर्ड
4. नागरिकता प्रमाणपत्र
5. स्थायी निवासी प्रमाण पत्र
6.पासपोर्ट
7. बैंक या एलआईसी दस्तावेज
8. स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र
9. शैक्षिक प्रमाण पत्र और अदालत के आदेश रिकॉर्ड
10. शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र
सूची बी में शामिल कुछ मुख्य दस्तावेजों में शामिल थे.
1. कोई भूमि दस्तावेज
2. किसी बोर्ड या विश्वविद्यालय प्रमाण पत्र
3. किसी विभाग का बर्थ सर्टिफिकेट
4. सरकारी बैंक / एलआईसी / पोस्ट ऑफिस रिकॉर्ड
5. सरकारी राशन कार्ड
6. सरकारी मतदाता सूची में नाम
7. या कानूनी रूप से स्वीकार्य अन्य कोई भी दस्तावेज
8. किसी विवाहित महिलाओं के लिए एक सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र
हुआ क्या फाइनल एनआरसी सूची जब जारी हुई, अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गई थी, इस सूची में 19,06,657 लोगों को शामिल नहीं किया गया जबकि 3.11 करोड़ इस नागरिकता सूची में शामिल किये गये हैं, इस सूची में कुल 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था.
अब सवाल क्या सूची से बहिष्करण का मतलब विदेशी घोषित होना था...?
नहीं बिल्कुल नहीं जो लोग सूची से बाहर किए गए हैं, वे उन विदेशी ट्रिब्यूनलों पर आवेदन कर सकते हैं जो 1964 के कानून के तहत अर्ध न्यायिक निकाय हैं, ये लोग सूची जारी होने के 120 दिन के भीतर इन न्यायाधिकरणों से अपील कर सकते हैं.
यदि किसी को विदेशी ट्रिब्यूनल में विदेशी घोषित किया जाता है तो वह उच्च न्यायालयों का रुख कर सकता है, यदि किसी को अदालतों द्वारा विदेशी घोषित किया जाता है तो उसे गिरफ्तार करके नजरबंदी केंद्र में रखा जा सकता है, जुलाई 2019 तक; 1,17,164 व्यक्ति विदेशी घोषित किए गए हैं, जिनमें से 1,145 हिरासत में हैं.
यह थी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बार में पूर्ण जानकारी इसमें हमने NRC के उद्देश्यों, असम की नागरिकता को साबित करने के लिए आवश्यक इसकी प्रक्रिया और दस्तावेजों का वर्णन किया है. यह विषय यूपीएससी और अन्य राज्य सेवा आयोगों के मुख्य परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
आईये भारतीय राष्ट्रीयता और भारतीय नागरिकता के बीच क्या फ़र्क होता है अब इसे जानते हैं...?
राष्ट्रीयता उस स्थान या देश के बारे में बताती हैं जहाँ पर व्यक्ति का जन्म होता है, जबकि नागरिकता सरकार द्वारा प्रदान की जाती है, नागरिकता अधिनियम, 1995 भारत में नागरिकता प्राप्त करने के 5 तरीके बताता है जिसमे जन्म के आधार पर और वंश के आधार पर नागरिकता मुख्य आधार है. आइये इस लेख में राष्ट्रीयता और नागरिकता में अंतर जानते हैं.
अकसर हम लोग राष्ट्रीयता और नागरिकता को एक ही शब्द यानि अल्फ़ाज़ के रूप में इस्तेमाल करते हैं, मगर असल में ये दोनों शब्द अल्फ़ाज़ एक-दूसरे से कई तरह से अलग हैं, हमारा यह लेख इन्ही दो शब्दों अल्फ़ाज़ों के बीच फ़र्क क्या है यही बताने के लिए लिखा गया है.
सबसे पहले समझ लें भारतीय संविधान में नागरिकता से सम्बंधित प्रावधान संविधान के भाग II में अनुच्छेद 5 से 11 तक दिए गए हैं. नागरिकता अधिनियम, 1995 भारत में नागरिकता प्राप्त करने के 5 तरीके बताता है.
1. जन्म के आधार पर
2. वंश के आधार पर
3. पंजीकरण के आधार पर
4. प्राकृतिक रूप से
5. किसी क्षेत्र विशेष के अधिकरण के आधार पर
राष्ट्रीयता की परिभाषा: "किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता से उसकी जन्मभूमि का पता चलता है या यह पता चलता है कि व्यक्ति किस मूल का है." राष्ट्रीयता एक व्यक्ति को कुछ अधिकरों और कर्तव्यों को प्रदान करती है. एक राष्ट्र अपने नागरिकों को विदेशी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है जिसके बदले में वह नागरिकों से यह उम्मीद करता है कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का भी पालन करें.
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुसार, हर संप्रभु देश अपने देश के कानून के अनुसार यह तय कर सकता है कि कौन व्यक्ति उस देश का सदस्य बन सकता है.
नागरिकता की परिभाषा: किसी व्यक्ति को किसी देश की नागरिकता उसे देश की सरकार द्वारा तब दी जाती है जब वह व्यक्ति कानूनी औपचारिकताओं का अनुपालन करता है. इस प्रकार नागरिकता के आधार पर किसी व्यक्ति की जन्म भूमि का पता नही लगाया जा सकता है.
एक बार जब कोई व्यक्ति किसी देश का नागरिक बन जाता है, तो उसे देश के राष्ट्रीय आयोजनों जैसे वोट डालने का अधिकार, नौकरी करने का अधिकार, देश में मकान खरीदने और रहने का अधिकार मिल जाता है, भारतीय संविधान में नागरिकों को अधिकार देने के साथ साथ कुछ कर्तव्यों पर भी जोर दिया गया है जैसे करों का भुगतान, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान, राष्ट्रगान का सम्मान, महिलाओं की अस्मिता की रक्षा और जरुरत पड़ने पर देश की रक्षा के लिए लड़ना इत्यादि.
राष्ट्रीयता और नागरिकता के बीच कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं:
1. राष्ट्रीयता एक व्यक्तिगत सदस्यता है जो कि व्यक्ति को देश में जन्म लेने के साथ ही मिल जाती है. दूसरी ओर नागरिकता राजनीतिक/कानूनी स्थिति है, जो कि किसी व्यक्ति को कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के साथ ही मिल जाती है.
2. राष्ट्रीयता उस स्थान या देश के बारे में बताती हैं जहाँ पर व्यक्ति का जन्म होता है जबकि नागरिकता सरकार द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाती है, जैसे अदनान सामी (गायक) पाकिस्तानी मूल का नागरिक है लेकिन उसे कुछ औपचारिकतायें पूरी करने के कारण भारत की नागरिकता मिल गयी है.
(अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की राष्ट्रीयता भारतीय (माता या पिता किसी एक के भारतीय होने के कारण) है लेकिन वह अमेरिकी नागरिक हैं)
3. राष्ट्रीयता की अवधारणा देशज या जातीय है, जबकि नागरिकता की अवधारणा कानूनी या न्यायिक प्रकृति की है.
4. राष्ट्रीयता को जन्म और विरासत के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जबकि नागरिकता को जन्म, विरासत, प्राकृतिक रूप से और विवाह आदि से आधार पर प्राप्त किया जा सकता है.
5. राष्ट्रीयता को बदला नहीं जा सकता जबकि नागरिकता को बदला जा सकता है क्योंकि एक व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता ले सकता है.
6. एक व्यक्ति के पास राष्ट्रीयता केवल एक देश की हो सकती है जबकि एक व्यक्ति एक से अधिक देशों का नागरिक बन सकता है.
7. राष्ट्रीयता को छीना नही जा सकता है जबकि नागरिकता को छीना जा सकता है.
इसलिए उपर्युक्त बिंदुओं से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राष्ट्रीयता किसी भी व्यक्ति से साथ पूरी जिंदगी के लिए जुड़ जाती है लेकिन नागरिकता को कभी भी बदला जा सकता है.
भारतीय संविधान में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है अर्थात यहाँ पर किसी व्यक्ति को नागरिकता देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है राज्यों को नही जबकि अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है अर्थात वहां पर नागरिकता देने का अधिकार राज्यों के पास भी है.
इसके अलावा भारतीय संविधान में यह प्रावधान भी है कि यदि कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार कर लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः ख़त्म हो जाती है.
वैसे भारत में विदेशियों को भी मौलिक अधिकार प्राप्त हैं क्या हैं वो अधिकार...?
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 के अंतर्गत रखा गया है, इन अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है, ये अधिकार बिना किसी भेदभाव के देश के सभी नागरिकों को प्रदान किये गए हैं, इन अधिकारों के कारण भारतीय संविधान के भाग III को “संविधान का मैग्ना-कार्टा” कहा जाता है.
क्या हैं भारतीय नागरिकों एवं विदेशियों को भारत में प्राप्त मौलिक अधिकार...?
1. धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) कानून के समक्ष समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)
2. सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20)
3. भाषण एवं अभिव्यक्ति, सभा, सम्मलेन, आंदोलन, निवास स्थान एवं व्यवसाय जैसे छः विषयों के लिए स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)
4. अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण (अनुच्छेद 29) प्राथमिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A)
5. अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थान स्थापित करने एवं उसे संचालित करने का अधिकार (अनुच्छेद 30)
नोट- इस लेख के अनेकों माध्यम से तैयार किया गया है...!
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