Wednesday, 26 February 2020

देश का दिल दिल्ली को दहलाने वालो सोचना ज़रूर...?

मगर वक़्त निकालकर सुकुन से बैठकर सोचना किसको क्या मिला...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
अब जब दिल सुकुन से हो तो बैठकर सोचना ज़रूर कि जो किया वो क्यूं किया किसको क्या
मिला, मरने वाले कौन हैं और मारने वाले कौन हैं, मज़े कौन ले रहा है, इसी असल वजह क्या है, क्यूं ये खूनी खेल खेला जाता है...?

इस ख़ूनी खेल का इतिहास कोई नया नहीं है और ऐसा भी नहीं है इसके बाद नहीं होगा, हां हम सब अगर मिलकर इसकी वजह पर ग़ौर करें तब किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं जिनको अपने हक़ के लिए एक होकर सरकार से लड़ना था आज वो आपस में लड़ रहे हैं क्यूं...?

जितने भी दंगाई हैं उनके चेहरे और पहनावे से समझा जा सकता है कि वो किस माली हालत से गुज़र रहे हैं और सबसे बड़ी वजह उनकी यही है जो बहकावे में आते हैं, कहने का मतलब बेरोज़गारी की मार लोगों को गुमराह करने और ऐसी हिंसक ग़ैर कानूनी काम को अंजाम देने के लिए मजबूर करती हैं, बेरोज़गारी इसकी सबसे बड़ी वजह है और यही बेरोज़गार दूसरे रोज़गार वालों को भी तबाह और बर्बाद कर सड़कों पर ले आते हैं, करोड़ों की सम्पत्ति स्वाहा हो जाती है, कामकाजी लोग भी इन दंगों की आग से सड़कों पर आ जाते हैं.

इसीलिए कहा है जिनको अपने हक़ के लिए एक होकर सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ को बुलंद करना था आज वो आपस में एक दूसरे के ख़ून के प्यासे बने हुए हैं, आप लोग देख सकते हैं दंगाईयों की भीड़ ज़्यादातर बेरोज़गारों की होगी, बाकी चंद लोग ही जो होंगे वो धार्मिक उन्माद की ख़ातिर ऐसे कामों को अंजाम देते हैं और वो ये भूल जाते हैं कि दुनियां की बड़ी से बड़ी ताक़त भी किसी धर्म को पूरी ताक़त लगाकर भी नुकसान नहीं पहुंचा सकती है इसका इतिहास भरा पड़ा है।

मगर लोग ये सब भूलकर सामने वाले को अपना दुश्मन मान बैठते हैं और राजनेता उनकी इस बेवकूफ़ी पर अपने कमरों में बैठकर जश्न मनाते हैं वो आपस में चर्चा कर रहे होते हैं देखो बेवकूफ़ों को जिनको अपने हक़ के लिए एक होना था वो आज एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आपस में ख़ून ख़राबा कर रहे हैं.

लेकिन ग़रीबों को लड़ाकर जश्न मनाने वाले भी भूल जाते हैं कि वो भी कोई बड़े अक़्लमंद या महानता का इतिहास नहीं बना रहे हैं, वो भी उसी तरहां के बेवकूफ़ बने हुए हैं जैसा आपस में लड़ने वाले क्यूंकि इससे जिस देश पर वो हुकुमत कर रहे हैं या हुकुमत का सपना देख रहे हैं वही देश इनकी हरकतों से पीछे जा रहा है, वो देश जिसको दुनियां पर हुकुमत करनी थी आज वो देश भी किसी और का किसी ना किसी तरहां गुलाम बना हुआ है.

यहां सवाल पैदा होता है कि बेरोज़गारी तो बेशक इस मामले का सबसे बड़ा पहलू है मगर पुलिस जिसपर कानून को रखाने की जिम्मेदारी है वो क्यूं अपने फ़र्ज़ से पीछे हटे हैं वो क्यूं ऐसी घटनाओं में किसी एक का पक्ष लेते दिखाई देते हैं...?

तब ऐसे लोगों के लिए एक ही जवाब है झूंठ फ़रेब और बेईमानी के साथ लाचारी इनकी बेबसी की वजह है, झूंठ इसलिए कि इन्होंने कानून की कसम जनता की हिफ़ाज़त करने की ली और उस क़सम को तोड़ दिया, फ़रेबी वो हैं जो किसी लालच वश अपने पद का दुरूपयोग कर ख़ुद को गुनाहगार की पंक्ति में खड़ा कर लेते हैं और हमेशा के लिए लाचारी में किसी के ग़ुलाम बन जाते हैं।

चौथी सबसे बड़ी वजह बेईमानी तब ऊंचे पदों पर आसीन लोग जिनको अधिकारी कहा जाता है वो हैं और वो जब बेईमानी का शिकार हो जाते हैं तब वो ऐसे हाथों का खिलौना बन जाते हैं जिन हाथों में उनको हथकड़ी पहनानी चाहिए थी, मगर बेईमानी के एक क़दम ने उनको गुलाम बना दिया, ऐसे लोगों को भी सोचना चाहिए कि जिस परिवार की ख़ातिर वो इस बेईमानी की दलदल में जा धंसा है क्या उसका परिवार उसके गुनाह पर पकड़े जाने पर सज़ा में उसका साथ देगा.
जवाब मिल जायेगा फिर वो क्यूं बेईमान बना बैठकर सोचे...?

जय हिंद जय भारत

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