Thursday, 27 February 2020

अब इस राष्ट्र में आपका लिंग ही आपके राष्ट्रवादी होने की पहचान है...?

दिल्ली दंगा कवर करने गए पत्रकार सुशील मानव ने अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले का हर्फ-दर-हर्फ दर्ज किया है.


सुशील मानव
दिलशाद गार्डेन मेट्रो स्टेशन पर मैं खड़ा था और अपने मित्र का इंतजार कर रहा था. क्योंकि मुझे उन इलाकों में जाना था जहां साधन नहीं जा रहे थे.और बगैर दो
पहिया वाहन के हम अंदरूनी हिस्सों में नहीं जा सकते थे. मेरे एक मित्र हैं अवधू आजाद जो रंगमंच से जुड़े हुए हैं. मैंने उन्हें फोन करके बुलाया कि आप अपनी बाइक लेकर यहां चले आइये. ठीक उसी समय मोबाइल पर मेरी मां का फोन आया. मैं उन्हें अम्मी बोलता हूं.

उन्होंने पूछा कि कहां हो. मैंने बताया कि मैं दिल्ली में हूं. बोलीं कि खाना-वाना खाए. मैंने कहा हां. टीवी में देख रही हूं दिल्ली की हालत बड़ी खराब है. तुम बाहर निकलते हो.मुस्लिम इलाकों में मत जाना. और जाना तो बहुत एहतियात और बहुत सतर्क होकर रहना. मैंने उनको कहा कि टीवी में जो दिखा रहे हैं यह नहीं बता रहे हैं कि कौन किसको मार रहा है और कौन किससे मार खा रहा है. और कैसे-कैसे नारे लग रहे हैं. एक डेढ़ मिनट बात करने के बाद मैंने कहा कि लौट कर मैं आप से बात करता हूं. मैंने उनको समझा कर फोन काट दिया. अवधू भाई आये और फिर उनके साथ बाइक पर बैठकर हम अपने काम पर चल दिए.

पहले हम सीलमपुर गए. वहां से बाबरपुर. फिर मौजपुर पहुंचे. बाबरपुर और मौजपुर एक दूसरे से सटे हुए हैं. बिल्कुल आमने-सामने. जिस जगह पर कपिल मिश्रा ने डीसीपी के साथ खड़ा होकर चेतावनी जारी की थी वहां से मैंने जनचौक के लिए लाइव रिपोर्ट किया. यह स्थान बिल्कुल मेट्रो स्टेशन के पास है. वहां पर बड़ी संख्या में पुलिस लगी हुई है. पुलिस ने दोनों तरफ से बैरिकेड लगा रखा है. फिर वहां से हम नूर इलाही गए. वहां से किसी के मौत की सूचना मिली थी. किसी को कल गोली लगी थी. जिसकी आज मौत हो गयी थी. फिर दोस्त के साथ नूर इलाही पहुंचे. सूचना देने वाले आदमी के साथ ही हम नूर इलाही गए. बड़े-बड़े बुजुर्ग गलियों में बल्ली लगाने के बाद उसे ब्लॉक करके बैठे थे.

खौफ इतना ज्यादा था कि वह किसी अनजान को अंदर घुसने नहीं दे रहे थे. ऐसा उन लोगों ने बाहर के हमलावरों से बचने के लिए किया था. मेरे यह बताने पर कि हम पत्रकार हैं उन्होंने तुरंत गेट खोल दिया और बोला कि आप जाइये. उन्होंने कहा कि यह बाहर से आने वाले दंगाइयों के लिए है. फिर हमने कर्दमपुरी, बाबरपुर, नूर इलाही और मौजपुर के मुस्लिम इलाकों का दौरा किया और वहां एक-एक कर सभी लोगों से बात किया. यहां लोगों ने बेहद सहयोगात्मक तरीके से बात की और हर उस सवाल का जवाब दिया जिसे मैं जानना चाहता था. उनका कहना था कि वो नहीं चाहते कि किसी तरह की हिंसा हो. पुलिस के रवैये को लेकर वह बेहद दुखी थे. उनका कहना था कि अगर पुलिस चाह लेती तो यहां कुछ भी नहीं होता.

फिर वहीं के एक बुजुर्ग ने बताया कि आप मौजपुर की गलियों में जाइये वहां कई बेहद भयंकर घटनाएं हुई हैं. लेकिन न तो मीडिया और न ही किसी दूसरे माध्यम से उनकी खबरें बाहर आ रही हैं. इस पर मैंने उनको भरोसा दिया कि मैं वहां जरूर जाऊंगा और उसकी सच्चाई सामने लाने की कोशिश करूंगा. उसके बाद मैं वापस मौजपुर आया. मौजपुर मेन रोड के जिस स्थान से गली नंबर-7 जुड़ती है उसी कोने में हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या हुई थी. हम उसी गली में घुसे. अवधू भाई बाइक चला रहे थे और मैं पीछे बैठा हुआ था. उसी वक्त जनचौक के लिए मैं फेसबुक लाइव करना शुरू कर दिया.अभी हम लोग गली में 100 मीटर ही घुसे हुए होंगे कि दो लोग आए और उन्होंने पूछना शुरू कर दिया कि आप वीडियो कैसे बना रहे हो.

मैंने बताया कि हम मीडिया से हैं तो वो बोले कि आप कहीं से भी हों. आप मुल्लों के इलाके में नहीं जाते. वहां के वीडियो नहीं बनाते. केवल हमारे इलाके में आते हो और यहीं का वीडियो बनाते हो. उसके बाद उन लोगों ने हमको मारना शुरू कर दिया. फिर उसके बाद हम लोगों को रोड पर पटक दिया.हमसे हमारी आईडी मांगी तो हमने अपनी आईडी और आधार कार्ड दिखाया. उसके बाद भी उन लोगों ने पिटाई जारी रखी. उठने की कोशिश कर रहे थे तो फिर उठा कर पटक दिया. इस दौरान लगातार मेरे चेहरे और सिर को निशाना बनाकर वो लोग पीटते रहे. इस बीच उनकी संख्या बढ़कर 25 के आस-पास हो गयी. उसके पहले रोड पर सन्नाटा था. लेकिन जब मेरी पिटाई शुरू हुई तो अचानक अगल-बगल के लोग अपने-अपने गेट खोलकर इकट्ठा हो गए. उन सभी के हाथों में हथियार था. किसी के हाथ में सरिया था तो किसी ने डंडा लिया हुआ था.

चार-पांच लोगों के पास तमंचा था. उसमें से एक ने तमंचा निकाला और उसमें मेरे सामने ही गोली भरी. और फिर उसको मेरे पेट से सटा दिया. उस समय मैं बता नहीं सकता कि मेरी क्या स्थिति थी? मुझे मां के बोले शब्द याद आ रहे थे. मुझे लगा कि यह जीवन का आखिरी क्षण है और अब मां से कभी मिलना नहीं हो पाएगा. अब सब कुछ खत्म होने जा रहा है. और इसके साथ ही उसने तमंचे को मेरे पेट से सटा दिया. इस बीच मैं लगातार चिल्लाता रहा कि मैं भी हिंदू हूं. जैसे आप हिंदू हो. मैं यहां किसी साजिश के तहत नहीं आया था. हम आप की ख़बर ही वहां देने आए थे. लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी. और पिटाई करते रहे.

फिर उन्होंने हम लोगों से हनुमान चलीसा सुनाने के लिए कहा. उसके कहने पर हमने हनुमान चलीसा सुनाया. उसके बाद एक दूसरा शख्स आया. उसने कहा फिर से बोलो. मैंने फिर से पूरा हनुमान चलीसा सुनाया. उसके बाद उन लोगों ने हमारी और हमारे दोस्ट की पैंट खुलवाई. पैंट खुलवाकर उन लोगों ने दो बार देखा और फिर बोला कि हां ये हिंदू ही है. हमारे हिंदू होने की शिनाख्त पूरी होने के बाद भी उन लोगों ने मारना बंद नहीं किया. उनके द्वारा हमारी पिटाई लगातार जारी थी. वो यह पूछ रहे थे कि यहां क्यों आए थे?

उसके बाद उन लोगों ने मेरे झोले की तलाशी लेनी शुरू कर दी. जिसमें उन्हें एनआरसी विरोधी कुछ डाक्यूमेंट मिले. फिर उन लोगों ने चिल्ला कर बताना शुरू कर दिया कि देखो ये एनआरसी के खिलाफ है. और एनआरसी के खिलाफ लगातार लिख रहा है. इसी बीच उनका कागज लेकर मैं फाड़ दिया और कहा कि जगह-जगह धरनों को कवर करने जाता हूं और वहीं पर लोग अपने डाक्यूमेंट दे देते हैं. और मुझे उन्हें लेना पड़ता है. ये सब वही डाक्यूमेंट हैं.

मैंने उनके हाथ से लेकर तुरंत उसे फाड़ दिया. इस बीच जैसा कि पहले मैंने बताया कि मेन रोड पर बहुत ज्याादा पुलिस लगी हुई थी. और जहां मुझे मारा जा रहा था वह स्थान मेन रोड से तकरीबन 100 मीटर ही दूर था. किसी ने सूचना दी या फिर किस तरह से मेरे लिए बता पाना मुश्किल है.लेकिन दो पुलिस वाले आ गए. वह दिल्ली पुलिस के ही ड्रेस में थे. उन्होंने लोगों से कहा कि इन्हें जाने दो. उनकी शिनाख्त भी पूरी हो गयी थी. उसके बाद भी वो लगातार मारे जा रहे थे.

मेरा मोबाइल भी छीन लिया था. मेरी पाकेट में जो भी पैसे थे उसे निकाल लिए थे. पुलिस ने कहा कि इन्हें जाने दो. उसके बाद उन लोगों ने हमें छोड़ा. दिलचस्प बात यह है कि पुलिस के आने के बाद भी वहां से कोई नहीं भागा. लोग हंसते-मुस्कराते आस-पास ही खड़े रहे. उसके बाद पुलिस ने हम लोगों से कहा कि जाओ. उसके बिल्कुल सामने का इलाका बाबरपुर का है. वहीं एक जनता क्लीनिक है जहां पहुंच कर हम लोगों ने फर्स्ट एड लिया. हालांकि डाक्टर पैसा नहीं ले रहे थे. तभी एक बुजुर्ग वहां आ गए उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं इनका पैसा मैं दे दूंगा. उसके बाद हम लोगों के दिमाग में आया कि एफआईआर करना चाहिए. लेकिन पुलिस की जो भूमिका थी उसको देखकर और फिर इस बात की आशंका के चलते कि कहीं हमलावर फिर से ढूंढते हुए वापस न आ जाएं. हम लोगों को लगा कि रोड पर जाना ठीक नहीं है.

हम गली से ही निकल चलते हैं. फिर इसी मुस्लिम इलाके में लोगों से रास्ता पूछा. कुछ वहां मेकैनिक थे और कुछ आटो ड्राइवर. उन लोगों ने कहा कि आप घबराइये नहीं. आप यहां सुरक्षित हैं. उन लोगों ने पानी पिलाया. उसके बाद हमारे बाइक पर होने के बावजूद वो आटो वाला हमें सीलमपुर तक छोड़ने आया. उसने कहा कि अगर आपको दिक्कत हो तो जहां कहिए वहां तक छोड़ने आएंगे. हमने कहा कि नहीं हम ठीक हैं. फिर वह लौट गया. फिर वहां से निकल कर हम अपने घर चले आए. मेरे सिर में चोट लगी है. हाथ में लगी है. पीठ में लगी है.अवधू आजाद के भी सिर में चोट लगी है.

उनका तो पूरा सिर फट गया था उससे खून बह रहा था. उनका पूरा खून मेरे झोले में लग गया था. मेरी आंख में भी चोट आयी है. कान के ऊपर भी लगा है. आंख में खून आ गया है. बांयीं आंख अच्छी खासी चोटिल हो गयी है. गली नंबर सात को हिंदू बहुल इलाके के तौर पर जाना जाता है. और यहीं पर रतन लाल की मौत हुई थी, एक आईपीएस भी यहीं घायल हुआ था. लिहाजा रतन लाल की मौत और पुलिस पर हमले की यह पूरी घटना जांच का विषय बन जाती है.

(यह रिपोर्ट जनचौक डॉट कॉम पर प्रकाशित हो चुकी है)

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