"एस एम फ़रीद भारतीय"
आज में कुछ नया नहीं कह रहा हुँ बस वो याद दिलाना चाहता हुँ जो भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था, यानि जब सुप्रीम कोर्ट के चार जज जब प्रेस के बहाने जनता के बीच आये थे और शायद तब हम उनकी बात को समझ नहीं पाये, क्यूंकि उनके आने का मक़सद राष्ट्र का कर्ज़ उतारना था जो उतार दिया था शायद उसी वक़्त...? आजादी के बाद देश में जब पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हलचल मचा दी, सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने मीडिया से मुखातिब होकर प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोप लगाए थे. पत्रकारों ने जब पूंछा कि किस मामले को लेकर उन्होंने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा, जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि यह एक केस के असाइनमेंट को लेकर था, फिर यह पूछे जाने पर कि क्या यह सीबीआई जज जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत से जुड़ा मामला है, तब जस्टिस कुरियन ने कहा, 'हां'. इस बीच सीजेआई को लिखा पत्र जज मीडिया को देने वाले हैं, जिससे पूरा मामला स्पष्ट हो सकेगा कि किस मामले को लेकर उनके चीफ जस्टिस से मतभेद हैं. सुप्रीम कोर्ट में नंबर दो के जज माने जाने वाले जस्टिस चेलामेश्वर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, करीब दो महीने पहले हम 4 जजों ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखा और मुलाकात की, हमने उनसे बताया कि जो कुछ भी हो रहा है, वह सही नहीं है, प्रशासन ठीक से नहीं चल रहा है। यह मामला एक केस के असाइनमेंट को लेकर था, उन्होंने कहा कि हालांकि हम चीफ जस्टिस को अपनी बात समझाने में असफल रहे, इसलिए हमने राष्ट्र के समक्ष पूरी बात रखने का फैसला किया. जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा ये प्रेस वार्ता करना इसलिए भी ज़रूरी था क्यूँकी ‘कल को कोई यह न कह दे कि हमने अपनी आत्मा बेच दी है, जब तक इस संस्था को बचाया नहीं जा सकता, लोकतंत्र को नहीं बचाया जा सकता, चीफ जस्टिस पर देश को फैसला करना चाहिए, हम बस देश का क़र्ज़ अदा कर रहे हैं, हम नहीं चाहते कि बीस साल बाद हम पर कोई आरोप लगाए, चेलामेश्नवर ने कहा कि हमने न्यायपालिका की अनियमितताओं के मामले पर चीफ जस्टिस को दो महीने पहले एक चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने बताया कि चार महीने पहले हम सभी चार जजों ने चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था, जो कि प्रशासन के बारे में थे, हमने कुछ मुद्दे उठाए थे, हम उसे सार्वजनिक करेंगे, इस चिट्ठी के सामने आने के बाद ही पता लग सकेगा कि चार वरिष्ठ जजों और चीफ जस्टिस के बीच किन मुद्दों को लेकर मतभेद हैं. पूरी कड़ी में सबसे अहम बात थी जब ये कहा कि "हम बस देश का क़र्ज़ अदा कर रहे हैं". यानि बीते दिनों दिल्ली में जो हुआ अब वो देश पर बोझ नहीं है, उसकी भरपाई जनता को अपनी हिफ़ाज़त ख़ुद करके या अपनी जान देकर अदा करनी होगी, हम तो अपना फ़र्ज़ अदा कर चुके, उसी का नतीजा है जब जनता के हितों की बात कर नेताओं पर लगाम लगाने वाले जस्टिस मुरलीधर साहब को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा भेज दिया, और उनके आदेशों को भी अनदेखा किया गया जो उन्होंने सुनाई की रात को नेताओं के भड़काऊ भाषणों के ख़िलाफ़ रात में ही एफ़आईआर दर्ज कर सुबह उन्हें रिपोर्ट करने को कहा था, बड़ा सवाल है जो कोई नहीं पूंछ रहा कहां गये वो आदेश...? आदेश तो हो चुके थे सुबह रिपोर्ट पेश करनी थी, क्या किसी पोस्ट के तबादला हो जाने पर उस पोस्ट दिये गये आदेश का स्वयं रद्द हो जाते हैं...? नहीं ऐसा नहीं है आदेश वही रहेंगे हां जांच में टाल मटोल या देरी की जा सकती है मगर नहीं यहां दर्जनों मौत और अरबों की सम्पत्ति के नुकसान पर जस्टिस के तबादले के बाद एक लम्बी तारीख़ दे दी जाती है, वो भी सरकार के वकील द्वारा ये कहने पर कि अगर अगर कार्यवाही की तो हालात बिगड़ सकते हैं, तब यहां मुझे एक सुप्रीम जजमैंट की याद ताज़ा हो जाती है जो बाबरी मस्जिद मामले में कल्याण सिंह जी को एक दिन की सज़ा सुनाते वक़्त उस वक़्त की अदालत ने कहे थे, मगर हमको पुराने को भूलने की बीमारी है तभी ये सब हो रहा है और जब तक हम पिछली बातों को याद नहीं रखेंगे होता रहेगा. काश हम आज भी याद रखना शुरू कर दें...! जय हिंद जय भारत
Friday, 28 February 2020
हमें भूलने की बीमारी है ना इसलिए हो रहा है सब...?
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