بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
मुसलमानों पर पूरे दिन में पाँच वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ की गई हैं। इन पाँच वक़्तों में फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा कुछ नफ़्ल नमाज़ें भी साथ में पढ़ी जाती हैं जो अहादीस वग़ैरा से साबित हैं.
पाँचों वक़्त की नमाज़ में पढ़ी जाने वाली रकअत
सुन्नत-ए-मौअक्कदा सुन्नत-ए-ग़ैर मौअक्कदा फ़र्ज़ सुन्नत-ए-मौअक्कदा सुन्नत-ए-मौअक्कदा नफ़्ल वित्र नफ़्ल कुल रकअतें
फ़ज्र मैं 2 फ़र्ज़ – 2 सुन्नत – कुल 4
ज़ुहर मैं 4 सुन्नत – 4 फ़र्ज़ 2 सुन्नत – 2 नफ़्ल – कुल 12
अस्र – 4 फ़र्ज़ 4 सुन्नत – कुल 8
मग़रिब – 3 फ़र्ज़ 2 सुन्नत – 2 नफ़्ल – कुल 7
इशा – 4 सुन्नत 4 फ़र्ज़ 2 सुन्नत– 2 नफ़्ल 3 वित्र 2 नफ़्ल कुल 17
जुमा 4 सुन्नत– 2 फ़र्ज़ 4 सुन्नत 2 सुन्नत 2 नफ़्ल – कुल 14
इन वक़्तों पढ़ी जाने वाली अलग-अलग नमाज़ों में फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत-ए-मौअक्कदा, सुन्नत-ए-ग़ैरमौअक्कदा और नफ़्ल शामिल हैं इनके बारे में ज़रूरी जानकारी इस तरह हैं-
1. फ़र्ज़ः–
नमाज़ों में सबसे पहले और ज़रूरी फ़र्ज़ नमाज़ है। यह किसी भी हालत में माफ़ नहीं हैं चाहे कोई बीमार हो, सफ़र में हो या कोई और मजबूरी हो, लेकिन अगर मजबूरी की वजह से मुक़र्रर वक़्त में नमाज़ अदा नहीं कर सका तो बाद में क़ज़ा पढ़ी जायेगी, बिना किसी शरई मजबूरी के नमाज़ क़ज़ा करने वालों के लिये भी बहुत सख़्त सज़ाएं अहादीस में बयान की गई हैं और इसका छोड़ना तो कुफ़्र तक ले जाता है। पूरे दिन में पाँच वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ हैं। इनकी रकअतें इस तरह हैं-
फ़ज्र की दो (2) रकअत।
ज़ुहर की चार (4) रकअत।
अस्र की चार (4) रकअत।
मग़रिब की तीन (3) रकअत।
और इशा की चार (4) रकअत हैं।
2. वाजिबः–
फ़र्ज़ के बाद सबसे ज़्यादा अहमियत वाजिब नमाज़ की है। रोज़ाना पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में वित्र की नमाज़ वाजिब है। वित्र के अलावा ईदैन की नमाज़ें भी वाजिब हैं । वित्र पढ़ने का सही वक़्त तो रात का पिछला पहर है, लेकिन हमारे प्यारे नबी گ ने उम्मत की आसानी के लिये वित्र को इशा के बाद पढ़ने का हुक्म दिया। आप گ का फ़रमान है-
जिसे अन्देशा हो कि पिछली (देर) रात में न उठेगा वह अव्वल वक़्त में पढ़ ले और जिसे उम्मीद है कि पिछले को उठेगा वह पिछली रात में पढ़े कि आख़िर शब की नमाज़ मशहूद है यानि उसमें मलाइका-ए-रहमत हाज़िर होते हैं और यह अफ़ज़ल है।
(मुस्लिम, तिर्मिज़ी व इब्ने माजा)
वित्र पढ़ने का तरीक़ा और ज़रूरी मसाइल
वित्र की नमाज़ बैठ कर या सवारी पर बिना मजबूरी के नही पढ़ सकते।
नमाज़े वित्र तीन रकअत है और इसमें क़ादा-ए-ऊला वाजिब है और क़ादा-ए-ऊला में सिर्फ़ अत्तहीय्यात पढ़कर खड़ा हो जाए न दुरूद पढ़े न सलाम फेरे जैसे मग़रिब में करते हैं उसी तरह करे और अगर क़ादा-ए-ऊला में भूलकर खड़ा हो गया तो लौटने की इजाज़त नहीं बल्कि सजदा-ए-सहव करे।
वित्र की तीनों रकअतों में क़िरात फ़र्ज़ है और हर एक में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह मिलाना वाजिब है।
तीसरी रकअत में क़िरात से फ़ारिग़ होकर रुकू से पहले कानों तक हाथ उठा कर अल्लाहु अकबर कहे जैसे तकबीरे तहरीमा में करते हैं फिर हाथ बांध ले और दुआ-ए-क़ुनूत पढ़ें।
दुआ-ए-क़ुनूत का पढ़ना वाजिब है और उसमें किसी ख़ास दुआ का पढ़ना ज़रूरी नहीं बेहतर वह दुआएं हैं जो नबी-ए-करीम گ से साबित हैं।
-दुआ-ए-क़ुनूत-
اَللَّھُمَّ اِنَّا نَسْتَعِیْنُكَ وَ نَسْتَغْفِرُكَ وَ نُؤۡمِنُ بِكَ وَ نَتَوَكَّلُ عَلَیۡکَ وَ نُثْنِیْ عَلَیْكَ الْخَیْرَ
وَ نَشْكُرُكَ وَلَا نَكْفُرُكَ وَنَخۡلَعُ وَ نَتْرُكُ مَنْ یَّفْجُرُكَؕ اَللَّھُمَّ اِیَّاكَ نَعْبُدُ وَلَکَ نُصَلِّیۡ وَ نَسۡجُدُ
وَاِلَیۡکَ نَسۡعٰی وَنَحۡفِدُ وَ نَرْجُوْا رَحْمَتَكَ وَ نَخۡشٰى عَذَابَكَ اِنَّ عَذَابَكَ بِالْكُفَّارِ مُلْحِقٌؕ
तर्जुमाः- इलाही हम तुझसे मदद तलब करते हैं और मग़फ़िरत चाहते हैं और तुझ पर ईमान लाते हैं और तुझ पर तवक्कुल करते हैं और हर भलाई के साथ तेरी सना करते हैं और हम तेरा शुक्र करते हैं नाशुक्री नहीं करते और हम जुदा होते हैं और उस शख़्स को छोड़ते हैं जो तेरा गुनाह करे। ऐ अल्लाह हम तेरी ही इबादत करते हैं और तेरे ही लिए नमाज़ पढ़ते हैं और सजदा करते हैं और तेरी ही तरफ़ दौड़ते और सई करते हैं और तेरी रहमत के उम्मीदवार हैं और तेरे अज़ाब से डरते हैं बेशक तेरा अज़ाब काफ़िरों को पहुँचने वाला है।
• दुआ-ए-क़ुनूत के बाद दुरूद शरीफ़ पढ़ना बेहतर है।
• दुआ-ए-क़ुनूत आहिस्ता पढ़े चाहे इमाम हो या मुक़तदी या फिर अकेले नमाज़ पढ़ने वाला।
• जो दुआ-ए-क़ुनूत न पढ़ सके यह पढ़े:-
ؕاَللّٰھُمَّ رَبَّنَا اٰتِنَا فِیۡ الدُّنۡیَا حَسَنَۃً وَّ فَیۡ الۡاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّقِنَا عَذَابَ النَّارِ
(ऐ हमारे परवरदिगार तू हमको दुनिया में भलाई दे और आख़िरत में भलाई दे और हमको जहन्नम के अज़ाब से बचा।)
रमज़ान शरीफ़ के अलावा और दिनों में वित्र जमाअत से न पढ़ें।
वित्र का सलाम फेरकर तीन बार ‘‘सुब्हानल मलिकिल क़ुद्दूस’’ कहना सुन्नत ।
वित्र के बाद दो रकअत नफ़्ल पढ़ना बेहतर है।
वित्र की क़ज़ा भी वाजिब है चाहे जितना अरसा (Period) गुज़र जाये।
3. सुन्नत-ए-मौअक्कदाः-
नमाज़ में सुन्नत-ए-मौअक्कदा की भी शरीयत में बहुत अहमियत बताई गई है इसको एक बार छोड़ने वाला मलामत के क़ाबिल है और अगर कोई इसको छोड़ने की आदत बना ले तो वह फ़ासिक़ है और इसका सख़्त अज़ाब है। रोज़ाना पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में सुन्नत-ए-मौअक्कदा की रकअतें इस तरह हैं –
फ़ज्र में दो (2) रकअत फ़र्ज़ से पहले।
ज़ुहर में चार (4) रकअत फ़र्ज़ से पहले और दो (2) रकअत फ़र्ज़ के बाद।
मग़रिब में दो (2) रकअत फ़र्ज़ के बाद।
इशा में दो (2) रकअत फ़र्ज़ के बाद।
जुमे के दिन चार (4) जुमे से पहले और जुमे बाद पहले चार (4) फिर दो (2)
इसके अलावा रमज़ान में पढ़ी जाने वाली बीस रकअत नमाज़े तरावीह भी सुन्नत-ए-मौअक्कदा है ।
नोटः– सुन्नत-ए-मौअक्कदा जो चार रकअत वाली हैं उनको फ़र्ज़ नमाज़ की तरह ही पढें लेकिन तीसरी और चौथी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह मिलायें फिर रुकू में जायें।
4. सुन्नत-ए-ग़ैरमौअक्कदाः-
सुन्नतों की दूसरी क़िस्म ग़ैर मौअक्कदा है। शरीयत के मुताबिक़ इनको पढ़ना बेहतर और मुस्तहब है लेकिन इसके बारे में कोई ताकीद नहीं आई हैं।
चार रकअत वाले नवाफ़िल और ग़ैर मौअक्कदा के क़ादा-ए-ऊला में (दूसरी रकअत में अतह्यात के बाद) भी दुरूद शरीफ़ पढ़ें।
तीसरी रकअत में पहले सना यानि ‘सुब्हाना कल्लाहुम्मा’ ओैर तऊज़ यानि ‘अऊज़ुबिल्लाहि’ भी पढ़े।
रोज़ाना पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में सुन्नत-ए-ग़ैर मौअक्कदा की रकअतें इस तरह हैं –
अस्र में चार (4) रकअत फ़र्ज़ से पहले।
इशा में चार (4) रकअत फ़र्ज़ से पहले।
नफ़्लः–
आमतौर पर सुन्नतों को भी नफ़्ल ही बोला जाता है और इसके ग़ैर को भी नफ़्ल कहते हैं। लेकिन कुछ वक़्तों में फ़र्ज़ और सुन्नतों के अलावा नफ़्ल भी पढ़े जाते हैं और इन वक़्तों के अलावा कुछ ख़ास नफ़्ली नमाज़ें अलग-अलग वक़्तों में पढ़ी जाती हैं जिनकी अपनी अलग अहमियत और फ़ज़ीलत है।
रोज़ाना पढ़ी जाने वाली नफ़्ल नमाज़ें इस तरह हैं –
ज़ुहर में दो (2) रकअत फ़र्ज़ और सुन्नतों के बाद।
मग़रिब में दो (2) रकअत फ़र्ज़ और सुन्नतों के बाद।
इशा में दो (2) रकअत फ़र्ज़ और सुन्नतों के बाद और दो (2) रकअत वित्र के बाद।
जुमे के दिन दो (2) रकअत फ़र्ज़ और सुन्नतों के बाद।
ख़ास वक़्त में पढ़ी जाने वाली नफ़्ल नमाज़ें –
इशराक़:- दो (2) रकअत सूरज निकलने के बीस मिनट बाद।
चाश्त:- कम से कम दो (2) या ज़्यादा से ज़्यादा बारह (12) रकअतें सूरज के बुलन्द होने से ज़वाल के दरमियान (लगभग सुबह 9 बजे से 11:15 तक)
अव्वाबीनः-मग़रिब के बाद छः (6) रकअत। 2-2 रकअत करके पढ़ना अफ़ज़ल है।
सलातुल लैल:- रात में बाद नमाज़े इशा जो नवाफ़िल पढ़े जायें उनको सलातुल लैल कहते हैं।
तहज्जुद:- इशा के बाद रात में सो कर उठने के बाद कम से कम दो (2) रकअत हैं और हुज़ूर گ से आठ (8) रकअत तक साबित हैं। सोने से पहले जो कुछ पढ़ीं वह तहज्जुद नहीं।
तहिय्यतुल मस्जिद:- मस्जिद में आने पर दो (2) रकअत नमाज़ पढ़ना सुन्नत है, बल्कि बेहतर चार हैं।
तहिय्यतुल ग़ुस्ल/वुज़ूः– ग़ुस्ल या वुज़ू के बाद भी दो (2) रकअत नमाज़ मुस्तहब है।
नमाज़े सफ़र:– सफ़र में जाते वक़्त दो (2) रकअत अपने घर पर पढ़कर जाएं।
नमाज़ वापसी-ए-सफ़र:– सफ़र से वापस होकर दो (2) रकअत मस्जिद में अदा करें।
ईदैन और पन्द्रह शाबान की रात और रमज़ान की आख़िरी दस रातों और ज़िलहिज्ज की पहली दस रातों में शब बेदारी यानि रात में इबादत के लिए जागना मुस्तहब है, पूरी रात न हो सके तो आधी रात से ज़्यादा हिस्से में इबादत भी शब बेदारी है।
सलातुल तस्बीह:- इस नमाज़ में बेइन्तिहा सवाब है। आप گ ने फ़रमाया अगर तुमसे हो सके कि हर रोज़ एक बार पढ़ो तो करो और अगर रोज़ न करो तो हर जुमे में एक बार और यह भी न करो तो हर महीने में एक बार और यह भी न करो तो साल में एक बार और अगर यह भी न हो सके तो कम से कम उम्र में एक बार पढ़ लो । इसकी चार रकअत हैं एक सलाम से पढ़ी जाती हैं और हर रकअत में 75 बार तस्बीह “सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि व ला इलाहा इल्ललाहु वल्लाहु अकबर”
इस तरह पढ़ें कि-
सना के बाद पन्द्रह (15) बार,
सूरए फ़ातिहा के बाद दस (10) बार,
सूरह पढ़कर दस (10) बार,
रुकू में दस(10) बार,
रुकू से खड़े होने के बाद दस (10) बार,
सजदे में दस (10) बार,
सजदे के बाद बैठकर दस (10) बार
दूसरे सजदे में दस (10) बार पढ़ें।
इसी तरह चारों रकअत पढ़ें। तस्बीह उंगलियों पर न गिने बल्कि हो सके तो दिल में गिनें वरना उंगलियाँ दबाकर। हर ग़ैर मकरूह वक़्त में यह नमाज़ पढ़ सकते हैं।
सुन्नत और नवाफ़िल के ज़रूरी मसाइल
सुन्नतों में सबसे बढ़कर सुन्नते फ़ज्र है यहाँ तक कि कुछ तो इसको वाजिब कहते हैं ।इसके जाइज़ होने का इन्कार अगर कोई शक या जहालत की वजह से करे तो कुफ़्र का ख़ौफ़ है और अगर जानते हुए बिना शुबहा करे तो काफ़िर है।
फ़ज्र की सुन्नतें बिना मजबूरी के न बैठ कर हो सकती हैं, न सवारी पर, न चलती गाड़ी पर।
फ़ज्र की नमाज़ क़ज़ा हो गई और ज़वाल से पहले पढ़ ली तो सुन्नतें भी पढ़ें वरना नहीं ।फ़ज्र के अलावा और सुन्नतें क़ज़ा हो गईं तो उनकी क़ज़ा नहीं।
ज़ुहर या जुमे के पहले की सुन्नतें छूट गईं और फ़र्ज़ पढ़ लिए तो अगर वक़्त बाक़ी है फ़र्ज़ के बाद पढ़ें और अफ़ज़ल यह कि बाद वाली सुन्नतें पढ़कर इनको पढ़े।
फ़ज्र की सुन्नत क़ज़ा हो गई और फ़र्ज़ पढ़ लिए तो अब सुन्नतों की क़ज़ा नहीं है लेकिन इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं कि तुलू-ए-आफ़ताब के बाद पढ़ लें तो बेहतर है। लेकिन तुलू से पहले पढ़ना बिल्कुल मना है चाहे फ़ज्र का वक़्त अभी बाक़ी हो। अक्सर लोग फ़र्ज़ के फ़ौरन बाद पढ़ लेते हैं यह नाजाइज़ है।
जमाअत शुरू होने के बाद किसी नफ़्ल का शुरू करना जाइज़ नहीं सिवा सुन्नते फ़ज्र के अगर यह जाने कि सुन्नत पढ़ने के बाद जमाअत मिल जाएगी चाहे क़ादा ही में शामिल होगा तो सुन्नत पढ़ ले मगर सफ़ के बराबर पढ़ना जाइज़ नहीं।
इशा व अस्र के पहले और इशा के बाद चार-चार रकअतें एक सलाम से पढ़ना मुस्तहब है।
नफ़्ल नमाज़ मन्नत मान कर पढ़ना बग़ैर मन्नत के पढ़ने से बेहतर है जबकि मन्नत किसी शर्त के साथ हो मसलन फ़लाँ बीमार सही हो जाएगा तो इतनी नमाज़ पढ़ूँगा और सुन्नतों में मन्नत न मानना अफ़ज़ल है।
मन्नत मानी कि आज दो रकअत पढ़ेगा और आज न पढ़ी तो इसकी कज़ा नहीं बल्कि कफ़्फ़ारा देना होगा। इसका कफ़्फ़ारा वही है जो क़सम तोड़ने का है यानि एक ग़ुलाम आज़ाद करना या दस मिस्कीनों को दोनों वक़्त पेट भर कर खाना खिलाना या कपड़ा देना या तीन रोज़े रखना।
दिन के नफ़्ल में एक सलाम के साथ चार रकअत से ज़्यादा और रात में आठ रकअत से ज़्यादा पढ़ना मकरूह है और अफ़ज़ल यह है कि दिन हो या रात हो चार-चार रकअत पर सलाम फेरें।
नफ़्ल नमाज़ घर में पढ़ना अफ़ज़ल है मगर तरावीह, तहिय्यतुल वुज़ू और सफ़र से वापसी के बाद दो नफ़्ल मस्जिद में पढ़ना बेहतर है।
सुन्नतों और नफ़्ल की हर रकअत में इमाम और अकेला पढ़ने वाले पर क़िरात फ़र्ज़ है।
नफ़्ल नमाज़ क़सदन शुरू करने से वाजिब हो जाती है कि अगर तोड़ देगा तो क़ज़ा पढ़ना होगी।
खड़े होकर पढ़ने की क़ुदरत हो जब भी बैठ कर नफ़्ल पढ़ सकते हैं मगर खड़े होकर पढ़ना अफ़ज़ल है।
नफ़्ल बैठ कर पढ़ें तो इस तरह बैठे जैसे तशह्हुद (अत्तहीय्यात) में बैठा करते हैं मगर क़िरात की हालत में नाफ़ के नीचे हाथ बांधे रहें जैसे क़ियाम में बांधते हैं।
अल्लाह हमको समझने और हक़ अदा करने मैं आसानी फ़रमाये आमीन.
ज्ज़ाक अल्लाहु ख़ैर
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