Thursday, 23 June 2022

तुर्कीय के बड़े मौलाना सैय्यदना हजरत शेख महमूद आफांदी नहीं रहे...?

#इन्ना_लिल्लाहि_व_इन्ना_इलैहि_राजेऊन

एस एम फ़रीद भारतीय

तुर्की के सबसे पहले सैय्यदना आख़िरी पैगंबर नबी ए करीम सअव मदीना , सऊदी अरब सोम 12 रबी अल-अव्वली (570/571 सीई) 12 रबी अल-अव्वल 11 आह (5/6 जून 632 सीई) थे और हज़रत महमूद अफ़ांडी 37 वें सैय्यना रहे, ये तुर्की का सबसे बड़ा ओहदा होता है.

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब

एर्दोगान के पीर-ओ-मुर्शिद हजरत शेख महमूद आफंदी का आज लगभग 95 साल (1929 - 23 जून, 2022), की उम्र में इंतकाल हो गया, आपकी तमाम ज़िंदगी हमेशा ही बड़ी जद्दो जहद मैं गुज़री और शरीयत व सुन्नत को हमेशा आपने ज़िंदा रखने की कोशिश की.

खिलाफत उस्मानिया के खात्मे के बाद, जिस तरह से आपने एक ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जिया और तुर्कों की एक पूरी पीढ़ी को दीन व शरीयत के रास्ते पर रखने की कोशिश की, वो आपकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग और जद्दो जहद थी.

आज जो कुछ तुर्की मैं हो रहा है और जिस कामयाबी के रास्ते पर तुर्की सौ साला पाबंदियों के बाद आगे बढ़ा है उसमें शेख साहब की सलाह मशविरा अहम रहा है, हमेशा ही तुर्क लोग अपने ईमामों के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं, तुर्क पर किसी की भी हुकूमत रही हो, मगर हमेशा ही ईमानदारी का दामन तुर्कों ने नहीं छोड़ा, बेशक आधा हिस्सा यूरोप मैं हो लेकिन यूरोप की गंदगी को कभी दीन और इस्लाम पर हावी नहीं होने दिया, हमेशा ही अल्लाह की रज़ा के लिए सब्र के साथ अपने प्यारे आक़ा नबी सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम के रास्ते को नहीं छोड़ा.

तुर्क एक ज़िंदा क़ौम के नाम से पूरी दुनियां मैं जानी जाती है, मुल्क पर लगी पाबंदियां आने वाले साल हटने वाली हैं हजरत उनको नहीं देख सके कि तुर्कीय कैसा होगा, ये नाम तुर्की से तुर्कीय भी हज़रत ने ही अर्दगान साहब को सुझाया,जिसके पीछे बहुत सी ज़िंदगियां बचाने का राज़ छुपा है, तुर्की दुनियां का अकेला ऐसा मुल्क है जो सौ साला पाबंदियों के बाद भी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता रहा, तेल अपना है, मगर पाबंदी की वजह से निकाल नहीं सकता, रूस से ख़रीदकर काम चला रहा है.

हज़रत को आम तौर पर महमूद एफेंदी की नाम और शक़्ल मैं जाना जाता है और उनके शिष्यों को "एफेंदी हज़रतलेरी" के रूप में जाना जाता है, एक तुर्की सूफ़ी शेख और नक़्शबंदी के क़द्दावर इस्माईला जामिया के नेता थे, ख़ालदिया सरीखां जो सारिबां में केंद्रित था, इस्तंबूल.

आपकी पैदाईश तुर्की इस्तांबुल के एक गाँव के इमाम साहब के घर मैं पैदा हुए थे, आप हजरत 10 साल की उम्र में अपने वालिद के साथ रहकर हाफिज बन गये और 16 साल की उम्र तक इजाजा हासिल करते हुए मदरसा की तालीम को जारी रखी, बाद में अपने चचेरे बहन से शादी की और इमाम के रूप में अपना काम शुरू किया.


1952 में, उस्ताओसमानोग्लू ने अहस्कली अली हैदर एफेंदी (गुरबुज़लर) से मुलाकात की, जो एक नक्शबंदी शेख थे, आप हज़रत उनके मुर्शिद बन गये, अली हैदर एफेंदी ने उन्हें 1954 में इस्माइला मस्जिद के इमाम की शक़्ल मैं ओहदे पर बिठा दिया, साल 1960 तक, अली हैदर एफेंदी की वफ़ात के बाद उस्ताओसमानोग्लू की ज़िंदगी में सबसे बड़ा मोड़ आया और वो सबसे बड़े आलिम बन गये, (तारीका), 1996 में, वह इस्माइला मस्जिद के इमाम के ओहदे को छोड़ कर बाकी ख़िदमत मैं लग गये.

अल्लाह से मुझ नाचीज़ की दुआ है अल्लाह मरहूम को अपने महबूब और सहाबा कराम रजि० के साथ जगह दे आमीन सुम्मा आमीन.
#अल्लाह पाक आपकी ख़िदमात को कुबूल फरमाए और जन्नत में आपके दरजात बुलंद फरमाए, आमीन।

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