1973 के आस पास में ऐसा लग रहा था, पूरी दुनिया पर रूस की हुकूमत होगी ,पूरा विश्व रूस के अधीन हो जाएगा,उस दौर में वहां के मुसलमानो पर ज़ुल्म की दर्दनाक दास्तान लिखी जा रही थी , कुरान और मस्जिद को लगातार तहसनहस किया जा रहा था, अल्लाह का नाम लेना जुर्म ठहरा दिया गया था, मदरसे बंद कर दिए गए पहले से बनी हुई मस्जिद या तबाह कर दी गई या उनको डांस हाल और दफ्तर की शक्ल दे दी गई,1917 ईस्वी से पहले रूस में 15000 मस्जिद थी सोवियत यूनियन के दौर में सिर्फ 94 मस्जिद बाकी रह गई थी उन पर भी ताला बंदी कर दी गई थी वहां पर अज़ान देना मानो मौत की आवाज़ देना था, जिस घर से कुरान की आयत का टुकड़ा भी मिल जाये तो उस घर के लोगों का कत्ल वाजिब होता, उस घर के तमाम खानदान को फाँसी की सज़ा दे दी जाती थी, कुरान के आयात रखने बजाय हिफ़्ज़ कर याद रखना, छुप के छुप के कुरान सिखने पर मजबूर थे, आलिमो का बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया जाने लगा, औरतों की इज्जत लूटी जाती, बाकी लोगों को जबरदस्ती ईसाई बनाया गया.
यहां तक कि असल की मुस्लिम पहचान खत्म करने और आबादी का परसेंटेज तब्दील करने के लिए उनकी जगह रशियन लोगों को दूसरे इलाकों से लाकर आबाद किया गया, हर मुस्लिम को मुस्लिम होते हुए भी जान बचाने के लिए अपनी पहचान छुपानी पड़ती थी.
इसके अलावा उसी दौर मैं भारत की उस वक़्त की सरकार ने सोवियत संघ से दोस्ती की ख़ातिर सोवियत के इशारे पर मुल्क मैं ऐसी योजनाओं को अंजाम देने की कोशिश की जिससे मुस्लिमों की आबादी को रोका जा सके, बड़े ही ज़ोर शोर से 20 सूत्रीय कार्यक्रम के साथ नसबंदी की योजना को सख़्ती से लागू करने के लिए कड़े कानून बनाये गये, मुसलमानों को नौकरी से निकालने की धमकियां दी गई, अचानक फैसला आया और हजारों लोगों की एक साथ नसबंदी कर दी गई. ऐसा नहीं था कि लोग बहुत सरलता से नसबंदी कराने के लिए मान गए थे बल्कि उनके साथ कठोरता अपनाई गई और मजबूर किया गया नसबंदी कराने के लिए. इंदिरा गांधी के सबसे बड़े सलाहकार बन कर उभरे संजय गांधी की सलाह पर देश की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए नसबंदी कार्यक्रम शुरू किया गया और हजारों लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की जाने लगी.
उस वक़्त इंदिरा गांधी जी ने इमरजेंसी, नसबंदी जैसे गलत फैसलों को लेने के बाद एक और गलत निर्णय लिया जिसे खुद उन्होंने अपने राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा गलत फैसला माना था, इंदिरा गांधी ने मीडिया सेंसरशिप लगाकर भारतवासियों को कांग्रेस को छोड़ सत्ता संभालने के लिए दूसरा विकल्प देखने के लिए मजबूर कर दिया था.
सवाल...? तब क्या इतने ज़ुल्म के बाद इस्लाम और मुस्लिम रूस से ख़त्म हो गया...?
शायद ही इतने ज़ुल्म के बाद दुनिया में कोई कौम दोबारा खड़ी हो सके, लेकिन कहा जाता है इस्लाम वो पौधा है जिसको जितना काटोगे वो उतना ही हरा होगा !!
वही हुआ भी और इस बात का गवाह है कि रूस की बड़ी बड़ी खूबसूरत मस्जिदें, मस्जिदों की ख़ूबसूरती बताती है के रूस ने भी माना इस्लाम को ख़त्म करने की योजना नहीं बल्कि गले लगाकर ही रूस तरक्की के तरफ बढ़ सकता है, आज उसी रूस की सर ज़मीन पर 8000 मस्जिदें है रूस की राजधानी मॉस्को में दुनिया की चार खूबसूरत मस्जिद है, ईद के मौके पर सिर्फ मॉस्को की मस्जिदों में नमाजियों की तादाद तीन लाख 20 हजार से ज्यादा होती है, रूस के मुफ्ती कौंसिल के अध्यक्ष रावेल ऐनुद्दीन कह चुके हैं कि ईद की नमाज़ों में शिरकत करने वालों की तादाद हर साल दर साल के मुकाबले में बढ़ रही है और आने वाले 15 साल बाद रूस की आबादी का 30% हिस्सा मुसलमानों का होगा !!!
मौत से डरने वाले इंसान नहीं है हम,
बातिल
सौ बार ले चुका है तू इम्तहाँ हमारा...!!
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