Sunday, 11 December 2011

न जाने कहाँ खो गए वो दिन ?

न जाने कहाँ खो गए वो बचपन के दिन. जब हमें इंतज़ार होता था दशहरे का. नए कपड़े पहनकर घूमने का उल्लास होता था. दुर्गा जी को देखने जाते थे. यह शर्त लगती थी कि कौन कितने दुर्गा
 जी को देखता है. वहां दशहरा का मतलब उत्सव होता था. मेला होता था. यहाँ दशहरा का मतलब एक और छुट्टी. यह कहना है न्यूज़ 24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम का. आज सुबह फेसबुक पर नज़र पड़ी तो अजीत जी के बचपन की इन यादों को पढने का मौका मिला. लगा सबके साथ इसे बांटना चाहिए. फेसबुक पर जिस तरह से उन्होंने अपनी बातों को रखा है उसे हम एकसूत्र में पिरोकर यहाँ पेश कर रहे है (प्रस्तुति : पुष्कर पुष्प) :

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