आखिर समस्या कहाँ हैं ?
आज ऑफिस जाना कैंसिल….कितनी अच्छी बारिश हो रही है ….है न गीत ? नारायण ने अपनी पत्नी कम दोस्त ज्यादा , अर्धांग्नी गीत से बरामदे में लगे झूले पर झूलते हुए चाय की चुस्की के साथ पूछा ( सभी पात्र और नाम काल्पनिक हैं ) ! सही कह रहे हो….चलो आज मै भी छुट्टी मार लेती हूँ …. पता नहीं क्यों आज बारिश बहुत अच्छी लग रही है ….? बारिश में भीगने का मन कर रहा है….कहते हुए गीत ने अपनी चाय का कप झूले से उठकर पास की टेबल पर रखा और बरामदे के सामने वाले छोटे से गार्डन में भीगने के लिए चली गयी….बचपन में हम ऐसे ही भीगते थे दोनों हाथ दोनों दिशा में फैलाये , घूमते हुए , आसमान की तरफ अपनी दोनों आँखे बंद कर , अपना मुंह किये हुए गीत ने नारायण से कहा ! अच्छा तो तुम्हे बारिश बहुत अच्छी लगती है …लेकिन तुमने कभी बताया ही नहीं ? नारायण ने गीत से कहा ! सर जी , कभी आपने मुझसे पूछा ही नहीं ….झट से गीत ने मजाकिया लहजे में नारायण को जबाब दिया ! मिट्टी की खुशबू कितनी अच्छी आ रही है न ….गीत ने नारायण से कहा ! सही कहा आपने मैडम जी ..अपनी नाक सिकोड़ते हुए , लेकिन गीत का दिल रखने के लिए नारायण ने गीत को जबाब दिया ! तुम्हे बारिश में भीगना नहीं अच्छा लगता क्या ….? गीत ने नारायण से पूछते हुए नारायण की तरफ आई ! इससे पहले कि नारायण कुछ बोल पाता उसके हाथ से अखबार टेबल पर रखते हुए नारायण को गीत ने बारिश में साथ भीगने के लिए खींच लिया !
कुछ देर बाद सूखे कपडे पहनकर दोनों पुनः बरामदे वाले झूले पर आकर बैठ गए ! गीत अपने पैर को जमीन में मारकर झूले को पेंग दे रही थी ! शादी के तीन – चार महीने बाद आज पहली बार दोनों साथ बैठे थे ! गीत तुम खुश तो हो न हमारी शादी से ….कोई किसी भी प्रकार की तकलीफ हो या घर के किसी सदस्य की कोई बात तुम्हे बुरी लगी हो तो तुम मुझसे बेझिझक बता सकती हो… नारायण ने गीत के कंधे पर हाथ रखते हुए गीत से पूछा ! नहीं….वैसे भी तुम मेरे साथ हो तो भला मुझे कोई दुःख कैसे हो सकता है ….घर के सभी लोग मेरी बहुत चिंता करते है इसलिए अब तो मुझे अपने मायके की कमी भी नहीं खलती है ….और रही बात शादी की तो शायद मुझसे बड़ा खुशनसीब इस संसार में कौन होगा जिसका अपने बचपन के पहले प्यार से शादी हो गयी हो ? नारायण के कंधे पर अपना सिर रखते हुए गीत ने नारायण से कहा ! हमारी शादी में भी कितनी मुश्किलें आई न….पर आखिर हमारी शादी हो ही गयी….गीत के सिर के बालों को सहलाते हुए नारायण ने गीत से कहा ! लेकिन मुझे इस बात का मलाल हमेशा रहेगा कि कुछ समय के लिए मै भी शादी करने से मना करने लग गयी थी….मैंने भी उस समय तुम्हारा साथ नहीं दिया….कहते हुए गीत इमोशनल हो गयी ! अच्छा बताओ तुम्हे गाडी कौन सी पसंद है….? गीत को इमोशनल होता देख नारायण ने झट से टॉपिक बदल कर गीत से पूछा !
मर्सडीज / ऑडी या बी.एम. डब्ल्यू इन तीनो में से एक दिन तो मै अपनी गाडी जरूर खरीदूंगी …और उस पर हम फिर लांग ड्राइव पर जायेगे….लेकिन ड्राइविंग तुम करना मै नहीं करूंगी …नारायण की नाक पकड़ते हुए गीत ने नारायण को जबाब दिया ! यार अब मै भी इस छोटे से घर में रह – रह कर बोर हो गया हूँ ….अच्छा तू बता तूने कैसे घर की ख्वाइश की थी कभी …गीत का मन जानने के लिए नारायण ने गीत से पूछा ! ज्यादा बड़े ख्वाब नहीं है मेरे बस दिल्ली में अपनी एक कोठी होनी चाहिए….यही छोटा सा ख्वाब है मेरा ….नारायण के दाहिने कान को खीचते हुए गीत ने हँसते हुए कहा ! ऐसे मौसम में अगर गर्मागर्म पकौड़े हो और गर्मागर्म चाय तो मज़ा आ जाये ….गीत ने नारायण की तरफ देखते हुए कहा ! समझ गया मैडम जी….अभी आपकी सेवा में हाजिर होता हूँ कहकर नारायण घर के किचन की तरफ चला गया ! किचन की तरफ जाते हुए रास्ते में नारायण ने सोचा कि मर्सडीज / ऑडी / बी.एम. डब्ल्यू , कोठी……..इतने बड़े शौक तो अगर हम दोनों अपनी सारी तनख्वाह ज़िंदगी भर बचा कर रख ले तो भी इस जन्म में नहीं खरीद पाएंगे….परन्तु अगर गीत की यह इच्छा है तो उसके सपने को पूरा करने के लिए मै जी जान लगा दूंगा …..उसके सपने को पूरा करने के लिए तो मै कुछ भी कर सकता हूँ ….मै उसे इस दुनिया की सारी खुशी दूंगा जिसकी वो हक़दार है !
थोड़ी देर बाद नारायण गर्मागर्म पकौड़े और गर्मागर्म चाय लेकर आ गया ! गीत ने जैसे ही पहला पकौड़ा मुह में डाला सी…सी…करने लग गयी ( उस पकौड़े में छुपाकर खूब सारी मिर्ची डाल रखी थी पर ऊपर से देखने में वो प्याज का ही लग रहा था ) ! अभी भी तुम्हारी ये आदत गयी नहीं न….गीत ने सी…सी..करते हुए नारायण से कहा ! जब तुम्हे छेड़ने का मन होता है तो ऐसा करना पड़ता है क्या करूँ मैडम आदत से मजबूर हूँ ….नारायण ने मुस्कराते हुए चाय की चुस्की के साथ कहा ! अगले दिन दोनों अपने – अपने ऑफिस चले गए ! गीत तो सामान्य रूप से अपनी दिनचर्या में लग गयी परन्तु नारायण गीत के सपने के बारे में सोचे लगा कि महगांई के इस दौर में इतनी तनख्वाह में सिर्फ ज़िंदगी ठीक – ठीक ही चल सकती है लेकिन अगर मर्सडीज / ऑडी/ बी.एम. डब्ल्यू , कोठी चाहिए तो कुछ अलग करना पड़ेगा !
समय गुजरता गया ! गीत की खुशी के लिए नारायण ने अपने जीवन मूल्यों , और अपने सिद्धांतों से समझौता कर लिया ! नारायण ने ऊपर की कमाई का सहारा लेकर जगभग १० साल बाद कोठी तो खरीदने में सफल हो गया अब उसका सपना था मर्सडीज / ऑडी/ बी.एम. डब्ल्यू गाडी खरीदने का था जो कि कोठी खरीदने के पांच साल बाद वो भी पूरा हो गया ! समय के साथ उन्हें दो अमूल्य रत्न प्राप्त हुए थे ! दोनों अपनी ज़िंदगी से खुश थे खासकर गीत तो बहुत ही खुश थी क्योंकि उसके बचपन के सभी सपने पूरे हो गए थे ! कुछ सालों बाद नारायण को आय से अधिक संपत्ति के जुर्म में जेल हो गयी !
स्कूल की हिन्दी की पुस्तक में मैंने एक कहानी पढी थी ” अंगुलिमाल ” ! जंगल के रास्ते महात्मा बुद्ध जा रहे थे तो आवाज आई ” ठहर जा ” ! दो – तीन आवाजे सुनने के बाद महात्मा बुद्ध रुके तो उनका सामना उस दुर्दांत अंगुलिमाल से हुआ ! फिर महात्मा बुद्ध ने उस अंगुलिमाल से पूछा कि ” मैं तो ठहर गया लेकिन तू कब ठहरेगा “ ? जब ये बात अंगुलीमाल को समझ आई तो वह महात्मा बुद्ध के पैरों में गिरकर पश्च्याताप करने लग गया ! इसी प्रकार एक कहानी महर्षि बाल्मीकि की भी है ! जब वो डाकू थे और खूब लोगों को लूटते थे तो एक बार उनका सामना महर्षि नारद से हुआ ! महर्षि नारद को पेड़ से बांधकर उनके कहने पर जब वो अपने परिवार वालों से इस पाप का भागीदार बनने के लिए कहा तो उनकी पत्नी के साथ – साथ माता-पिता ने भी मना कर दिया ! बाल्मीकि जी अपना – सा मुंह लेकर वापस महर्षि नारद के पास आ गये और उनके चरण पकड़ लिए !
महर्षि नारद के उपदेश के बाद किस प्रकार उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वो बाल्मीकि रामायण के रचयिता बनें , यह हम सबको अच्छी तरह विदित है ! नारायण की ऐसी दुर्गति क्यों हुई ? लाख टके का सवाल यही है ! अगर गीत एक बार भी नारायण से पैसों के स्रोत बारे में पूछ लेती तो शायद ये नौबत न आती ! भ्रष्टाचार में कमी उस दिन आनी शुरू हो जायेगी जिस दिन इस देश के पत्नियाँ अपने पतियों को गलत काम करने से रोकेंगी और व्यक्ति स्वतः ही भौतिकवादिता का अन्धानुकरण न कर एक सयंमित जीवन व्यतीत करें ! क्योंकि भ्रष्टाचार मनुष्य की नियति से शुरू होता है ! समाज के बहुत सारे समाज सेवको जैसे श्री अन्ना हजारे और संतो ने जैसे बाबा रामदेव , श्री श्री रविशंकर जी ने भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए आन्दोलन छेड़ ही रखा है जो कि मात्र व्यवस्था में शुद्धता की बात करते है जो कुछ हद तक ठीक भी है परन्तु मेरा यह व्यक्तिगत मत है कि असली भ्रष्टाचार तब तक नहीं समाप्त होगा जब तक हर व्यक्ति अपनी आंतरिक शुद्धता के साथ – साथ अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के भले के बारे में नहीं सोचेगा ! अब आप लोग सोचिये कि आखिर समस्या कहाँ हैं ?
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