Sunday, 12 February 2012


बहिनजी हमरे लिए का करिन ?

उत्तर प्रदेश के कई इलाक़ों में दलित समुदाय पहले से कोई बहुत बेहतर ज़िदगी नहीं बिता रहा है. हालांकि मुख्यमंत्री मायावती इसी समुदाय की हैं और राज्य के दलित समुदाय में उनका एक ठोस वोट बैंक भी है.
दलित बस्तीअकबरपुर या यूँ कहें, अंबेडकर नगर को ही ले लीजिए. क़रीब 4,000 गाँव वाले इस विशालकाय ज़िले का नाम 1995 तक अकबरपुर ही था मायावती ने उसी साल इसका नामकरण बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर कर दिया.
गौरतलब ये भी है कि मायावती इस जगह से लगातार सांसद भी रहीं हैं मुझे इस विशालकाय ज़िलेके कुछ अहम प्रखंडों जैसे बसखारी भीटी और जलालपुर में कुछ समय बिताने का मौक़ा तो मिला लेकिन ख़ुद मायावती के बारे में जो आम राय मिलीवो ज़रा चौंकाने वाली है बसखारी बस अड्डे से सटे हुए एक छोटे से बाज़ार में एक चाय की दुकान है जहाँ लोग-बाग रोज़ ही पहुँच जाते है एक चौपाल सी लगाने.

गुज़ारा

रमेश कुमार जो स्वयं एक दलित हैं, इन्ही में से एक हैं मैं उपनी गाडी में बैठा कर उन्हें डेढ़ किलोमीटर दूर उनके घर तक ले गया पास के इस गाँव में इनके पुरखे पले-बढे और वहीं काम करते रहे जो रमेश कुमार करते हैं खेती के मौसम में पास के किसानों की ज़मीन जोतने का रमेश महीनों बिना किसी काम के होते हैं और मौक़ा मिलने पर मज़दूरी करके अपना गुज़ारा करते हैं.
44 वर्षीय रमेश कहते हैं, "नाम बदलने से कुछ नहीं बदला साहब. बहनजी हमरे लिए का करिन? हमार जौन दिन चर्या पहिले रही, तेस आजो है मैं ख़ुद जब पिछली बार अकबरपुर आया था, तब यहाँ का मंज़र कुछ और था. दादी का ननिहाल पास के एक गाँव बहुरिकपुर में था तो ख़ासी जिज्ञासा थी इलाक़े को देखने की और समझने की न तो ठीक-ठाक सडकें थीं और न ही बारह-चौदह घंटे से ज़्यादा बिजली रहा करती थी. 
लेकिन अब सब कुछ बदल सा गया है सड़कें भी हैं और बिजली थोड़ी ज़्यादा भी आती है तो फिर इलाके के ग्रामीणों में इतना रोष क्यों ? जवाब जल्द ही मिल गया रामबरन पासी बहुरिकपुर गाँव के हैं और रमेश के दस साल पुराने मित्र भी लेकिन साल के 10 महीने अपने परिवार से दूर रहते हैं वजह है यहाँ व्याप्त बेरोज़गारी.
उन्होंने बताया यहाँ नौकरी कहाँ है घर में बीवी है तीन बच्चे भी हैं और कमाने वाला सिर्फ़ मैं पंजाब में जाकर खेतों में मज़दूरी करता हूँ परिवार के लिए पैसे भी भेजता हूँ.

समर्थन

हालांकि मुख्यमंत्री मायावती ने इस बात में कोई कोताही नहीं बरती है कि राज्य में दलितों के लिए नई स्कीमें न आएँ या फिर उन्हें विशेष छूट न मिले लेकिन केंद्र सरकार ने जिस मनरेगा योजना को प्रदेश में लागू कियाहै उससे ज़रूर पिछड़े तबके के लोगों को और ख़ासतौर से कुछ दलित परिवारों को फ़ायदा भी हुआ है.
मुझे ख़ुद थोड़ी हैरानी भी हुई जब इस योजना के तहत फ़ायदा उठा चुके एक परिवार से अकबरपुर डाकघर के पास टकरा गया कुंता देवी और उनके पति को मनरेगा से लाभ तो हुआ है, लेकिन उनका मानना है कि वे और उनके जैसे कई और परिवार वोट मायावती की पार्टी को ही देंगे.
वजह पूछने पर बात तो टाल गए, लेकिन मुझे शायद आभास हो गया था कि असल वजह क्या है. असल वजह रही है मायावती की सालों-साल दलित वर्ग के उत्थान करने की बात पर ज़ोर देने की.

No comments:

Post a Comment

अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !

सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...