बिन बैटरी चलेगा टीवी का रिमोट, घड़ी ?
यूँ तो टीवी रिमोट से लेकर रेडियो और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों तक को चलाने के लिए बैटरियों की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन ब्रिटेन के बेडफ़र्डशर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक इजाद की है जिससे इन्हें चलाने के लिए बैटरी की ज़रूरत
नहीं पड़ेगी.
वायरलेस रिसर्च केन्द्र के प्रोफ़ेसर बेन ऐलेन की इजाद की हुई ये तकनीक ऊर्जा के लिए रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करती है, शोधकर्ताओं के मुताबिक अपने तरह की पहली माने जानी वाली ये तकनीक इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में लगने वाली बैटरीयों की जगह ले सकती है, यूनिवर्सिटी ने इस तकनीक पर संपूर्ण अधिकार संरक्षित करने के लिए पेटेंट की अर्ज़ी दी है.
'फ़ुर्सत में बना डाला' प्रोफ़ेसर ऐलेन और उनके सहयोगियों ने जो तकनीक निकाली है उससे घरेलू प्रयोग के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में ऊर्जा के लिए बैटरी की जगह मीडियम वेव फ्रिक्वेंसी का प्रयोग किया जाएगा.
यूनिवर्सिटी की ''ऊर्जा संरक्षण'' शोध के एक भाग के तौर पर इजाद की गई नई तकनीक रेडियो तरंगों की बची हुई ऊर्जा का प्रयोग करती है, प्रोफ़ेसर ऐलेन के मुताबिक़ रेडियो तरंगों में रोशनी, ध्वनि और वायु जैसी उर्जा होती है और इनका प्रयोग अधिक मात्रा में ऊर्जा बनाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है, प्रोफ़ेसर ऐलेन ने कहा, ''ऊर्जा संरक्षण का बढ़ता दायरा उम्मीद बढ़ाता है कि आम बैटरीयों पर हमारी निर्भरता कम होगी. ये वाकई में काफ़ी रोचक है कि हम आम ऊर्जा स्रोतों की बजाए वैकल्पिक स्रोतों से ऊर्जा लें.''
तकनीक को पहचान शोधकर्ताओं का ये दल अपनी तकनीक पर पेटेंट अर्ज़ी के नतीजे का इंतज़ार कर रहे है जिससे ये तकनीक स्थाई तौर पर जानी जाए.प्रोफ़ेसर ऐलेन का कहना है कि उनके दल ने ये कारनामा ''खाली समय” में कर दिखाया.
उन्होंने कहा, ''हमारा अगला लक्ष्य है कि इस काम को आगे ले जाने के लिए धन जुटाएं या किसी से साझेदारी करके इस तकनीक को एक संपूर्ण उत्पाद में तब्दील करें, प्रोफ़ेसर ऐलेन ने कहा, ''ऊर्जा संरक्षण हमारे भविष्य का एक अहम भाग है क्योंकि इस देश (ब्रिटेन) में हर साल 20,000 से 30,000 टन बैटरीयां कबाड़घरों में भेजी जाती है और इसमें मौजूद ज़हरीले केमिकल सीधे ज़मीन में चले जाते है.
शोधकर्ताओं का मानना है कि ये तकनीक उत्पाद में तब्दील हो जाने पर व्यवसायिक रूप से काफ़ी लाभकारी साबित होगा
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