Sunday, 12 February 2012


ओह नो !! क्या 'टीम अण्णा' बेरोजगार हो जाएगी ? 

दिल्ली उच्च न्यायालय, केन्द्र सरकार, टीम अण्णा, सकारात्मक कवरेजदिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्देश में केन्द्र सरकार को अनुमति दे दी है कि यदि कोई NGOs, किसी प्रकार के "बन्द", "हड़ताल", "रास्ता रोको", "रेल रोको" एवं "जेल भरो" आंदोलन में सक्रिय पाया जाता है तो FCRA (विदेशी फ़ण्ड कानून) के तहत उसके विदेशी चन्दों पर रोक लगाई जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि "टीम अण्णा" का समूचा अस्तित्व ही NGOs वीरों की बदौलत टिका हुआ है, जिन्हें दृश्य एवं "अदृश्य" तरीके से आर्थिक मदद मिलती रही है। यदि केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय के इस विचार पर आगे काम करना शुरु कर दिया तो "टीम अण्णा" की दुकान जमने से पहले ही उखड़ जाएगी।
दुकानदारी उखड़ने की आशंका से सर्वाधिक ग्रस्त हैं भूषण जोड़ी, उच्च न्यायालय के इस निर्णय का सबसे पहले विरोध किया है बड़े भूषण ने और कहा कि, "इस तरह से NGOs के सामाजिक कार्यों(???) पर रोक लग जाएगी, सरकार न्यायालय के इस निर्देशे के बहाने NGOs पर नकेल कस सकती है…"। उच्च न्यायालय ने कहा है कि हालांकि संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, परन्तु यदि NGOs किसी राजनैतिक गतिविधि में लिप्त पाए जाते हैं तो उनकी विदेशी मदद रोकी जा सकती है…।
अर्थात "टीम अण्णा" की मुश्किलें कम होती नज़र नहीं आ रही हैं… अब देखना है कि आडवाणी की रथयात्रा को "अनावश्यक" और मोदी के उपवास को "ढोंग" बताने वाली टीम अण्णा, अपनी आगे की राह कैसे बनाती है…।
हे प्रभु इन्हें (टीम अण्णा और कांग्रेस को) क्षमा कर देना, ये नहीं जानते कि (नरेन्द्र मोदी का विरोध करके) ये क्या कर रहे हैं…!!!
नरेन्द्र मोदी के उपवास को लेकर कांग्रेस एवं सिविल सोसायटी वालों की बेचैनी देखते ही बनती है। छटपटा रहे हैं, फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं, तिलमिला रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे, विभिन्न टीवी बहसों एवं बयानबाजियों में दिग्विजय सिंह, शकील अहमद, मनीष तिवारी, लालू यादव से लेकर छोटे भूषण और टीम अण्णा के अन्य सदस्यों के चेहरे देखने लायक बन गये हैं। नरेन्द्र मोदी ने एक ही "मास्टर स्ट्रोक" में जहाँ इन लोगों को चारों खाने चित कर दिया है, वहीं दूसरी ओर जेटली-सुषमा जोड़ी को भी पार्श्व में धकेलकर राष्ट्रीय स्थिति प्राप्त कर ली है…
जिसने भी मोदी जी को यह "उपवास" वाला आयडिया दिया है वह एक अच्छा मार्केटिंग मैनेजमेंट गुरु होगा…। इस उपवास की वजह से मीडिया को मजबूरन नरेन्द्र मोदी का चेहरा और उनके इंटरव्यू दिखाने पड़ रहे हैं, साथ ही उनके धुर विरोधियों जैसे वाघेला इत्यादि के हास्यास्पद बयानों के कारण मोदी की इमेज में और इज़ाफ़ा हो रहा है।
असल में टीम अण्णा के सदस्य एक "रोमाण्टिक आंदोलन" की तात्कालिक सफ़लता(?) से बौरा गये हैं, जबकि इनके जनलोकपाल आंदोलन के मुकाबले राम मन्दिर आंदोलन बहुत व्यापक और जनाधार वाला था। राम जन्मभूमि आंदोलन के सामने जनलोकपाल आंदोलन कुछ भी नहीं है, खासकर यह देखते हुए कि उस समय न तो फ़ेसबुक/ट्विटर थे, न तो आडवाणी को मीडिया का "सकारात्मक कवरेज" मिला था, न ही "सत्ता प्रतिष्ठान का आशीर्वाद" उनके साथ था… इसके बावजूद गाँव-गाँव में देश के कोने-खुदरे मे हर जगह राम मन्दिर आंदोलन की धमक मौजूद थी।
नरेन्द्र मोदी जैसे कई "वास्तविक नेता" मन्दिर आंदोलन की उपज हैं, इसलिए सिविल सोसायटी वालों को "हर राजनैतिक मामले में" अपने "टाँग-अड़ाऊ" बयानों से बचना चाहिए। उन्हें एक मुफ़्त सलाह यह है कि, पहले नरेन्द्र मोदी जैसी स्वीकार्यता और लोकप्रियता तो हासिल कर लो, आठ-दस साल जनता के बीच जाकर जनाधार बनाओ, मेहनत करो… उसके पश्चात कुछ बोलना…।
यह विचार लेखक के व्यक्तिगत है, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है — सुरेश चिपलूनकर

No comments:

Post a Comment

अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !

सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...