एक तरफ अपने करीबी लोगों की यादें और दूसरी ओर परीक्षा की तैयारी, हादसों से उबर पाना मुश्किल था, लेकिन परफॉर्म करना भी जरूरी था, बकौल मृणालिका, एक बार तो हौसला डगमगा गया, लेकिन सोचा भइया की तमन्ना कैसे पूरी हो पाएगी, मेरा भइया से बेहद लगाव था वे मुझे हमेशा अच्छा परफॉर्म करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे, मैंने उन्हीं से मुश्किलों से उबरना और लड़ना सीखा, मेरे 10वीं में 10 सीजीपीए थे, पापा बिजनेसमैन और मां टीचर हैं, मां कहती हैं, दूसरे बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते अपने बच्चों की तो सुध ही खो देते हैं, ऐसे में बच्चे खुद ही इतने समझदार हो जाते हैं बिना किसी सहयोग के इसने भी ऐसा ही किया, अपने दम पर पढ़ाई की और यह मुकाम हासिल किया, भविष्य में आईएएस बनना चाहती है.
Tuesday, 29 May 2012
तीन महीने में तीन हादसे, फिर भी किया टॉप ?
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