नई दिल्ली- देश में शादी से जुड़े कानून में धर्म के आधार पर एक बार फिर बदलाव आया है, एक नई बहस फिर से शुरू होगी, देखने वाली बात ये होगी की इस मामले में कौन कहाँ खड़ा दिखेगा, क्या इस देश में किसी नाबालिग लड़की को शादी करने का कानूनी अधिकार है ?
जी हां, यह हम नहीं दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला कह रहा है, दिल्ली हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने मंगलवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी मुस्लिम लड़की ने 15 साल की उम्र में तरुणाई (मासिक धर्म शुरू होने की उम्र) हासिल कर ली है तो उसकी शादी गैर कानूनी नहीं है, गौरतलब है कि भारतीय कानून में शादी के लिए लड़के की उम्र कम से कम 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल बताई गई है, एक बड़ा सवाल ये है की क्या मुस्लिम धर्म की 15 साल की लड़कियों की शादी की इजाजत से समाज का संतुलन नहीं बिगड़ेगा.
जी हां, यह हम नहीं दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला कह रहा है, दिल्ली हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने मंगलवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी मुस्लिम लड़की ने 15 साल की उम्र में तरुणाई (मासिक धर्म शुरू होने की उम्र) हासिल कर ली है तो उसकी शादी गैर कानूनी नहीं है, गौरतलब है कि भारतीय कानून में शादी के लिए लड़के की उम्र कम से कम 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल बताई गई है, एक बड़ा सवाल ये है की क्या मुस्लिम धर्म की 15 साल की लड़कियों की शादी की इजाजत से समाज का संतुलन नहीं बिगड़ेगा.
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में व्यवस्था दी है कि मासिक धर्म शुरू होने पर मुस्लिम लड़की 15 साल की उम्र में भी अपनी मर्जी से शादी कर सकती है, इसी के साथ अदालत ने एक नाबालिग लड़की के विवाह को वैध ठहराते हुए उसे अपनी ससुराल में रहने की अनुमति प्रदान कर दी, जस्टिस एस. रविन्द्र भट्ट और जस्टिस एस.पी. गर्ग ने कहा कि अदालत इस तथ्य का संज्ञान लेती है कि मुस्लिम कानून के मुताबिक, यदि किसी लड़की का मासिक धर्म शुरू हो जाता है तो वह अपने अभिभावकों की अनुमति के बिना भी विवाह कर सकती है, उसे अपने पति के साथ रहने का भी अधिकार प्राप्त होता है भले ही उसकी उम्र 18 साल से कम हो.
हाईकोर्ट ने नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि उक्त व्यवस्थाओं से स्पष्ट है कि मासिक धर्म शुरू होने पर 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की विवाह कर सकती है, इस तरह का विवाह गैरकानूनी नहीं होगा, बहरहाल, उसके वयस्क होने अर्थात 18 साल की होने पर उसके पास इस विवाह को गैरकानूनी मानने का विकल्प भी है, अदालत ने मां की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए 16 साल की इस लड़की को अपनी ससुराल में रहने की अनुमति प्रदान कर दी, मां ने इस याचिका में आरोप लगाया था कि पिछले साल अप्रैल में एक युवक ने उसकी बेटी का अपहरण करने के बाद उससे जबरन निकाह कर लिया है.
दो जजों की बेंच ने लड़की के इस बयान को स्वीकार कर लिया कि उसने अपनी मर्जी से पिता का घर छोड़कर अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी की थी और अब वह अपने माता-पिता के पास वापस नहीं जाना चाहती है, लड़की चाहती थी कि ऐसी स्थिति में उसके पति के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज नहीं होना चाहिए, इस बीच, लड़की की कुशलता का पता करने के लिए अदालत ने इस दंपती और उनके ससुराल वालों को निर्देश दिया कि वे इस लड़की के वयस्क होने तक 6 महीने में एक बार बाल कल्याण समिति के सामने हाजिर होंगे,
हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि समिति इस मामले में पति से आवश्यक लिखित आश्वासन लेने सहित सभी जरूरी कदम उठाएगी, इन कदमों के पूरा होने पर लड़की को उसकी ससुराल में रहने की अनुमति दी जाएगी, यह लड़की इस समय गरीब और बुजुर्ग महिलाओं के पुनर्वास के लिए बनाए गए सरकार प्रायोजित गृह निर्मल छाया में रह रही है.
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