Sunday 28 May 2017

पंडित नेहरू से राजीव गांधी तक क्या खोया क्या पाया...?

एस एम फ़रीद भारतीय
पंडित जवाहर लाल नेहरू के अनमोल विचारों के साथ परिवार ने देश को क्या दिया...?
यानि देश के दो अनमोल रत्नों के बारे मैं पूरा सच जिसके बिना बनते ओर चमकते भारत की कल्पना करना ही बेकार है, अगर मैं आश्वस्त हूँ कि मैं सही कदम उठा रहा हूँ, तो वह कदम ही मुझे संतुष्टि प्रदान करता है.

अच्छी नैतिक स्थिति में होना कम से कम उतना ही
अभ्यास मांगता है जितना कि अच्छी शारीरिक स्थिति में होना.
अज्ञानता बदलाव से हमेशा डरती है.
असफलता तब मिलती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य और सिद्धांत भूल जाते हैं.

आप तस्वीरों के चेहरे दीवार की तरफ मोड़ के इतिहास का रुख नहीं बदल सकते.
एक नेता और एक कर्मशील पुरुष संकट के समय लगभग हमेशा ही पहले अपने अंतस की आवाज के अनुसार काम करते हैं फिर बाद में उस काम को करने के कारण खोजते हैं.
एक सिद्धांत का वास्तविकता के साथ संतुलन बहुत जरुरी है.
खतरा देख कर भागने का प्रयास करने वाला व्यक्ति अपने आप को ज्यादा खतरे में डाल लेता है मुकाबलें उस व्यक्ति के, जो शांत बैठ कर खतरे का सामना करने की योजना बना रहा हो.
जरुरत से ज्यादा सतर्क रहने की नीति सभी खतरों में सबसे बड़ा खतरा है.
जाहिर है, दक्षता का सबसे अच्छा प्रकार वह है जो मौजूदा सामग्री का अधिकतम लाभ उठा सके.
जीवन ताश के पत्तों के खेल की तरह है. आपके हाथ में जो है वह नियति है, जिस तरह से आप खेलते हैं वह स्वतंत्र इच्छा है.
जो तथ्य हैं वे हैं और आपके नापसंद करने से गायब नहीं हो जायेंगे.
जो व्यक्ति अधिकतर अपने ही गुणों का बखान करता रहता है वो अक्सर सबसे कम गुणी होता है.
नागरिकता देश की सेवा में निहित है.
पूर्ण रूप से आन्दोलनकारी रवैया किसी विषय की गहन विवेचना के लिए ठीक नहीं है.

महान कार्य और छोटे लोग साथ नहीं चल सकते.
मैं पूर्व और पश्चिम का अनूठा मिश्रण बन गया हूँ, हर जगह बेमेल सा, कहीं पर भी घर जैसा महसूस नहीं करता.
यदि पूंजीवादी समाज की शक्तियों को अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो वो अमीर को और अमीर और गरीब को और गरीब बना देंगी.
लोकतंत्र अच्छा है . मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बाकी व्यवस्थाएं और भी बुरी हैं.
लोकतंत्र और समाजवाद लक्ष्य पाने के साधन मात्र हैं, अपने आप में लक्ष्य नहीं.
लोगों की कला उनके दिमाग का सत्य प्रतिबिम्ब है.
वह व्यक्ति जो सबकुछ पा चुका है, वह चाहता है कि हर बात शांति और व्यवस्था के पक्ष में हो.
शांति के आभाव में बाकी सारे सपने विलुप्त हो जाते हैं और राख में मिल जाते हैं.
शांति राष्ट्रों का सम्बन्ध नहीं है. यह एक मन: स्थिति है जो आत्मा की निर्मलता से आती है. शांति सिर्फ युद्ध का अभाव नहीं है. यह मन की एक अवस्था है.
शायद जीवन में भय से बुरा और खतरनाक कुछ भी नहीं है.
संकट और गतिरोध से सामना होने का एक फायदा यह होता है कि वे हमें सोचने पर मजबूर करते हैं.
संकट के समय हर छोटी चीज मायने रखती है.
संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है.
समय सालों के बीतने से नहीं मापा जाता बल्कि किसी ने क्या किया, क्या महसूस किया , और क्या हांसिल किया, इससे मापा जाता है.

समाजवाद…ना केवल जीने का एक तरीका है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के निदान का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है.
सह- अस्तित्व का केवल एक विकल्प है सह- विनाश.

सुझाव देना और बाद में हमने जो कहा, उसके नतीजे से बचने की कोशिश करना, बेहद आसान है.
स्वामिभक्त और योग्य पुरुष सदैव महान उद्देश्य के लिए कार्य करते हैं. यह महान उद्देश्य भले ही तुरंत न पहचाना जाये किन्तु अंतत: इस का फल मिलता है.
हम एक अद्भुत दुनिया में रहते हैं जो सौंदर्य, आकर्षण और रोमांच से भरी हुई है. यदि हम खुली आँखों से खोजे तो यहाँ रोमांच का कोई अंत नहीं है.
हम वास्तविकता में क्या हैं यह इस बात से कहीं अधिक मायने रखता है कि और लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं .
हमारे अन्दर सबसे बड़ी कमी यह है कि हम चीजों के बारे में बात ज्यादा करते हैं और काम कम.
हमें थोडा विनम्र रहना चाहिए; हमें सोचना चाहिए कि शायद सत्य पूर्ण रूप से हमारे साथ ना हो.
हर एक हमलावर राष्ट्र की यह दावा करने की आदत होती है कि वह अपनी रक्षा के लिए हमला कर रहा है.
अब आते हैं श्रीमती इंदिरा गांधी की जीवनी पर ...?
14 जनवरी, 1980 – 31 अक्‍तूबर, 1984 | कॉन्‍ग्रेस (आई)
श्रीमती इंदिरा गांधी
पंडित जवाहर लाल नेहरु की पुत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनेल, जिनेवा, पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

ओर प्रभावशाली शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण दिया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं।बचपन में उन्होंने ‘बाल चरखा संघ’ की स्थापना की और असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से  ‘वानर सेना’ का निर्माण किया। सितम्बर 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1947 में इन्होंने गाँधी जी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कार्य किया।

उन्होंने 26 मार्च 1942 को फ़िरोज़ गाँधी से विवाह किया। उनके दो पुत्र थे। 1955 में श्रीमती इंदिरा गाँधी कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी।1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।वे एआईसीसी के राष्ट्रीय एकता परिषद की उपाध्यक्ष और 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।वे वर्ष 1959 से 1960 तक  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। जनवरी 1978 में उन्होंने फिर से यह पद ग्रहण किया।

वह 1966-1964 तक सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं। इसके बाद जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक वह भारत की प्रधानमंत्री रहीं। साथ-ही-साथ उन्हें सितम्बर 1967 से मार्च 1977 तक के लिए परमाणु ऊर्जा मंत्री बनाया गया।उन्होंने 5 सितंबर 1967 से 14 फ़रवरी 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। श्रीमती गांधी ने जून 1970 से  नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मामले मंत्रालय का प्रभार संभाला। जनवरी 1980 से वह योजना आयोग की अध्यक्ष रहीं। 14 जनवरी 1980 में वे फिर से प्रधानमंत्री बनीं।

श्रीमती इंदिरा गांधी कमला नेहरू स्मृति अस्पताल, गांधी स्मारक निधि और कस्तूरबा गांधी स्मृति न्यास जैसे संगठनों और संस्थानों से जुडी हुई थीं। वे स्वराज भवन न्यास की अध्यक्ष थीं। 1955 में वह बाल सहयोग, बाल भवन बोर्ड और बच्चों के राष्ट्रीय संग्रहालय के साथ जुड़ीं।श्रीमती गांधी ने इलाहाबाद में कमला नेहरू विद्यालय की स्थापना की थी।वह 1966-77 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और पूर्वोत्तर विश्वविद्यालय जैसी कुछ बड़ी संस्थानों के साथ जुडी रहीं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय न्यायालय, 1960-64 में यूनेस्को के भारतीय प्रतिनिधिमंडल,  1960-1964 में यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड और 1962 में राष्ट्रीय रक्षा परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया। वह संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय एकता परिषद, हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, नेहरू स्मारक संग्रहालय, पुस्तकालय समाज और जवाहर लाल नेहरू स्मृति निधि के साथ जुडी रहीं।

अगस्त 1964 से फ़रवरी 1967 तक श्रीमती गाँधी राज्य सभा की सदस्य रहीं। वह चौथे, पांचवें और छठे सत्र में लोकसभा की सदस्य थी। जनवरी 1980 में उन्हें रायबरेली (उत्तर प्रदेश) और मेडक (आंध्र प्रदेश) से सातवीं लोकसभा के लिए चुना गया। इन्होंने रायबरेली की सीट का परित्याग कर मेडक में प्राप्त सीट का चयन किया। उन्हें 1967-77 में और फिर जनवरी 1980 में कांग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप में चुना गया था।

विभिन्न विषयों में रुचि रखने वाली श्री गाँधी जीवन को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखती थीं जिसमें कार्य एवं रुचि इसके विभिन्न पहलू हैं जिन्हें किसी खंड में अलग नहीं किया जा सकता या न ही अलग-अलग श्रेणियों में रखा जा सकता है।

उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां प्राप्त की। उन्हें 1972 में भारत रत्न पुरस्कार, 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मैक्सिकन अकादमी पुरस्कार,  1973 में एफएओ  का दूसरा  वार्षिक पदक और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा साहित्य वाचस्पति (हिन्दी) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1953 में श्रीमती गाँधी को अमरीका ने मदर पुरस्कार, कूटनीति में उत्कृष्ट कार्य के लिए इटली ने इसाबेला डी ‘एस्टे पुरस्कार और येल विश्वविद्यालय ने होलैंड मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया। फ्रांस जनमत संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार वह 1967 और 1968 में  फ्रांस की  सबसे लोकप्रिय महिला थी। 1971 में  अमेरिका के  विशेष गैलप जनमत सर्वेक्षण के अनुसार  वह दुनिया की सबसे लोकप्रिय महिला थी।पशुओं के संरक्षण के लिए 1971 में अर्जेंटीना सोसायटी द्वारा उन्हें सम्मानित उपाधि दी गई।

उनके मुख्य प्रकाशनों में ‘द इयर्स ऑफ़ चैलेंज’ (1966-69), ‘द इयर्स ऑफ़ एंडेवर’ (1969-72), ‘इंडिया’ (लन्दन) 1975, ‘इंडे’ (लौस्सैन) 1979 एवं लेखों एवं भाषणों के विभिन्न संग्रह शामिल हैं। उन्होंने व्यापक रूप से देश-विदेश की यात्रा की। श्रीमती गांधी ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, बर्मा, चीन, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों का भी दौरा किया। उन्होंने  फ्रांस, जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य, जर्मनी के संघीय गणराज्य, गुयाना, हंगरी, ईरान, इराक और इटली जैसे देशों का आधिकारिक दौरा किया।श्रीमती गांधी ने अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया बेल्जियम, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा, चिली, चेकोस्लोवाकिया, बोलीविया और मिस्र जैसे बहुत से देशों का दौरा किया।वह इंडोनेशिया, जापान, जमैका, केन्या, मलेशिया, मॉरिशस, मेक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नाइजीरिया, ओमान, पोलैंड, रोमानिया, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, सीरिया, स्वीडन, तंजानिया, थाईलैंड,त्रिनिदाद और टोबैगो, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ, उरुग्वे, वेनेजुएला, यूगोस्लाविया, जाम्बिया और जिम्बाब्वे जैसे कई यूरोपीय अमेरिकी और एशियाई देशों के दौरे पर गई।उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

अब अगर स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी का यहां ज़िक्र नहीं किया तब भी बढ़ते भारत की बात करना बेईमानी होगा...?
31 अक्‍तूबर, 1984 – 2 दिसम्‍बर, 1989  कॉग्रेस (आई)
श्री राजीव गांधी 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले श्री राजीव गांधी भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे और संभवतः दुनिया के उन युवा राजनेताओं में से एक हैं जिन्होंने सरकार का नेतृत्व किया है। उनकी माँ श्रीमती इंदिरा गांधी 1966 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तब वह उनसे उम्र में आठ साल बड़ी थीं। उनके महान नानाजी पंडित जवाहरलाल नेहरू 58 वर्ष के थे जब उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में 17 साल की लंबी पारी शुरू की थी।

देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत श्री गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश प्राप्त हुआ था। अपनी मां की हत्या के शोक से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया। उस चुनाव में कांग्रेस को पिछले सात चुनावों की तुलना में लोकप्रिय वोट अधिक अनुपात में मिले और पार्टी ने 508 में से रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल की।
70 करोड़ भारतीयों के नेता के रूप में इस तरह की शानदार शुरुआत किसी भी परिस्थिति में उल्लेखनीय मानी जाती, यह इसलिए भी अद्भुत था क्योंकि वे उस राजनीतिक परिवार से संबंधित थे जिसकी चार पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं इसके बाद भारत की सेवा की थी, इसके बावजूद श्री गांधी राजनीति में अपने प्रवेश को लेकर अनिच्छुक थे एवं उन्होंने राजनीति में देर से प्रवेश भी किया।
श्री राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बम्बई में हुआ था। वे सिर्फ तीन वर्ष के थे जब भारत स्वतंत्र हुआ और उनके दादा स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। उनके माता-पिता लखनऊ से नई दिल्ली आकर बस गए। उनके पिता फिरोज गांधी सांसद बने एवं जिन्होंने एक निडर तथा मेहनती सांसद के रूप में ख्याति अर्जित की।
राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने दादा के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया जहाँ इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में कार्य किया। वे कुछ समय के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। वहां उनके कई मित्र बने जिनके साथ उनकी आजीवन दोस्ती बनी रही। बाद में उनके छोटे भाई संजय गाँधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया जहाँ दोनों साथ रहे।
स्कूल से निकलने के बाद श्री गाँधी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए लेकिन जल्द ही वे वहां से हटकर लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए। उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

यह तो स्पष्ट था कि राजनीति में अपना करियर बनाने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। उनके सहपाठियों के अनुसार उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं। हालांकि संगीत में उनकी बहुत रुचि थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय एवं आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फोटोग्राफी एवं रेडियो सुनने का भी शौक था।
हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। अपेक्षानुसार इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की एवं वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। जल्द ही वे घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।
कैम्ब्रिज में उनकी मुलाकात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी जो उस समय वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों, राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में श्रीमती इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। आस-पास राजनीतिक गतिविधियों की ऐसी हलचल के बावजूद वे अपना निजी जीवन जीते रहे।
लेकिन 1980 में एक विमान दुर्घटना में उनके भाई संजय गाँधी की मौत ने सारी परिस्थितियां बदल कर रख दीं। उनपर राजनीति में प्रवेश करने एवं अपनी माँ को राजनीतिक कार्यों में सहयोग करने का दवाब बन गया। फिर कई आंतरिक एवं बाह्य चुनौतियाँ भी सामने आईं। पहले उन्होंने इन दबावों का विरोध किया लेकिन बाद में वे उनके द्वारा दिए गए तर्क से सहमत हो गए। उन्होंने अपने भाई की मृत्यु के कारण खाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी संसद क्षेत्र का उपचुनाव जीता।
नवंबर 1982 में जब भारत ने एशियाई खेलों की मेजबानी की थी, स्टेडियम के निर्माण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने संबंधी वर्षों पहले किये गए वादे को पूरा किया गया था। श्री गांधी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि सारे काम समय पर पूर्ण हों एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी रूकावट एवं खामियों के खेल का आयोजन किया जा सके। उन्होंने दक्षता एवं निर्बाध समन्वय का प्रदर्शन करते हुए इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संपन्न किया। साथ-ही-साथ कांग्रेस के महासचिव के रूप में उन्होंने उसी तन्मयता से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित एवं सक्रिय किया। उनके सामने आगे इससे भी अधिक मुश्किल परिस्थितियां आने वाली थीं जिसमें उनके व्यक्तित्व का परीक्षण होना था।
श्री गांधी से ज्यादा दुखद एवं कष्टकर परिस्थिति में कोई सत्ता में क्या आ सकता है जब 31 अक्टूबर 1984 को अपनी मां की क्रूर हत्या के बाद वे कांग्रेस अध्यक्ष एवं देश के प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन व्यक्तिगत रूप से इतने दु:खी होने के बावजूद उन्होंने संतुलन, मर्यादा एवं संयम के साथ राष्ट्रीय जिम्मेदारी का अच्छे से निर्वहन किया।
महीने भर के लंबे चुनाव अभियान के दौरान श्री गांधी ने पृथ्वी की परिधि के डेढ़ गुना के बराबर दूरी की यात्रा करते हुए देश के लगभग सभी भागों में जाकर 250 से अधिक सभाएं कीं एवं लाखों लोगों से आमने-सामने मिले।

स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच एवं निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले श्री गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे और जैसा कि वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता को बनाये रखने के उद्देश्य के अलावा उनके अन्य प्रमुख उद्देश्यों में से एक है – इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण...!

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