एस एम फ़रीद भारतीय
साल 2002 में इस रेप केस की जानकारी पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने पहली बार दी थी.
रामचंद्र छत्रपति सिरसा के सांध्य दैनिक 'पूरा सच' के संपादक थे. साध्वी के साथ हुए कथित रेप की खबर प्रकाशित करने के कुछ महीने बाद ही छत्रपति की गोली मारकर हत्या कर दी गई ?
जब बड़े-बड़े संपादक पैसों के आगे बिक गए, या फिर
गुरमीत राम रहीम के रसूख के आगे नतमस्तक हो गए, तब एक लोकल सांध्यकालीन अखबार के संपादक ने 56 इंच का सीना दिखाया, तोप से भी ताकतवर कलम होती है। बैनर से नहीं धारदार खबरों से कोई पत्रकार बड़ा बनता है, साहसिक रिपोर्ट तहलका मचाती ही है, चाहे वह रिपोर्ट किसी छोटे-मोटे अखबार में ही क्यों न छपे, सीने पर गोलियों खाने से पहले गुरमीत की पापी दुनिया को हिलाकर यह साबित कर दिखाया जाबांज पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने, 'सच कहूं' यही उनके अखबार का नाम रहा.
मगर यही वह अखबार था, जिसने सबसे पहले 2002 में गुरमीत राम रहीम के पापों का भंडाफोड़ किया, डेरे के अंदर अय्याशियों के किस्से छापे, बताया कि कैसे लड़कियों को साध्वी के रूप में बंधक बनाकर रखा जाता है, डेरे में उन्हें देवियां कहकर पुकारा तो जाता है, मगर उनकी हालात वेश्याओं से भी बदतर है, वेश्याएं किसी से पैसे लेकर रजामंदी से संबंध बनाती हैं, मगर यहां तो बाबा राम रहीम बिना मर्जी ही उन्हें जब मन करता है, हवस का शिकार बनाते हैं.
पांच करोड़ भक्तों के स्वयंभू देवता बने इस ढोंगी बाबा के खिलाफ जब कोई चूं तक करने की जुर्रत नहीं समझता था, तब इस स्थानीय अखबार के संपादक ने अकेले मोर्चा खोलने की हिम्मत दिखाई.
अगर रामचंद्र छत्रपति जान पर खेलकर बलात्कारी पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए खबरें न छापते तो शायद हम 15 साल पुराने उस मामले से अनभिज्ञ रहते, और न ही आज बलात्कारी बाबा सलाखों के भीतर जाता.
तमाम मीडिया संस्थानों ने बलात्कार की शिकार साध्वी की उस चिट्ठी को संज्ञान में नहीं लिया, तब डंके की चोट पर रामचंद्र छत्रपति ने उस दो पन्ने की गुमनाम पाती को अपने छोटे से अखबार में छापा, चूंकि रिपोर्ट सनसनीखेज थी, बस फिर क्या था तहलका मच गया पूरे पंजाब में, बलात्कारी बाबा की दुनिया ही हिलनी शुरू हो गई, बाबाओं के गुंडे उबल पड़े.
जब छत्रपति की खबरों से सिंहासन डोलता नजर आया तो फिर गुरमीत राम रहीम ने दूसरे हत्याकांड की साजिश रच दी, बलात्कार के पाप पर पर्दा डालने के लिए इससे पहले गुरमीत साध्वी के भाई रणजीत की हत्या करा चुका था, इसकी खबर भले औरों ने भी छापी मगर यह हत्या गुरमीत ने कराई, इसका खुलासा करने का साहस सिर्फ छत्रपति ने दिखाया, रामचंद्र ने खबर में गुरमीत का कनेक्शन जोड़ते हुए कहा कि हत्या मे पुलिस को जो रिवॉल्वर मिली थी, उसका लाइसेंस डेरा के एक व्यक्ति के नाम था, इससे पता चलता है कि गुरमीत ने ही हत्या की.
जब जाबांज रिपोर्टिंग से गंवानी पड़ी जान, 24 अक्टूबर 2002 यही वह तारीख थी, गुरदीप सिंह के इशारे पर डेरा के गुर्गे धमक पड़े रामचंद्र छत्रपति के ठिकाने पर। छत्रपति को घर के बाहर बुलाकर गुर्गों ने पांच गोलियां मारकर बुरी तरह घायल कर दिया गया। चूंकि छत्रपति सच्चाई लिखने से नहीं चूकते थे, उनकी धारदार पत्रकारिता की तूती बोलती थी, लोकप्रिय थी, इस नाते 25 अक्टूबर 2002 को घटना के विरोध में सिरसा शहर बंद रहा, 21 नवंबर 2002 को सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई, बाबा के रसूख के आगे पंजाब पुलिस ने एक बार फिर घुटने टेक दिए, गुरमीत का नाम केस से बाहर कर दिया, जिस पर दिसंबर 2002 को छत्रपति परिवार ने पुलिस जांच से असंतुष्ट होकर मुख्यमंत्री से मामले की जांच सीबीआई से करवाए जाने की मांग की.
जनवरी 2003 में पत्रकार छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर छत्रपति प्रकरण की सीबीआई जांच करवाए जाने की मांग की। याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह पर हत्या किए जाने का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश जारी किए। दिसंबर 2003 में सीबीआई ने छत्रपति व रणजीत हत्याकांड में जांच शुरू कर दी। रेप मामले में गुरमीत दोषी सिद्ध हो गया है, मगर अभी पत्रकार की हत्या के मामले में फैसला व सजा बाकी है.
पत्रकार रामचंद्र को यूं याद करते हैं स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव कुछ यूं रामचंद्र छत्रपति से जुड़ी यादों को साझा करते हैं.
जब भी मैं डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनता हूँ, मुझे 20 अक्टूबर 2002 की याद आ जाती है, उस दिन मैं हरियाणा के शहर सिरसा में था, जो डेरे के मुख्यालय के नज़दीक है, मुझे वहां के अखबार "पूरा सच" के संपादक रामचंद्र छत्रपति जी ने "वैकल्पिक राजनीती और मीडिया की भूमिका" विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया था, एक ईमानदार और साहसी पत्रकार के रूप में छत्रपति जी की ख्याति और सिरसा शहर की पंजाबी और हिंदी की साहित्यिक मण्डली ने मुझे अभिभूत किया था.
भाषण के बाद छत्रपति जी मुझे दूध-जलेबी खिलाने ले गए, वहीँ सड़क के किनारे बैठकर मैं उनसे डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनने लगा, उन्होंने मुझे पहली बार एक साध्वी द्वारा बाबा के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के बारे में बताया, डेरे के अंदर की बहुत ऐसी बातें बतायीं जो मैं यहाँ लिख नहीं सकता, यह सुनकर मैंने कहा "अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है?"
छत्रपति जी मुस्कुराये, बोले ये बोलने की किसी में हिम्मत नहीं है, कोई वोट के लालच में चुप है, कोई पैसे के लालच में चुप है, लेकिन "पूरा सच" में हमने साध्वी की चिठ्ठी छाप दी है, उससे बाबा बौखलाए हुए हैं, चिठ्ठी छपने के महीने के अंदर उसे लीक करने के शक में भाई रंजीत सिंह की हत्या कर दी गयी, सुनकर मैं सिहर गया, पूछा "रामचंद्र जी, आपको खतरा नहीं है"?
बोले "हाँ कई बार धमकियाँ मिल चुकी हैं, क्या होगा कोई पता नहीं, लेकिन कभी न कभी तो हम सबको जाना है," चार दिन बाद खबर आयी कि रामचंद्र छत्रपति के घर पर हमलावरों ने उन्हें पांच गोलियां मारी, कुछ दिन के बाद छत्रपति जी चल बसे, हरियाणा सरकार (उन दिनों चौटाला जी की लोक दल की सरकार थी) ने हत्या की ढंग से जांच तक नहीं करवाई.
प्रदेश भर के पत्रकार खड़े हुए, फिर भी सरकार CBI जांच के लिए न मानी, आखिर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के बाद CBI जांच हुई (उसे भी डेरे ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, रिटायर्ड जस्टिस राजेंद्र सच्चर के खड़े होने के बाद कहीं जाकर जांच शुरू हो सकी) जांच के बाद CBI ने रामरहीम और उनके विश्वासपात्रों को छत्रपति जी की हत्या का आरोपी बनाया, वो मुकदमा अभी चल रहा है, फैसला आना बाकी है...!
जब मर कर भी फंदा तैयार कर गये पत्रकार रामचन्द्र जी ओर आज सच की जीत हुई सच मैं सच कभी नहीं हारता...!
जयहिन्द
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