Monday, 23 October 2017

मानवाधिकारों के लिए फ़िक्रमंद फिर भी हनना ?

एस एम फ़रीद भारतीय

मानवाधिकार हर एक का हकधार होता है
मानव अधिकारों से अभिप्राय "मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है। अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों, नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार.

इतिहास अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं बाद के धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणाएं है जिन्हें मानवाधिकार के रूप में चिन्हित किया जा सकता है, ऐसे प्रलेखों में उल्लेखनीय हैं अशोक के आदेश पत्र, मुहम्मद (saw) द्वारा निर्मित मदीना का संविधान (meesak-e-madeena) आदि.

आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाएं समसामयिक इतिहास से संबंध हैं। द ट्वेल्व आर्टिकल्स ऑफ़ द ब्लैक फॉरेस्ट (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज़ माना जाता है.

यह जर्मनी के किसान - विद्रोह (Peasants' War) स्वाबियन संघ के समक्ष उठाई गई किसानों की मांग का ही एक हिस्सा है, ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स ने युनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्रवाइयों को अवैध करार दिया.

1776 में संयुक्त राज्य में और 1789 में फ्रांस में 18 वीं शताब्दी के दौरान दो प्रमुख क्रांतियां घटीं, जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी मनुष्य की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा का अभिग्रहण हुआ। इन दोनों क्रांतियों ने ही कुछ निश्चित कानूनी अधिकार की स्थापना की.

कोइ भी देश अपने "मानवाधिकारों" को लेकर अक्सर विवाद बना रहता है, ये समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि क्या वाकई में मानवाधिकारों की सार्थकता है, यह कितना दुर्भाग्यपू्र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम तरह की विसंगतियों और विद्रूपताओं से भरा पड़ा है ?

किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है, भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है.

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