Friday 24 November 2017

साहब ये कैसा भारत जहां आज भी डायन हैं ?

भारत के कई हिस्सों में आज भी एक ऐसी कुप्रथा है जो ज़िंदगी इतनी मुश्किल कर देती है कि कुछ महिलाएं तो जीने की चाह से ही परे हो जाती हैं.
कई प्रदेशों में महिलाएं डायन प्रताड़ना का शिकार हुईं. इसका असर कुछ ऐसा होता है कि न सिर्फ़ महिला का बल्कि उसके पूरे परिवार का जीवन ही बदल जाता है.
राजस्थान के भीलवाड़ा की 80 वर्षीय रामकन्या देवी को उनके घर
के पास के एक कमरे में तीन हफ़्तों के लिए बंद कर दिया गया. उनका कुसूर?
'डायन' कहकर कई दिनों तक कमरे में बंद रखा
तीस साल पहले...
गाँव के एक प्रभावशाली परिवार की लड़की बीमार हुई. रामकन्या का घर उस बीमार लड़की के स्कूल के पास था.

उसके परिवार और एक भोंपा ने कहा कि जो लड़की बीमार हुई उसका कारण है- 'उसमें रामकन्या आ रही है.' उनके मुताबिक, इसका अर्थ है कि रामकन्या एक 'डाकण' यानी डायन है.
अपनी आपबीती सुनते हुए रामकन्या ने कहा, "वो मुझे डायन कहते हैं. अरे किसको डायन कहते हैं? इतने सालों मैं इस गाँव में रही. किसी ने कुछ नहीं बोला. यहाँ बच्चों की डिलीवरी में मैंने मदद की. उस दिन इन्होंने मेरे मर्द को और मुझे पीटा. मेरे बच्चों ने पूछा तो धमकी दी कि घर जला देंगे. बीमार बच्ची के परिवार और भोंपे ने कहा कि मैं डायन हूँ. ये सब मुझे बदनाम करने के लिए कहा. हमारी जाती के घर कम हैं."
ये किस्सा तो इसी साल का है. अब से तीस साल पहले भीलवाड़ा की ही लाड़ू को डायन कहा गया. यह भीलवाड़ा के पहले कुछ मामलों में से है जिसने सुर्खियां बटोरी.
Image captionलाड़ू देवी लुहार
कपड़े फाड़ कर घसीटा
तीस साल पहले जब लाड़ू देवी लुहार विधवा हुईं तो इनके पति एक घर और ज़मीन छोड़ गए. वहां से मुसीबत शुरू हुई.

लाड़ू हमें गली के उस मंदिर के पास लेकर गईं जहाँ उन्हें घर से घसीटकर मंदिर के पास गाँव वालों के सामने डायन कहा गया.
इतना पीटा गया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.
लाड़ू ने बीबीसी को बताया, "ये सारा फ़साद ज़मीन की वजह से शुरू हुआ. जिस परिवार का दबदबा था उसने किया. हमारी जाति के घर कम हैं. मेरे कपड़े फाड़ कर मुझे घसीटा गया. मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. मरना ही अच्छा है. जो मुझपर बीती वो मैं ही जानती हूँ."
डायन बताकर छोड़ दिया
भीलवाड़ा में अगली सुबह मुलाक़ात हुई कविता सांसी से. 21 साल की कविता अपनी कहानी बताते हुए रो पड़ीं.

उन्होंने बताया कि शादी के कुछ महीनों बाद ही उनके ससुर ने उनसे जिस्मानी रिश्ते बनाने की कोशिश की. जब कविता ने ऐतराज़ जताया तो उसे कई दिनों तक कमरे में बंद रखा और राख में लिपटी रोटी दी.
कविता के पति ने भी उसका साथ नहीं दिया. कविता को अपनी माँ से मिलने नहीं दिया और कुछ दिनों बाद उन्हें डायन कहकर छोड़ दिया गया.
कविता अभी सिर्फ 21 साल की हैं लेकिन उनकी आंखों ने वो देखा है जो शायद ही किसी ने देखा है.
सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलुवालिया कहती हैं, "डायन शब्द के इस्तेमाल से दुनिया बदल जाती है. लोग आपसे दूरी बनाते हैं. कोई आपसे ताल्लुक नहीं रखना चाहता. शादी में दिक्कत आती है और बदनामी के डर से तो कई बार महिलाओं को परिवार समेत घर छोड़ना पड़ता है. कफ़न चाहे कितना भी सुंदर हो, उसे कोई पहनना नहीं चाहता."
शहर क्या, गाँव क्या
डायन में विश्वास रखने वाले सिर्फ़ गाँव में होते हैं ये कहना ठीक नहीं. भीलवाड़ा शहर में रहने वाली हेमलता पोस्ट ग्रेजुएट हैं.

उन्होंने बताया कि विवाद ज़मीन से शुरू हुआ. उसके बाद उनकी सास को डायन कहा गया और क्योंकि वो अपने सास से मिलती-जुलती रहीं तो वो भी चपेट में आ गईं. मजबूरी में गाँव छोड़कर शहर आए तो वहां भी लोगों ने ताने कसे. बात इतनी बढ़ गई की उनके माँ बाप भी उन्हें अपनी रसोई में आने नहीं देते.
हेमलता कहती हैं, "मैं काबिल हूँ ,पढ़ी लिखी हूँ लेकिन जिन्होंने मेरे साथ ऐसा किया वो औरतें पढ़ी लिखी नहीं हैं. मैं उसने ज़्यादा काबिल हूं, फिर भी मेरे साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया गया. डायन शब्द से एक औरत का, उसके परिवार का जीवन बदल जाता है. मन में खुद को ख़त्म करने के ख़्याल आते हैं."
अब हेमलता, उनकी सास भोली अपने गाँव वापस नहीं जाते हैं, जाते हैं तो मजबूरी में.
जैसे हेमलता और उनकी सास गाँव नहीं जातीं वैसे ही 95 साल की गुलाबी कुमावत भी अब अपने घर नहीं जातीं. वो अपनी रिश्तेदार के साथ रहती हैं. उनका झगड़ा प्रॉपर्टी से शुरू हुआ और फिर उन्हें डायन बता कर गाँव से निकलने पर मजबूर किया गया.
ये बात लगभग 14 साल पुरानी है और अब गुलाबी के पास अपने लिए रहने को घर नहीं है.
डायन कौन है, ये तय कौन करता है?
एक महिला को कभी परिवार वाले, कभी गाँव वाले तो कभी भोंपा के इशारे पर डायन कहा जाता है. भोंपा जिसे 'विच डॉक्टर' कहा जाता उसके पास लोग अपनी समस्या लेकर आते हैं और भोंपा उन समस्यायों का हल देता है. बीबीसी ने ऐसी ही एक भोंपा से मुलाक़ात की.
भोंपा जयराम जाट ने बताया, "लोग मेरे पास बहुत सी समस्या लेकर आते हैं. औरतें अपनी निज़ी परेशानियां, परदे वाली बीमारी यानी गुप्त बीमारी दिखाने को आती हैं . अगर किसी को कोई डायन लग रही है तो भी आते हैं."
प्रदेश में सख़्त कानून बनने के बावजूद हर साल दर्ज़नों महिलाओं को अंधविश्वास भरी ज्यादती यानी डायन प्रथा का शिकार होना पड़ रहा है. राजस्थान डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015, बनने के बाद भी इस तरह के मामलों में कमी नहीं आई है.
बाल एवं महिला चेतना समिति की तारा अहलुवालिया के मुताबिक इस क़ानून में महिला को डायन कहना गैरजमानती अपराध माना गया है लेकिन ज्यादातर मामलों में आरोपी कुछ दिन बाद ही छूट कर वापस जाते हैं.
तारा ने बताया, "इस मुद्दे को प्रशासन और सरकार को और गंभीरता से लेना होगा. मैंने अक्सर देखा है कि अकेली, विधवा या फिर किसी अल्पसंख्यक समूह से जुड़ी महिला को ही डायन कहते हैं. ज़मीन इसका बड़ा कारण है लेकिन और भी वजहे हैं. अंधविश्वास, निरक्षरता और पितृसत्तात्मक समाज भी कारण हैं."
डायन प्रथा को रोकने के लिए क़ानून
तारा डायन प्रथा की पीड़ित महिला के साथ काम कर रही हैं. एक स्टिंग ऑपरेशन से ऐसे ही कुछ भोंपा गिरफ़्तार हुए. राजस्थान भारत के उन पाँच राज्यों में से एक है, जहां डायन प्रथा को रोकने के लिए क़ानून है. लेकिन राजस्थान में कोई सज़ा नहीं हुई है. 2016 के बाद से बारह ज़िलों में पचास मामलों की सूचना मिली है.

पुलिस इसे सामाजिक समस्या बताती है. भीलवाड़ा के पुलिस अधीक्षक प्रदीप मोहन का कहना है, "ये एक सामाजिक समस्या है पर उतनी बड़ी समस्या नहीं. कुछ केस रजिस्टर हुए लेकिन ये कुछ उत्साही लोग हैं, जो इस एक्ट का ग़लत इतेमाल करते हैं. इसका एक बड़ा कारण अंधविश्वास है. कभी कभी लोग निजी झगड़े या ज़मीन के लिए एक औरत को डायन बोल देते हैं. प्रशासन पीड़ित महिला की मदद के लिये हर संभव कोशिश करता है और ज़रूरत पड़ने पर चालान काटता है."
उधर, लाड़ू अपने गांव लौट आई हैं. वो कहती हैं, "ये मेरे खेत हैं, मैं इन्हें छोड़कर क्यों जाऊं? मैं यहां मरते दम तक रहूंगी. जब तक हूं खेत नहीं छोड़ूंगी."
लाड़ू ने लौटने की हिम्मत जुटाई. लेकिन बाक़ी इतनी खुशक़िस्मत नहीं हैं. डायन शब्द ने कई रास्ते रोक रखे हैं. ये 21 सदी है, लेकिन सोच में अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है.

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