Wednesday 30 September 2020

देश मैं बलात्कार के बाद होने वाली मेडिकल जांच भी पीड़ित को शर्मशार करती है...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
रेप के 20 साल बाद मेडिकल होना बताता है कि यातनाएं झेलना तो पीड़िता की नियति मैं शामिल हो चुका है.

इस बारे मैं सबसे पहले हम बात करते हैं विनता नंदा की जिनके साथ आलोक नाथ ने 20 साल पहले कथित रूप से बलात्कार किया था. मामला भले ही पुराना हो लेकिन उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं गया. बलात्कार कल होता तब भी मेडिकल टेस्ट होता, 20 साल पहले हुआ, तब भी होगा.

विनता नंदा आज एक सफल राइटर और प्रोड्यूसर हैं, वो सशक्त हैं और हिम्मती भी, लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके इतना हिम्मती होने से यातनाएं उनके हिस्से नहीं आएंगी, सच तो ये है कि हमारे देश का सिस्टम इतना लचर है कि रेप पीड़िता की नियति बन जाता है, हर कदम पर यातनाएं झेलना, विनता भी झेल रही हैं, चूंकि रेप हुआ है तो 20 साल के बाद भी उन्हें अपना मेडिकल टेस्ट कराना होगा, तभी तो मामला आगे बढ़ेगा.

Me too आंदोलन के तहत तनुश्री दत्ता के बाद अगर किसी महिला का मामला सबसे ज्यादा चर्चित हुआ, तो वो हैं राइटर और प्रोड्यूसर विनता नंदा, विनता का मामला इसलिए भी चर्चित था क्योंकि ये मामला 20 साल पुराना था और टीवी के सबसे संस्कारी कहे जाने वाले शख्स आलोक नाथ के खिलाफ था.

20 साल पहले भी विनता यही सब झेल रही होतीं जो आज झेल रही हैं, ये तो शुरुआत है, अभी तो कोर्ट की फजीहत अलग बात है, विनता नंदा कहती हैं कि ' मैं एक पढ़ी-लिखी, आजाद और सशक्त महिला हूं, लेकिन मेरे साथ जो कुछ भी हुआ वो शायद उन महिलाओं की तुलना में बहुत कम होगा जो सशक्त नहीं हैं और आवाज नहीं उठा पातीं, वो तो इससे कहीं ज्यादा बुरा होता होगा.

सच ही कहा था ये विनता ने, और वो ये सब झेलने के लिए तैयार थीं, लेकिन उन महिलाओं के साथ क्या होता होगा जो उतनी मजबूत स्थिति में नहीं हैं, खैर, हम सब जानते हैं, पर अब सवाल ये है कि पुलिसिया कार्रवाई क्या रूप लेने जा रही है, और जब मेडिकल में कुछ नहीं मिलेगा, तो क्या विनता नंदा का केस खारिज हो जाएगा. इतनी हिम्मत के बाद जो सच विनता पूरी दुनिया के सामने लाईं क्या उसका अस्तित्व एक मेडिकल टेस्ट पर आधारित है? 

ये बातें साबित करती हैं कि रेप के मामले में हमारा समाज जितना असंवेदनशील है उससे भी कहीं ज़्यादा सुस्त हमारा कानून और हमारी कानून व्यवस्था भी है.

विनता नंदा के साथ आलोकनाथ ने 20 साल पहले दुष्कर्म किया था, बहुत हिम्मत लगी होगी विनता को जब उन्होंने फेसबुक पर ये बताया कि उनके साथ बलात्कार किया गया था, और उससे भी ज्यादा हिम्मत तब लगी जब उन्होंने आलोकनाथ के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी, हालांकि ये हिम्मत वो उस वक्त नहीं जुटा सकी थीं जब उनके साथ ये सब हुआ था, यानी 20 साल पहले, लेकिन जब अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का मन विनता ने बना लिया तो ये बात वहीं तय हो गई थी कि अब वो सबकुछ सहने के लिए तैयार हैं, वही सबकुछ जो बलात्कार सहने वाली हर महिला झेलती है.

विनता का मामला भले ही 20 साल पुराना हो, लेकिन उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं गया, बलात्कार कल होता तब भी मेडिकल टेस्ट होता, 20 साल पहले हुआ, तब भी होगा, हालांकि ये टेस्ट अगर रेप के 72 घंटो के भीतर हो तो ही काम का होता है, ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह, लेकिन एक सप्ताह बाद ये टेस्ट किसी काम का नहीं रहता, लेकिन पुलिस की कार्रवाई आगे तभी बढ़ेगी जब मेडिकल करवाया जाएगा, सोचने वाली बात तो ये है कि मेडिकल में आखिर मिलेगा क्या, ये रटे रटाए सरकारी डायलॉग बोलकर पुलिस अगर खुद को प्रक्रिया के मुताबिक काम करते दिखाना चाहती है तब पुलिस को ये भी समझना होगा कि वो ये कहकर अपनी फ़जीहत खुद कराती रही है.

आपको बता दें कि, 8 अक्टूबर को विनता ने फेसबुक के जरिए रेप के बारे में दुनिया को बताया था और 19 अक्टूबर को पुलिस को, लेकिन पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की. रेप के मामले में शायद पुलिस जरूरत से ज्यदा सोचती है, इसलिए तुरंत एफआईआर कभी नहीं करती, शिकायत के लगभग एक महीने के बाद पुलिस ने कहा कि वो FIR दर्ज करेंगे, और 21 नवंबर को ओशीवारा पुलिस ने आलोकनाथ के खिलाफ बलात्कार की FIR दर्ज की, लेकिन मेडिकल कराए बिना केस आगे नहीं बढ़ सकता.

वहीं श्रंखला पांडेय 16 दिसंबर 2017 के साथ रेप के बाद की मेडिकल जांच से भी पीड़िता को शर्मशार किया जाता है। मध्य प्रदेश में 18 वर्षीय दलित महिला का अपहरण और बलात्कार किया गया। इस मामले में स्वास्थ्य पेशेवर ने पीड़िता पर दोष मढ़ा जिससे उसे और भी नुकसान पहुंचा। बेटी की मेडिकल जांच के दौरान उसके साथ कमरे में मौजूद उसकी मां ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि डॉक्टर ने कहा कि उसकी बेटी झूठ बोल रही है और सेक्स सहमति से हुआ है। डॉक्टर ने मेरी बेटी से कहा "यदि वे आप के साथ जबरदस्ती करते, तो आपके शरीर पर निशान होना चाहिए था, लेकिन आपके शरीर पर ऐसा कुछ नहीं है। आपने जरूर अपनी इच्छा से ऐसा किया होगा।" जांच के बाद मेरी बेटी और ज्यादा डर गई। बलात्कार के बाद पीड़िताओं को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी पाई गई। ये एक चिंता का विषय है कि जहां बलात्कार के बाद पीड़िता को कानून व स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए हमारे यहां उन्हें इसके लिए दर दर भटकना पड़ता है.

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में, ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि यौन हमले की पीड़िताओं की जांच करने वाले डॉक्टर उन्हें जाँच के बारे में पर्याप्त जानकारी देने में नाकाम रहे और उनके साथ डॉक्टरों के व्यवहार में संवेदनशीलता की कमी थी। 2014 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पीड़िताओं के लिए चिकित्सीय-कानूनी सेवा हेतु दिशानिर्देश जारी किए जिससे कि स्वास्थ्य सेवा, जांच और इलाज को मानकीकृत किया जा सके। 

वहीं टू फिंगर टेस्ट पर लगी रोक भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बलात्कार पीड़ितों के संग व्यवहार करने के नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। मंत्रालय ने टू फिंगर टेस्ट पर भी रोक लगाई है। नए दिशा-निर्देशों के तहत सभी अस्पतालों में बलात्कार पीड़ितों के लिए एक विशेष कक्ष बनाने के लिए कहा गया है जिसमें उनका फॉरेसिंक और चिकित्सकीय परीक्षण होगा। ये भी पढ़ें: इस स्केच ने बच्ची के साथ बलात्कार करने वाले को पहुंचाया जेल अर्चना सिंह बताती हैं, “बलात्कार के बाद होने वाले मेडिकल जांच में संवेदनशीलता बरती जाए इसके लिए अस्पतालों में नोडल ऑफिसर बनाए जाते हैं जिन्हें पूरी ट्रेनिंग दी जाती है कि वो इस दौरान संवदेनशीलता रखें.

लेकिन कई बार ऐसी शिकायतें आती हैं कि अस्पताल में पीड़िता व उसके परिवार के साथ गलत व्यवहार होता है।” ये एक अच्छी बात है कि टू फिंगर टेस्ट पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है ये बहुत ही शर्मनाक व गंदा तरीका था जांच का जो पीड़िता को शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से कमजोर करता है, एक पीड़िता ने बताया, बलात्कार के बाद जब मेडिकल जांच के लिए ले गए तो वहां मुझे बहुत डर लग रहा था, उन्होंने इस तरह से बात की जैसे मैं झूठ बोल रही हूं, मुझे लगा था कि महिला डॉक्टर टेस्ट करेगीं लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। टेस्ट के दौरान जो पीड़ा होती है वो भी बलात्कार के दर्द को ताजा करने वाली थी.

 शर्म, तकलीफ और डर ये कोई नहीं समझ सकता जो मैंने झेला है, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्वीन मेरी की स्त्रीरोग विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ अंजू अग्रवाल बताती हैं, “जब तक पुलिस केस नहीं होता डॉक्टर जांच नहीं कर सकता, उसके लिए अलग से दिशा निर्देश होते हैं जिसका पालन डॉक्टर करता है, इसके दौरान महिला पुलिस भी उपस्थित होती हैं,” मेडिकल जांच के नियमों में भी हुए बदलाव, अलग अलग राज्यों में अलग नियम कई राज्यों के अपने दिशानिर्देश हैं, लेकिन वे अक्सर पुराने होते हैं और 2014 के केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों जैसे विस्तृत और संवेदनशील नहीं होते हैं, इनमें ऐसी प्रक्रियाएं और चिकित्सा जांचें भी हैं जिनकी जरूरत नहीं होती.

उदाहरण के लिए, राजस्थान के अस्पतालों में इस्तेमाल किए जाने वाले मानक फॉर्म में एक ऐसा कॉलम अभी भी है जो योनिच्छद (हैमेन) की स्थिति के बारे में जानकारी मांगता है और डॉक्टर इसे भरने के लिए फिंगर टेस्ट करते हैं, जयपुर के एक अस्पताल में फॉरेंसिक साक्ष्य विभाग के एक मेडिकल कानूनविद ने कहा, "ये फॉर्म्स मेरे जन्म से पहले के हैं जो अभी तक वैसे के वैसे ही हैं.

हरियाणा राज्य सरकार ने 2014 के बेहतर दिशानिर्देशों से पहले 2012 में अपनी चिकित्सीय-कानूनी नियमावली जारी की थी, मगर अस्पताल हमेशा उन प्रोटोकॉल्स का पालन नहीं करते हैं, कोई भी डॉक्टर कर सकता है टेस्ट 1997 में कानून बनाया गया था कि सिर्फ महिला डॉक्टर ही बलात्कार के मामलों में मेडिकल जांच कर सकती है.

लेकिन महिला डॉक्टरों की कमी को देखते हुए 2005 में फिर से कानून में संशोधन हुआ, अब किसी भी लिंग और किसी भी विषय का रजिस्टर्ड मेडिकल डॉक्टर इस तरह की जांच कर सकता है, हालांकि इसके लिए पीड़ित की अनुमति जरूरी है, इस तरह के बदलावों ने इतनी संवेदनशील जांच के लिए ज्यादा डॉक्टर उपलब्ध करा दिए हैं, लेकिन उनमें से बहुतों के पास योग्यता ही नहीं है.

पीड़ित मनीषा या मनीषा के परिवार को बारे मैं बात करें तो ये बहुत ही दुखद है, अभी पीड़ित के परिवार को उसकी मौत के बाद भी इंसाफ़ नहीं मिल पाया है, जबकि पुलिस की कार्यवाही पीड़ित पर ज़ुल्म करने वालों के हौंसलों को नई उड़ान देने वाली है, यही वजह है बलात्कार करने वाले कानून से डरने के बजाये कानून को ठेंगा दिखाते हैं, जिसे बदलना ज़रूरी है...!

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