चैनलों में गरीब और किसान पूरी तरह से गायब हो गए हैं। वे सिर्फ अपराध कथाओं में बचे हैं। गांव और किसानों पर आखिरी धारावाहिक राही मासूम रजा का नीम का पेड़ था। अब तो वहां पूंजीपति हैं, अमीर लोग हैं। ये बातें राजेन्द्र यादव ने अपने एक इंटरव्यू में कही. यह इंटरव्यू हिदुस्तान अखबार में 31 जुलाई को प्रकाशित हुई। हिन्दुस्तान अखबार से साभार लेकर इसे हम मीडिया खबर.कॉम के पाठकों के लिए पेश कर रहे हैं.
नई सदी कविता से मुक्ति का दौर है
वह हिंदी साहित्य में एक लंबा रास्ता तय कर चुके हैं। नई कहानी के दौर को आगे बढ़ाने से लेकर हंस जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका को लगातार चलाते रहने तक राजेंद्र यादव के नाम से बहुत-सी उपलब्धियां जुड़ी हैं। हाल ही में शब्द साधक पुरस्कार दिए जाने के मौके पर प्रेम भारद्वाज ने राजेंद्र यादव से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश :
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