Wednesday 10 August 2016

जाने कांग्रेस ओर हम कहां हैं ?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत का एक राजनैतिक दल है, ब्रिटिश राज में इस दल की स्थापना 28 दिसम्बर सन् 1885 को ए ओ ह्यूम ने की थी  इस दल की वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं.
यह दल काँग्रेस सन्देश नामक बुलेटिन का प्रकाशन भी करता है, इस दल का युवा संगठन भारतीय युवा काँग्रेस है, 2004 के संसदीय चुनाव में इस दल ने 10,34,05,272 मत (कुल मतों का 26.7%) प्राप्त करके 145 सीटें जीती थीं.
काँग्रेस की स्थापना के समय सन् 1885 का चित्र
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी, इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे जिन्होंने कलकत्ते के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था, अपने शुरुआती दिनों में काँग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्ग की संस्था का था, इसके शुरुआती सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी से लिये गये थे, काँग्रेस में स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था.

1907 में काँग्रेस में दो दल बन चुके थे - गरम दल एवं नरम दल। गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे, नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे, गरम दल पूर्ण स्वराज की माँग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था.
प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकिय पद(अर्थात डोमिनियन स्टेटस) की माँग की गयी।
परन्तु 1915 में गाँधी जी के भारत आगमन के साथ काँग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया, चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली। 1919 में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गान्धी काँग्रेस के महासचिव बने। उनके मार्गदर्शन में काँग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गई.
तत्पश्चात् राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आयी जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल थे, गांधी के नेतृत्व में प्रदेश काँग्रेस कमेटियों का निर्माण हुआ.
काँग्रेस में सभी पदों के लिये चुनाव की शुरुआत हुई एवं कार्यवाहियों के लिये भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ, काँग्रेस ने कई प्रान्तों में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये जिनमें छुआछूत, पर्दाप्रथा एवं मद्यपान आदि शामिल थे.
1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के मुख्य राजनैतिक दलों में से एक रही है, इस दल के कई प्रमुख नेता भारत के प्रधानमन्त्री रह चुके हैं, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, नेहरू की पुत्री इन्दिरा गांधी एवं उनके नाती राजीव गान्धी इसी दल से थे.
राजीव गांधी के बाद सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने जिन्हे सोनिया गांधी के समर्थकों ने निकाला तथा सोनिया को हाईकमान बनाया, अब राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष होने के साथ यूपीए की चेयरपर्सन भी हैं, उनके सरकार में मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल तथा काँग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल और राशिद अल्वी, राज बब्बर, राहुल गांधी, मनीष तिवारी भी है, पूर्व भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ॰ मनमोहन सिंह भी इसी दल से ताल्लुक रखते हैं.
समय-समय पर विभिन्न नेताओ ने काँग्रेस की नीतियों का विरोध किया और उसे हटाने के लिये संघर्ष किया। इनमें राममनोहर लोहिया का नाम अग्रणी है जो जवाहरलाल नेहरू के कट्टर विरोधी थे, इसके अलावा जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंका, विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स दलाली काण्ड को लेकर राजीव गांधी को सत्ता से हटा दिया.
लोहिया का 'काँग्रेस हटाओ' आन्दोलनसंपादित करें
राम मनोहर लोहिया लोगों को आगाह करते आ रहे थे कि देश की हालत को सुधारने में काँग्रेस नाकाम रही है। काँग्रेस शासन नये समाज की रचना में सबसे बड़ा रोड़ा है, उसका सत्ता में बने रहना देश के लिये हितकर नहीं है, इसलिये लोहिया ने नारा दिया- काँग्रेस हटाओ, देश बचाओ.

1967 के आम चुनाव में एक बड़ा परिवर्तन हुआ, देश के 9 राज्यों- पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गैर काँग्रेसी सरकारें गठित हो गयीं, लोहिया इस परिवर्तन के प्रणेता और सूत्रधार बने.
सन् 1974 में जयप्रकाश नारायण ने इन्दिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया। आन्दोलन को भारी जनसमर्थन मिला, इससे निपटने के लिये इन्दिरा गांधी ने देश में इमर्जेंसी लगा दी, सभी विरोधी नेता जेलों में ठूँस दिये गये.
इसका आम जनता में जमकर विरोध हुआ, जनता पार्टी की स्थापना हुई और सन् 1977 में काँग्रेस पार्टी बुरी तरह हारी, पुराने काँग्रेसी नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी किन्तु चौधरी चरण सिंह की महत्वाकांक्षा के कारण वह सरकार अधिक दिनों तक न चल सकी.
सन् 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कम्पनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी.
उस समय केन्द्र में काँग्रेस की सरकार थी और उसके प्रधानमन्त्री राजीव गांधी थे, स्वीडन रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया, इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता हैं, इस खुलासे के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमन्त्री बने.
कांग्रेस मैं जब भी टूट हुई अपनों ही ने की, ये दाग़ कभी मुस्लिमों पर नहीं लगा, हमेशा ही मुस्लिमों ने दिल से चाहा लेकिन कांग्रेस ने कभी मुस्लिमों को वो हक़ नहीं दिया जिसका हक़दार हमेशा मुस्लिम रहा है, हमेशा ही कांग्रेस ने मुस्लिमों को झुनझुना दिखाकर बहलाये ओर मुस्लिम नामक लीडर बहलावे मैं आते रहे ओर आज भी साथ हैं. 
एस एम फ़रीद भारतीय 
सम्पादक एनबीटीवी इंडिया डॉट कॉम 

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