हक़ की बुलंद आवाज़
एस एम फ़रीद भारतीय
एस एम फ़रीद भारतीय
एडोल्फ हिटलर २० अप्रैल १८८९ - ३० अप्रैल १९४५ एक प्रसिद्ध जर्मन राजनेता एवं तानाशाह था, वे "राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कामगार पार्टी" (NSDAP) के नेता था, इस पार्टी को प्राय: "नाजी पार्टी" के नाम से जाना जाता है, सन् १९३३ से सन् १९४५ तक वह जर्मनी का शासक रहा, हिटलर को दूसरे विश्वयुद्ध के लिये सर्वाधिक
जिम्मेदार माना जाता है, दूसरे विश्व युद्ध तब हुआ, जब उनके आदेश पर नात्सी सेना ने पोलैंड पर आक्रमण किया। फ्रांस और ब्रिटेन ने पोलैंड को सुरक्षा देने का वादा किया था और वादे के अनुसार उन दोनो ने नाज़ी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
हिटलर की जीवनी
अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया में 20 अप्रैल 1889 को हुआ, उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई, पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में वे वियना गए, कला स्कूल में दाखिल होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे, इसी समय से वे साम्यवादियों और यहूदियों से नफ़रत करने लगे, जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्रांस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया, 1918 ई. में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे, जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ।
1918 ई. में उन्होंने नाज़ी दल की स्थापना की, इसका उद्देश्य साम्यवादियों और यहूदियों से सब अधिकार छीनना था, इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था, इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया, आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाज़ी दल के नेता हिटलर ने अपने मनमोहक भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए, हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्साई संधि को समाप्त करने और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें।
इस प्रकार 1922 ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए, उन्होंने स्वस्तिक को अपने दल का चिह्र बनाया जो कि हिन्दुओ का भी शुभ चिह्र है समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया, भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई, 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया, इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए, वहीं उन्होंने मीन कैम्फ ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी, इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया।
उन्होंने लिखा कि आर्य जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है और जर्मन आर्य हैं, उन्हें विश्व का नेतृत्व करना चाहिए, यहूदी सदा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं, जर्मन लोगों को साम्राज्य विस्तार का पूर्ण अधिकार है, फ्रांस और रूस से लड़कर उन्हें जीवित रहने के लिए भूमि प्राप्ति करनी चाहिए।
1930-32 में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई, संसद् में नाजी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई, 1932 के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में कामयाबी नहीं मिली, जर्मनी की आर्थिक दिशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति की।
1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा, हिटलर ने डॉ॰ जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया, नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया, कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली, 1934 में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया, उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मौत के बाद वे राष्ट्रपति भी बन बैठे, नाजी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया, 1933 से 1938 तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई, नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली।
हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया, सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया।
1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर आक्रमण न करने की संधि हुई, उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाजी दल ने वहाँ के चांसलर डॉलफ़स को मार दिया, जर्मनीं की इस आक्रामक नीति से डरकर रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, इटली वगैरह देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए पारस्परिक संधियाँ कीं।
उधर हिटलर ने ब्रिटेन के साथ संधि करके अपनी जलसेना ब्रिटेन की जलसेना का 35 प्रतिशत रखने का वचन दिया, इसका उद्देश्य भावी युद्ध में ब्रिटेन को तटस्थ रखना था किंतु 1935 में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर की शस्त्रीकरण नीति की निंदा की, अगले वर्ष हिटलर ने बर्साई की संधि को भंग करके अपनी सेनाएँ फ्रांस के पूर्व में राइन नदी के प्रदेश पर अधिकार करने के लिए भेज दीं, 1937 में जर्मनी ने इटली से संधि की और उसी वर्ष आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया, हिटलर ने फिर चेकोस्लोवाकिया के उन प्रदेशों को लेने की इच्छा की जिनके अधिकतर निवासी जर्मन थे।
ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर को संतुष्ट करने के लिए म्यूनिक के समझौते से चेकोस्लोवाकिया को इन प्रदेशों को हिटलर को देने के लिए विवश किया, 1939 में हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के शेष भाग पर भी अधिकार कर लिया, फिर हिटलर ने रूस से संधि करके पोलैड का पूर्वी भाग उसे दे दिया और पोलैंड के पश्चिमी भाग पर उसकी सेनाओं ने अधिकार कर लिया, ब्रिटेन ने पोलैंड की रक्षा के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं, इस प्रकार दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ।
फ्रांस की हार के बाद हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूम सागर पर अपना कब्ज़ा कायम करने का ख़्याल किया, इसके बाद जर्मनी ने रूस पर हमला किया, जब अमरीका दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल हो गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति बिगड़ने लगी, हिटलर के सैनिक अधिकारी उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे, जब रूसियों ने बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल 1945, को आत्महत्या कर ली, प्रथम विश्वयुद्ध के विजेता राष्ट्रों की संकुचित नीति के कारण ही स्वाभिमनी जर्मन राष्ट्र को हिटलर के नेतृत्व में आक्रमक नीति अपनानी पड़ी।
हिटलर का उत्थान
पहले विश्व युद्ध के बाद जहाँ एक तरफ़ तानाशी सोच पैदा हुई, वहीं दूसरी तरफ़ जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजी दल की स्थापना हुई, जर्मनी के इतिहास में हिटलर का वही स्थान है जो फ्रांस में नेपोलियन बोनाबार्ट का, इटली में मुसोलनी का और तुर्की में मुस्तफा कमालपाशा का, हिटलर के पदार्पण के फलस्वरुप जर्मनी का कार्यकलाप हो सका।
हिटलर का चांसलर बनना-
बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उन्हे चांसलर बनने के लिए आमंत्रित किया गया, 1933 में उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया, 1934 में उन्होने राष्ट्रपति और चांसलर के पद को मिलाकर एक कर दिया, और उन्होंने राष्ट्र नायक की उपाधि धारण की, इस प्रकार उनके हाथों में समस्त सत्ता केंद्रित हो गई, इस तरह अपनी अलग सोच के बल पर लगातार आगे बढ़ता गया और विश्व में महान व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया, हिटलर तथा उनकी पार्टी के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे जो इस प्रकार है।
वर्साय की संधि-
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप राष्ट्रों ने वर्साय की संधि की, जिसका प्रमुख उद्देश्य जर्मनी को कुचलना था, इसके द्वारा जर्मनी को आर्थिक राजनीतिक तथा अंतराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से पुर्णत: पंगु बना दिया गया, वस्तुत: वर्साय की संधि जर्मनी की सारी तकलीफों की जड़ थी, जर्मन निवासी अपने प्राचीन गौरव को फिर से पाना चाहते थे और वह एक ऐसे नेता की तलाश में थे जो उनके राष्ट्र कलंक को मिटाकर जर्मनी के गौरव का पुर्ण उत्थान कर सके।
हिटलर के व्यक्तित्व में उन्हें ऐसा नेता की तस्वीर दिखाई दी, उन्हें यह यक़ीन हो गया की हिटलर के नेतृत्व में ही जर्मनी आगे बढ़ेगा, हिटलर ने वर्साय की संधि की आलोचना करनी शुरु कर दी और लोगों के दिल में इसके लिए नफरत पैदा कर दी, उन्होंने जर्मन जाति के एक राजनीतिक सुत्र में बाँध कर लोगों के समक्ष जर्मन निर्माण का प्रस्ताव रखा, वे भाषण देने की कला में प्रवीण थे उनकी आवाज़ जादू का काम करती थी, यह कहा जा सकता है कि हिटलर ने अपनी जुबान की ताकत से जर्मनी की सत्ता हथिया ली।
जाति धर्म की सोच ने भी हिटलर के आगे बढ़ने में पूरी मदद की, जर्मनी ख़ुद भी वीर और अनुशासन प्रिय होते है, अत: उन्होंने हिटलर के अधिनायकवाद को स्वीकार कर लिया, हिटलर ने जनता के सामने कोई नवीन कार्यक्रम नहीं रखा उन्होने वहीं किया जो व्हीगल, कॉन्ट और किक्टे वगैरा कर चुके थे, उनकी विचारधारा संपूर्ण जर्मन विचारधारा का निचोड़ ली इसलिए जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
आर्थिक संकट-
जर्मनी में आर्थिक संकट के चलते भी हिटलर का उत्थान हुआ, वर्साय की संधि के फलस्वरुप जर्मनी की आर्थीक स्थिति काफी खराब हो गई थी, हिटलर ने जनता को पूँजीपतियों और यहुदियों के खिलाफ भड़काना शुरु किया, 1930 में जर्मनी ने 50 लाख से अधिक व्यक्ति बेकार हो गए थे, वे सभी हिटलर के समर्थक बन गए, यह भी कहा जा सकता है कि आर्थीक संकट के चलते हिटलर तथा उसकी पार्टी को काफी सफलता मिली।
यहुदी विरोधी भावना- इस समय संपूर्ण जर्मनी में यहुदियों के खिलाफ असंतोष फैला हुआ था, जर्मनी की पराजय के लिए यहुदियों को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा था, हिटलर इसे भली- भांती जानता था, जनता का कद्र करते हुए उन्होंने यहुदियों को देश से निकालने की घोषणा की, हिटलर की इस घोषणा से जनता ने इसका साथ देना शुरु किया।
साम्यवाद का विरोध-
हिटलर के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण साम्यवाद का विरोध भी था, हिटलर ने साम्यवादियों के खिलाफ नारा बुलंद किया और जनता का दिल जीत लिया, इस समय पूँजीपति, जमींदार, पादरी सभी साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रभाव से आतंकित था, वे जर्मनी को साम्यवाद के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे, इसलिए हिटलर ने साम्यवाद की तीखी आलोचना की और इसके विकल्प में राष्ट्रीय समाजवाद का नारा बुलंद किया जो नाजी दल का दुसरा रूप था।
संसदीय परंपरा का अभाव-
वहाँ के संसदीय शासन में दुगुर्णों के चलते भी जनता में काफी असंतोष था, वे इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे, जब राजनीतिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्ता साफ हो जाता है जर्मन के साथ भी यही बात हुई, संसदीय शासन प्रणाली में जब उनका विश्वास समाप्त हो गया तो उन्होंने हिटलर का साथ देना शुरु किया।
जर्मनी जनता की प्रवृति-
जर्मनी जनता की अभिरुचि सैनिक जीवन में थी, वे स्वबाव से वीर और सैनिक प्रवृत्ति के थे परन्तु वर्साय की संधि के द्वारा वहाँ की सैनिक संख्या घटा दी गई थी, यानि काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके थे, हिटलर तथा उनकी पार्टी के सदस्य जनता की स्थिति से भली भांति परिचित थे, अत: जब उन्होंने स्वंयसेवक सेना का गठन किया तो भारी संख्या में युवक उसमें भर्ती होने लगे, इससे बेकारी की समस्या का भी समाधान हुआ और हिटलर को उत्थान करने का मौका मिला।
ये थी एक तानाशाह की तानाशाही ज़िंदगी जिसने अपनी थोड़ी सी ख़ुशी के लिए लाखों ज़िंदगियों को दाव पर लगाकर जर्मन को बर्बाद कर दिया ओर ख़ुद का क्या हुआ ख़ुदकुशी ...?
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