Friday, 13 October 2017

पत्रकारिता पवित्रता का दूसरा नाम है ?

हमारे देश में आज भी प्रेस अर्थात मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन आज देश में स्तंभ के लिए जहां से खूंटे तैयार किये जा रहे हैं, वहां की हालत कैसी है यह भी एक गंभीर मुद्दा है, दूसरे शिक्षा की तरहां इसे भी उसी भीड़ में शामिल करके देखा जा रहा है, जो किसी खतरे से कम नहीं है, मीडिया संस्थान मोटी रकम वसूल कर पत्रकार बनाने की बात करते हैं वहीं युवा रोजगार और मीडिया की बाहरी चका-चौंध से प्रेरित होकर पत्रकारिता के संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं.

मुझे ये लिखते हुए बिल्कुल झिझक नहीं कि आज मीडिया की समाज के प्रति क्या जिम्मेदारियां है और मीडिया में चल रहे संक्रामण काल में उन्हें किस तरीके से अपने फ़र्ज़ को निभाते हुए एक ज़िंदा पत्रकार का रोल अदा करना चाहिए लेकिन वो कर क्या रहे हैं, आज उन्हें सच की तालीम (शिक्षा) न देकर प्रबंध की तालीम दी जा रही है जो गलत भी नहीं है लेकिन जिस तरीके से पत्रकार तैयार किये जा रहे हैं उसमें वहीं पर पत्रकारिता की आत्मा को मार दिया जा रहा है, हां कुछ बड़े मीडिया समूह इनमें से अधिकतर को अपने साथ रख लेते हैं लेकिन उनका क्या हो रहा है जो भारी भरकम फीस देकर इन संस्थानों में टीवी स्क्रीन पर चमकने का ख़्वाब लेकर पहुंचते हैं, मीडिया शिक्षा देश में अभी भी बचपने के हालात में है और पिछले कुछ सालों से भी इसका प्रचार प्रसार भी हुआ है.

साथियों मीडिया शिक्षा के लिए देश में दो सरकारी विश्वविद्यालय हैं, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद रायपुर में स्थापित विश्वविद्यालय की स्थापना जिन उद्देश्यों के साथ वर्तमान दौर को देखते हुए की गई थी वह मीडिया के संक्रमण काल में पत्रकार तैयार करने के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है, लेकिन अभी भी इस ओर गंभीरता से बहुत कुछ करने की जरूरत है, देश में मीडिया शिक्षा संस्थानों की हालत कैसी है झांककर देखने की जरूरत है, कई ऐसे संस्थान है जहां क्षेत्रवाद और जातिवाद की बात सुर्खियों के माध्यम से चर्चे में भी आती रही है.

आईआईएमसी,बीएचयू और जामिया मिलिया की बात करें तो यहां मध्यम वर्गीय परिवार का हुनरमंद युवा पत्रकारिता की शिक्षा भारी भरकम फीस आसानी से सहन नहीं कर पाता, ऐसे में इन संस्थानों तक ऐसे युवक युवतियां ही पहुंच पा रहे है जो रईस परिवारों से तालुकात रखते हैं.

हालत ऐसी है कि प्रोफेशनल होने का चादर ओढकर पत्रकारिता के लिए निकलने वाले इन नये पत्रकारों से समाज की धरातल कोसों दूर रहती है ऐसे में ये आम आदमी की आवाज तो कम ही बन पाते हैं उससे ज्यादा चाटूकारिता कर आगे बढऩे का ख्वाब देखते हैं और इसमें कुछ क्या ज़्यादातर सफल भी हो रहे हैं.

लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि ये कम से कम पत्रकार नहीं बन पाते, पत्रकारिता की नीति शास्त्र भी कहता है कि पत्रकारिता एक पेशा भर नहीं है बल्कि उसके बहुत ऊपर की एक सोच है, यह एक मिशन है जो सामाजिक न्याय, मानवता, समरसता, स्वतंत्रता, सत्य के लिए कटिबद्ध है, समय की मांग व ठोस वास्तविकता है कि पत्रकारिता के मूल्यों की हिफ़ाज़त हर कीमत पर की जानी चाहिए.

अफ़सोस की बात ये है कि कई मीडिया शिक्षा संस्थान सिर्फ डिग्रीधारी पत्रकार बनाने की फैक्ट्री से ज्यादा कुछ भी नहीं दिखते, वहीं सरकारी संस्थानों की बात करें तो यहां राजनैतिक पहुंच के कारण कोई भी किसी भी पद का मालिक बन बैठता है, उसकी योग्यता और दक्षता को मापने की जरूरत ही नहीं समझी जाती.

यहां ये बताना भी लाजमी होगा कि इन संस्थानों से निकलने वाले पत्रकर ऐसे भी हैं जिन्हें हिन्दी में ठीक से एक पैरा तक लिखना नहीं आता और न ही कैमरा को ट्राईपोड में रखना आता है, ऐसे में क्या मतलब हुआ, ऐसे पत्रकारिता के सरकारी संस्थानों का, अगर कोई संस्थान खुद को नया बताकर अपने छात्रों को नीव का पत्थर कहकर उन्हें खुश करने की कोशिश करें तो यह कहां तक सही है सोच का विषय है ?

अब आते हैं आज की चमक-दमक वाले या शोकिया निकलने वाले अख़बार ओर पत्र पत्रिकाओं पर यहां भी कुछ अपने समाज के नाम से तो कुछ धर्म के नाम पर पत्र पत्रिकाओं को निकालें का ऐलान करते हैं ओर वो समाज की सेवा के नाम पर ही समाज को लूटने वाले कब बन जाते हैं पता ही नहीं चलता ?

आज अख़बारों पर तो नई सलाम ने कुछ अंकुश लगाया है लेकिन टीवी मीडिया मैं इसकी बाढ़ सी आ गई है जहां पत्रकारिता के नाम पर व्यापार किया जा रहा है, आज ऐसे लोग चैनल के लोगो का माइक हाथ मैं लेकर शहर मैं घूमते नज़र आ जायेंगे जिनको पत्रकारिता की ए बी सी डी भी नहीं मालूम, वहीं इस व्यापारी व्यवस्था से कुछ पत्रकारों के सम्मान को ठेस पहुंची ओर उन्होंने पत्रकारिता को ही अलविदा कह दिया.

ऐसे सैंकड़ों पत्रकारों को मैं जानता हुँ जो पत्रकारिता की जान है लेकिन आज उनकी क़लम ख़ुद उनकी ईमानदारी से बेजान है, मगर आज वो लोग पत्रकारिता को मज़ाक़ बनाये हुए हैं जो सच मैं ख़ुद एक पत्रकार की क़लम की बड़ी ख़बर हैं, ऐसे लोग आज भारी तादाद मैं हमारे बीच हैं ये आप देख भी रहे होंगे?

लेकिन आज मैं यहां बड़ी ही ईमानदारी से एक बात कहना चाहुंगा कि हम अगर किसी ऐसे समूह से जुड़े हैं या जुड़ने जा रहे हैं तब हम ख़्याल रखें पत्रकारिता से ऐसे लोगों को जोड़े जो सच मैं पत्रकारिता की गरिमा को बढ़ाने मैं साथी हो सकते हैं वरना चाटूकारिता को पत्रकारिता कहकर बदनाम ना करायें या करें.

एक सही पत्रकार का काम अपने आसपास की गंदगी को निडरता से देश ओर देश की जनता के सामने लाकर उसका समाधान करना होता है जो किसी एक से उसका बनकर चिपक जाये वो पत्रकार नहीं हो सकता हां चापलूस कह सकते हैं, पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया दोस्तों .

आपका दोस्त ख़ादिम
एस एम फ़रीद भारतीय

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