नई दिल्ली. लोकपाल संसदीय समिति की रिपोर्ट 17 असहमति पत्र के साथ शुक्रवार को संसद में पेश कर दी गई। रिपोर्ट में लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की बात कही गई है। इस बिंदु को संसद में पारित करने के लिए खासी कवायद जरूरी होगी। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में शामिल करने का फैसला संसद पर छोड़ा गया है।
राज्यसभा में संसदीय समिति के चेयरमैन अभिषेक मनु सिंघवी ने जबकि लोकसभा में समिति के सदस्य पिनाकी मिश्रा ने रिपोर्ट रखी। इस रिपोर्ट को अब संबंधित मंत्रालय (कार्मिक एवं लोक शिकायत) बिल की शक्ल में कैबिनेट की मंजूरी के लिए पेश करेगा। सूत्रों के मुताबिक प्रबल संभावना है कि सरकार अंतिम बिल में ग्रुप सी कर्मियों को शामिल करने की टीम अन्ना की मांग मंजूर कर सकती है। अभिषेक मनु सिंघवी ने बिल पास होने में देरी की अटकलों को निराधार करार दिया।
समिति के चेयरमैन अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि समिति ने 24 मुद्दों पर विचार किया।
इनमें से 13 मुद्दों पर पूरी तरह एक राय थी। कार्मिक लोक शिकायत विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में कुल 17 असहमति पत्र (डिसेंट नोट) शामिल थे, जिसमें से तीन कांग्रेसी सांसदों के थे। रिपोर्ट में खासतौर पर तीन बिंदुओं ग्रुप सी, प्रधानमंत्री और सीबीआई के सवाल पर खासे मतभेद सामने आए थे।
करीब 57 लाख की विशाल संख्या वाले ग्रुप सी कर्मियों को लोकपाल के दायरे में शामिल न करने के खिलाफ कांग्रेसी सांसद मीनाक्षी नटराजन, दीपा दास मुंशी और पीटी थॉमस ने भी अपने असहमति पत्र सौंपे थे। इन सांसदों ने सीबीआई और सीवीसी को भी लोकपाल के दायरे में रखने की वकालत की थी।
इस रिपोर्ट में सीबीआई को भ्रष्टाचार के उन मामलों में छानबीन का अधिकार दिया गया है जिसे लोकपाल प्राथमिक जांच के बाद सौंपेगा। सीबीआई डायरेक्टर के चयन में भी लोकपाल का कोई रोल नहीं होगा। मगर सबसे अधिक असहमति पत्र ग्रुप-सी कर्मियों को लोकपाल के दायरे से बाहर करने के खिलाफ है। 13 सदस्यों ने अकेले इसी मुद्दे पर असहमति का पत्र सौंपा। सूत्रों के मुताबिक लगातार बढ़ते इस विरोध को संतुलित करने के मकसद से सरकार अंतिम बिल में ग्रुप सी कर्मियों को लोकपाल के दायरे में लाने का फैसला कर सकती है।
और बढ़ेगा भ्रष्टाचार :
टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह व्यवस्था लागू हुई तो भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने की प्रणालियां और कमजोर होंगी। उन्होंने लोगों से इसका विरोध करने की अपील की। प्रशांत भूषण ने कहा कि समिति ने बहुत कमजोर रिपोर्ट पेश की है। भ्रम रहेगा कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सीबीआई करेगी या लोकपाल।
क्या है रिपोर्ट में
सीबीआई पर
लोकपाल मामले की प्रारंभिक जांच कर उसे सीबीआई को सौंपेगा। तीन सदस्यीय लोकपाल पीठ एजेंसी को जांच देने का फैसला लेगी। सीबीआई जांच में हस्तक्षेप नहीं। जांच के आधार पर लोकपाल अभियोजन की कार्यवाही करेगा।
सांसदों के आचरण के बारे में
संसद के भीतर सांसदों के विशेषाधिकार से संबंधित संविधान का अनुच्छेद 105 सही है। इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए। इस मुद्दे पर सभी दलों और समिति में एक राय है।
सिटीजन चार्टर
इसकी खातिर अलग कानून लाया जाए।
ग्रुप-सी और डी के कर्मी
केंद्रीय सतर्कता आयोग के दायरे में होंगे। राज्यों में लोकायुक्त के दायरे में होंगे।
गलत या फर्जी शिकायतों के बारे में
अधिकतम छह माह की साधारण कैद। 25 हजार से अधिक का जुर्माना नहीं।
न्यायपालिका पर
इसे लोकपाल के दायरे में न लाया जाए। अलग न्यायिक जबावदेही बिल हो।
लोकपाल चयन समिति पर
इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे। प्रतिष्ठित व्यक्ति का चुनाव सीएजी, सीईसी, और यूपीएससी चेयरमैन की कमेटी करेगी।
लोकपाल खोज कमेटी
लोकपाल का नाम सुझाने की इस कमेटी में कम से कम 7 सदस्य होंगे। इसमें 50 फीसदी एससी, एसटी, माइनॉरिटी और महिलाओं के लिए आरक्षण होगा।
दबाव में सरकार
सरकार दबाव में काम कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बीमार हैं और वे हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। ऐसे में साफ है कि सरकार पर राहुल गांधी का दबाव है, जो लोकपाल का गठन नहीं चाहते हैं।’
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