Monday, 3 September 2012

मसूद की दरगाह पर- लोग यहां मन्नतें मांगने के लिए आने लगे...?


बहराइच- सालार मसूद गाजी यहीं मारा गया था, महमूद गजनवी का भांजा, उसकी पूरी फौज जिस जगह जंग में मारी गई, वह अब दूर तक फैली पुरानी कब्रों का एक बड़ा इलाका है, सालार मसूद की कब्र की प्रसिद्धि वक्त के साथ एक सूफी संत की शक्ल में हो गई, लोग यहां मन्नतें मांगने के लिए आने लगे, अब यह हर रोज सैकड़ों श्रद्धालुओं की चहल-पहल से आबाद जगह है, यहां सवा सौ कर्मचारियों का अमला देखभाल करता है.


महमूद गजनवी ने भारत पर 17 हमले किए, मथुरा, विदिशा और सोमनाथ समेत कई प्राचीन शहरों और मंदिरों की तबाही उसके नाम दर्ज है, लेकिन उसके शुरुआती हमले यूपी के इसी इलाके में हुए थे, यह इलाका उसकी फौजों ने कई बार रौंदा। 1032 में उसका भांजा सालार मसूद भी यहां आया, स्थानीय राजा सुहैलदेव ने 17 स्थानीय हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना के साथ उसका मुकाबला किया, तुर्की, अफगान और मुगल शासकों के खिलाफ हुई तमाम लड़ाइयों में बहराइच की यह जंग भारत के इतिहास में बेहद अहम मानी जाती है, सुहैलदेव के मुकाबले में सालार मसूद की सेना टिक नहीं सकी, उसके साथ उसके सारे प्रमुख सरदार यहां मारे गए, जिस जगह इनकी कब्रें बनीं वह गंजे-शहीदां कहलाती है, गंजे शहीदां यानी शहीदों का गंज, शहीद यानी मौत के मुंह में गए वे हमलावर जो काफिरों से जंग में मरे, मसूद को गाजी मियां भी कहते हैं, गाजी मतलब इस्लाम के लिए लड़ने वाला...

यह आसपास छोटी-बड़ी कई कब्रों से घिरी एक पुरानी दरगाह है, जहां हर साल लाखों लोग हाजिरी दर्ज करते हैं, जेठ के महीने में एक मेला लगता है। दूर-दूर से लोग यहां आकर शिरकत करते हैं, लोगों ने बताया कि इसमें आसपास के जिलों और ग्रामीण इलाकों से आए 80 फीसदी हिंदू होते हैं, मैं जिस सुबह दरगाह पर पहुंचा, मैंने देखा कि कई हिंदू परिवार अपने बच्चों के मुंडन यहां करा रहे थे, ये ग्रामीण श्रद्धालु थे, मन्नत पूरी होने पर लोग हिंदू तीर्थो की तरह यहां भी अपने बच्चों के मुंडन कराने आते रहते हैं...

खुर्शीद अनवर रिजवी 20 साल से दरगाह के प्रबंधक हैं, इंतजामिया कमेटी के मातहत करीब सवा सौ कर्मचारी इस दरगाह की देखभाल के लिए तैनात हैं, उनसे मुलाकात कमेटी के दफ्तर में हुई, रिजवी बताते हैं कि सालार मसूद के खिलाफ एक ही बात थी और वो यह कि वे महमूद गजनवी के भांजे थे, हकीकत यह थी कि वह महमूद के दरबार से बेदखल थे, क्योंकि महमूद की नीतियों से वह सहमत नहीं थे, अहमद हसन महमंदी महमूद के वजीर थे और मसूद के मुखालिफ थे, क्योंकि मसूद स्पष्ट वक्ता थे, यह बात उनके खिलाफ जाती थी, 18 साल की उम्र में अविवाहित सालार मसूद यहां भारी-भरकम फौज के साथ आए, मसूद की मूल कब्र की पहचान फिरोजशाह तुगलक ने कराई और दरगाह की शक्ल दी, रिजवी के मुताबिक यह इलाका बौद्ध धर्म के वर्चस्व वाला इलाका था, यहां समाज का निचला तबका बेहद दबी-कुचली हालत में था, ऊंची कौम के लोग उन पर जुल्म करते थे, उन्हें इंसानियत का दर्जा तक नहीं था, मेरठ से कन्नौज तक ठाकुर यहां टैक्स वसूलते थे, तुर्कदंड के नाम से यह टैक्स कुल कमाई का आधा हिस्सा हुआ करता था, इन ठाकुर जागीरदारों ने सैयद सालार मसूद के लिए हुकूमत ऑफर की, मसूद के पिता बाराबंकी में रुक गए, उनकी मजार वहीं है, गजनी से सिंध, कश्मीर, मेरठ, मुरादाबाद, पीलीभीत होकर वह इस तरफ आए, रिजवी की दलील है कि सुहैलदेव ने महमूद के नाम पर मसूद के खिलाफ ठाकुरों को इकट्ठा किया, इस जंग में मसूद यहां ‘शहीद’ हुए...

दिलचस्प यह है कि यहां आने वालों को इतिहास का कोई इल्म नहीं है, न हिंदुओं को, न मुसलमानों को, उनके लिए यह सिर्फ मन्नत मांगने और मन्नत पूरी होने की जगह है, कौन यहां दफन है, इसकी जानकारी एक फीसदी लोगों को भी नहीं है, रिजवी यह नहीं बता पाए कि यह तथ्य किस समकालीन इतिहासकार ने दर्ज किए हैं, मैं भी दरगाह के भीतर गया, कुछ मौलवी वहां थे, श्रद्धालुओं से उनका नाम पूछते और कब्र की तरफ मुखातिब होकर दुआ मांगते, बिल्कुल हिंदु मंदिरों की प्राचीन परंपरा के अनुसार, जहां पुरोहित आपसे अभिषेक के पहले नाम और गोत्र पूछते हैं, बहराइच श्रावस्ती के पास है, श्रावस्ती का ताल्लुक गौतम बुद्ध से है, वे यहां कई बार आए थे, रास्ते में मैं एक प्राचीन मंदिर के खंडहरों तक भी गया, यह जैनियों के र्तीथकर संभवनाथ का जन्म स्थान है, पकी हुई ईंटों से बने शानदार स्मारकों में से एक, लेकिन यह ढाई हजार साल पुराने वाकए हैं, तब से यह इलाका इतिहास की अनगिनत सुनामियों को झेलकर धक्के झेलते हुए बाहर निकला है, इसकी शक्लें कई बार बदली हैं, सालार मसूद को खत्म करने वाले राजा सुहैलदेव श्रावस्ती के ही थे...

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. एसके भट्ट बताते हैं कि श्रावस्ती-बहराइच बौद्ध प्रभाव वाला इलाका रहा है, इस्लाम भले ही यहां गजनवी और मसूद जैसे अनगिनत हमलावरों के साथ दाखिल हुआ, लेकिन बाद में इस्लाम पर बौद्ध धर्म का गहरा असर रहा, इसीलिए सालार मसूद की कब्र पर मनाए जाने वाले सालाना उर्स पर सिकंदर लोदी ने सख्त रोक लगा दी थी, वह इस परंपरा में हिंदुओं की मूर्तिपूजा के प्रभाव से नाखुश था, ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से प्रकाशित किताब स्टडी इन इस्लामिक कल्चर इन इंडियन एनवायरमेंट में अजीज अहमद ने भी इस बात की पुष्टि की है कि सालार मसूद की दरगाह पर होने वाले जलसों पर सिकंदर लोदी ने प्रतिबंध लगा दिया था, ऐतिहासिक सच अपनी जगह हैं लेकिन यहां आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को इतिहास के बारे में कुछ नहीं मालूम.....।


सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...