Monday, 8 August 2016

राष्ट्रगान पर हमेशा राजनीति क्यूं ?

जानिए क्या है जन गण मन...का मतलब..
शब्द =अंग्रेजी अर्थ= हिंदी पर्यायवाची
जन= People= लोग
गण= Group= समूह
मन= Mind = दिमाग
अधिनायक= Leader= नेता
जय हे= Victory= जीत
भारत= India= भारत
भाग्य= Destiny= किस्मत
जय हे= Victory= जीत
भारत= India= भारत
भाग्य= Destiny= किस्मत
विधाता= Disposer= ऊपरवाला
पंजाब= Punjab= पंजाब
सिंधु= Sindhu =सिंधु
गुजरात= Gujarat= गुजरात
मराठा= Maratha= मराठा (महाराष्ट्र)
द्रविण= South= दक्षिण
उत्कल= Orissa= उड़िसा
बंगा= Bengal= बंगाल
विंध्य= Vindhyas= विन्धयाचल
हिमाचल= Himalay= हिमालय
यमुना= Yamuna = यमुना
गंगा= Ganges = गंगा
उच्छलय= Moving= गतिमान
जलधि= Ocean = समुद्र
तरंगा= Waves = लहरें ( धाराएं)
तब = Your = तुम्हारा
शुभ = Auspicious = मंगल
नामे = name = नाम
जागे= Awaken = जागो
तब = Your = तुम्हारा
शुभ = Auspicious = मंगल
आशीष= Blessings = आशीर्वाद
मांगे = Ask = पूछो
गाहे = Gaahe = गाओ
तब = Your = तुम्हारी
जय = Victory = जीत
गाथा = Song = गीत
जन = People = लोग
गण = Group = समूह
मंगल = Fortune = भाग्य
दायक = Giver = दाता
जय हे = Victory Be = जीत
भारत = India = हिंदुस्तान
भाग्य  = किस्मत
विधाता = Dispenser= ऊपरवाला
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे.= Victory, Victory, Victory, Victory Forever =
विजय, विजय, विजय, विजय हमेशा के लिए.
मान लिया यही मतलब है, तब हमारे लिया क्या कहता है कानून समझ लें ?

हमारी सब बहस बकवास है ओर अपने आपको बिन जाने ओर समझे फ़िज़ूल की बहस मैं उलझाकर खुद के साथ दीन ओर इस्लाम को बदनाम करने के सिवा कुछ नहीं वो भी तब जब इसके गायन पर फ़ैसला हो चुका हो बार बार हर बार एक ही बात को उठाना जायज़ नहीं है.
जनगण के मनों के अधिनायक (नरेश) की जय हो
बोलरवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) १९११, संगीतरवीन्द्रनाथ टैगोर राष्ट्रीयगान घोषित१९५०.
जब इसको लिखा गया तब मुल्क मैं अंग्रेज़ी हुकुमत थी ओर रविन्द्रनाथ टैगोर ने इसको अंग्रेज़ों की शान मैं लिखा था, चापलूसी भी कह सकते हैं.

राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड है, कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २० सेकेण्ड का समय लगता है, संविधान सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रुप में २४ जनवरी १९५० को अपनाया था, इसे सर्वप्रथम २७ दिसम्बर १९११ को कांग्रेस के कलकत्ता अब दोनों भाषाओं में (बंगाली और हिन्दी) अधिवेशन में गाया गया था, पूरे गान में ५ पद हैं.
इसको समझने मैं हम ओर हमारे नेता हमेशा ही नाकाम रहे हैं ऐसा नहीं है.
जब राष्‍ट्र गान गाया या बजाया जाता है तो श्रोताओं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए, यद्यपि जब किसी चल चित्र के भाग के रूप में राष्‍ट्र गान को किसी समाचार की गतिविधि या संक्षिप्‍त चलचित्र के दौरान बजाया जाए तो श्रोताओं से अपेक्षित नहीं है कि वे खड़े हो जाएं, क्‍योंकि उनके खड़े होने से फिल्‍म के प्रदर्शन में बाधा आएगी और एक असंतुलन और भ्रम पैदा होगा तथा राष्‍ट्र गान की गरिमा में वृद्धि नहीं होगी। जैसा कि राष्‍ट्र ध्‍वज को फहराने के मामले में होता है, यह लोगों की अच्‍छी भावना के लिए छोड दिया गया है कि वे राष्‍ट्र गान को गाते या बजाते समय किसी अनुचित गतिविधि में संलग्‍न नहीं हों.

 क्या ये आज तक अछूता रहा है, क्या इसपर बहस ओर इसके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठी ऐसा नहीं है, बहुत कुछ हुआ है ओर हमारे हक़ मैं भी हुआ है, लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे हैं जो बिन जाने बिन समझे बस हालातों को ख़राब करते हैं.
कब क्या हुआ समझ लें ?
क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोए एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य AIR 1987 SC 748 [3] नाम के एक वाद में उठाया गया, इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि इन्होने राष्ट्र-गान जन-गण-मन को गाने से मना कर दिया था, यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्र-गान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गाते नहीं थे, गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था, सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस लेने को कहा, सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है, अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता.

इस राष्ट्रगान के ख़िलाफ़ बहुत से हिन्दु संगठन आवाज़ उठा रहे हैं ओर अपनों को समझा रहे हैं कि ये चापलूसी मैं गाया गया गाना है राष्ट्रगान कैसे हो सकता है?
लेकिन हम हैं कि बिन सोचे समझे इसकी बुराई अपने सर लेने से बाज़ नहीं आते, ऊपर लिखा फ़ैसला हमारे हक़ मैं आया है तब हमको फैसले के मुताबिक काम करना चाहिऐ बस मैं तो यही कहुंगा .
एस एम फ़रीद भारतीय 
शायद एक पागल इंसान.

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