Sunday 10 September 2017

एफ़आईआर ओर आपके अधिकार क्या हैं ?

एस एम फ़रीद भारतीय
किसी अपराध की सूचना जब किसी पुलिस ऑफिसर को दी जाती है तो उसे एफआईआर कहते हैं, यह सूचना लिखित में होनी चाहिए या फिर इसे लिखित में परिवर्तित किया गया हो, एफआईआर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुरूप चलती है, एफआईआर संज्ञेय अपराधों में होती है, अपराध संज्ञेय नहीं है तो एफआईआर नहीं लिखी जाती.
जी हाँ हम आपको कानून व्यवस्था में
एफआईआर क्या है के बारे में वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा मिली जानकारी विस्तार से देने जा रहे हैं.
शिकायत कहां पर दर्ज करवाएं:
शिकायतकर्ता अपराधिक क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले पुलिस थाने में जाकर थाना प्रभारी को अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। अगर शिकायत फोन पर की गई है तो शिकायतकर्ता को बाद में पुलिस थाने जाकर एफआईआर का पंजीकरण करवाना चाहिए.

यदि थाना प्रभारी थाने में मौजूद न हो:
यदि थाना प्रभारी थाने में मौजूद न हों तो इस स्थिति में थाने में मौजूद सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

अगर थाना प्रभारी एफआईआर रजिस्टर करने से मना कर दे तो क्या करें :
ऐसा होने पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी को शिकायत कर सकते हैं। पुलिस अधीक्षक या डिवीज़न अधिकारी को शिकायत कर सकते हैं। कानून के मुताबिक सभी अपराधों में एफआईआर करना अनिवार्य है.

जानिए कैसे दर्ज कराएं एफआईआर, इससे जुड़े अति-महत्वपूर्ण पहलू
पुलिस थाने और अस्पताल से हर आदमी का पाला कभी ना कभी जरूर पड़ता है। पर कम जानकारी और कानूनी पहलुओं की अनदेखी से आपका केस मजबूत होते हुए भी मात खानी पड़ जाती है। आईए जानते हैं ऐसी कुछ शुरूआती कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जो एफआईआर से शुरू होती है। किसी भी अपराध की रिपोर्ट पुलिस को दर्ज करवाने के लिए जैसे ही आप थाने में जाते हैं, तो आपको अपने साथ घटे अपराध की जानकारी देने को कहा जाता है। इसमें अपराध का समय, स्थान, मौके की स्थिति इत्यादि की जानकारी पूछी जाती है.

यह सारी जानकारी डेली डायरी में लिखी जाती है। इसे रोज नामचा भी कहा जाता है। बहुत से अनजान लोग इसे ही एफआईआर समझ लेते हैं और अपनी तरफ से संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन इससे आपका मकसद हल नहीं होता है और इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आपके मामले पर पुख्ता कार्यवाही होगी ही। इसलिए जब भी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करवाएं एफआईआर लिखवाएं और इसकी कॉपी लें, यह आपका अधिकार है। एफआईआर दर्ज करने में लापरवाही और देरी के लिए भी आप जिम्मेदार अधिकारी की शिकायत कर सकते हैं। एफआईआर की पहचान के लिए इस पर एफआईआर नंबर भी दर्ज होते हैं जिससे आगे इस नंबर से मामले में प्रक्रिया चलाई जा सके.
अहम बात: एफआईआर पंजीकृत करने के लिए किसी भी प्रकार की फीस नहीं लगती, यदि पुलिस अधिकारी इसकी मांग करता है तो तुरंत उसकी शिकायत बड़े पुलिस अधिकारियों को करें.
एफआईआर करवाते समय इन बातों का रखें ध्यान
एफआईआर तुरंत दर्ज करवाएं। यदि किसी कारण से देर हो जाती है तो फॉर्म में इसका उल्लेख करें। यदि शिकयत मौखिक रूप से दे रहे हैं तो थाना प्रभारी आपकी शिकायत लिखेगा और समझाएगा।
कार्बनशीट से शिकायत की चार कापियां होनी चहिये।
शिकायत को सरल और विशिष्ट रखें। तकनीकी के तहत जटिल शब्दों का प्रयोग न करें.

ध्यान रखें कि आपके आगमन और प्रस्थान का समय एफआईआर और पुलिस स्टेशन के डेली डेरी में अंकित हो गया है।
एफआईआर में मुख्य रूप से क्या-क्या जानकारी देनी चहिये?
आप किस क्षमता में जानकारी दे रहें हैं?
अपराध का दोषी कौन है?
अपराध किसके खिलाफ किया गया है?
अपराध होने का समय क्या था?
अपराध कौन सी जगह पर हुआ?
अपराध किस तरीके से हुआ?
अपराध के समय कोई गवाह थे?
अपराध से होने वाला नुक्सान?
ये सभी प्रक्रिया होने पर शिकायत को ध्यान से पढ़ें और उसके बाद उस पर दस्तखत कर दें.

थाना प्रभारी इसे अपने रिकॉर्ड में रखेगा। शिकायतकर्ता का ये अधिकार है कि इसकी एक कॉपी उसे भी मिले। इसके लिए कोई फीस या शपथ पत्र देने की ज़रुरत नहीं है.
ऑनलाइन एफआईआर
अब शिकायत करने के लिए पुलिस थाने जाने की जरूरत नहीं रही। आप ऑनलाइन अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर थाना प्रभारी आपको फोन करेगा जिसके बाद आप अपनी शिकायत की स्थिति को ऑनलाइन ही ट्रैक कर सकते हैं। ऑनलाइन शिकायत करने के लिए आपको अपना ई-मेल और टेलीफोन नंबर भी दर्ज करांना होगा जिससे पुलिस आपको संपर्क कर सके.

सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी यानि की एफआईआर दर्ज करने को अनिवार्य बनाने का फैसला दिया है। एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश भी न्यायालय ने दिया है। न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि एफआईआर दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर प्राथमिक जांच पूरी की जानी चाहिए। इस जांच का मकसद मामले की पड़ताल और गंभीर अपराध है या नहीं जांचना है। इस तरह पुलिस इसलिए मामला दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है कि शिकायत की सच्चाई पर उन्हें संदेह है.
ये है आपका अधिकार
संज्ञेय अपराध के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।
एफआईआर की कॉपी लेना शिकायकर्ता का अधिकार है। इसके लिए मना नहीं किया जा सकता है.

संज्ञेय अपराध की एफआईआर में लिखे गए घटनाक्रम व अन्य जानकारी को शिकायकर्ता को पढ़कर सुनाना अनिवार्य है। आप सहमत हैं, तो उस पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए.
यह जरूरी नहीं कि शिकायत दर्ज करवाने वाले व्यक्ति को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या फिर उसके सामने ही अपराध हुआ हो.
एफआईआर में पुलिस अधिकारी स्वयं की ओर से कोई भी शब्द या टिप्पणी नहीं जोड़ सकता है.
एफआईआर दर्ज नहीं करें तो करें ये…
अगर थानाधिकारी आपकी शिकायत की एफआईआर दर्ज नहीं करता है या मना करता है, तो आप अपनी शिकायत रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को भेज सकते हैं। उपायुक्त आपकी शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर सकता है.

इसके अलावा एफआईआर नहीं दर्ज किए जाने की स्थिति में आप अपने क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट के पास पुलिस को दिशा-निर्देश के लिए कंप्लेंट पिटीशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के भीतर केस दर्ज कर आपको एफआईआर की कॉपी उपलब्ध करवाए। मैजिस्ट्रेट के आदेश पर भी पुलिस अधिकारी समय पर शिकायत दर्ज नहीं करता है या फिर एफआईआर की कॉपी उपल्बध नहीं करवाता है, तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई और जेल भी हो सकती है.
ये भी हैं काम की बातें
एफआईआर की कॉपी पर उस पुलिस स्टेशन की मोहर और थानाधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए। एफआईआर की कॉपी आपको देने के बाद पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में लिखेगा कि सूचना की कॉपी शिकायतकर्ता को दे दी गई है। आपकी शिकायत पर हुई प्रगति की सूचना संबंधित पुलिस आपको डाक से भेजेगी। आपको और पुलिस को सही घटना स्थल की जानकारी नहीं है, तो भी चिंता की बात नहीं, पुलिस तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर देगी.

हालांकि जांच के दौरान घटना स्थल का थानाक्षेत्र पता लग जाता है तो संबंधित थाने में केस को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। एफआईआर दर्ज करवाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अगर आपसे कोई भी एफआईआर दर्ज करवाने के नाम पर रिश्वत, नकद की मांग करे, तो उसकी शिकायत करें.
एफआईआर में क्या हैं आपके अधिकार
अगर संज्ञेय अपराध है तो थानाध्यक्ष को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफआईआर ) दर्ज करनी चाहिए। एफआईआर की एक कॉपी लेना शिकायत करने वाले का अधिकार है.

एफआईआर दर्ज करते वक्त पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं लिख सकता , न ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है.
संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके हस्ताक्षर कराए.
एफआईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपी आपको दे दी गई है।
अगर आपने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है, तो पुलिस को एफआईआर के साथ आपकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है.

एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो।
अगर किसी वजह से आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाएं, तो घबराएं नहीं। ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी की वजह बतानी होगी.

कई बार पुलिस एफआईआर दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर देती है, जबकि होना यह चाहिए कि पहले एफआईआर दर्ज हो और फिर जांच-पड़ताल.
घटना स्थल पर एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप एफआईआर की कॉपी नहीं ले पाते हैं, तो पुलिस आपको एफआईआर की कॉपी डाक से भेजेगी।
आपकी एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई इस बारे में संबंधित पुलिस आपको डाक से सूचित करेगी.

अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है.
अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रशन पूछ सकता है और फिर निर्णय पर पहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ-साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी.
अगर शिकायत करने वाले को घटना की जगह नहीं पता है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच – पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी तो केस उस थाने को ट्रांसफर हो जाएगा.
अगर एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की केस की जांच-पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है तो इस एफआईआर को Dying Declaration की तरह अदालत में पेश किया जा सकता है.
अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है.
ऐसे अपराधों के मामले जिनमें सात वर्ष तक की सजा हो सकती है, उनमें पुलिस असामान्य वांछित अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। सीआरपीसी की धारा 41 (1) बी और धारा 41-ए के प्रावधानों के तहत यह व्यवस्था नवंबर 2010 से लागू हो चुकी है.
दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 41 में हुए संशोधन के अनुसार अब किसी विशेष परिस्थिति में जब यह संभावना हो कि आरोपी पुन: अपराध कर सकता है तो विवेचक केस डायरी में पर्याप्त कारण लिखने के बाद ही बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकेगा। सात वर्ष से कम सजा वाले अपराधों में धारा 324, 325, साधारण चोरी, मारपीट आदि के मामले आते है। उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी की धारा 41 में पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार हासिल है.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436-ए विचाराधीन कैदी को अधिकतम अवधि तक हिरासत में रखने के बारे में है। इसमें प्रावधान है कि यदि ऐसा कैदी उसके अपराध की अधिकतम सजा की आधी अवधि जेल में गुजार चुका हो तो अदालत उसे निजी मुचलके पर या बगैर किसी जमानती के ही रिहा कर सकती है.
पुलिस से संबंधित महिलाओं के अधिकार
भारतीय नारी आज सशक्त, पढ़ी-लिखी और समझदार है। वह प्रगति के हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ रही है लेकिन शिक्षित होते हुए भी बहुत कम महिलाएं ही पुलिस से संबंधित अपने कानून जानती होंगी.

उदाहरणत: अगर मान लें कि किसी महिला का पर्स चोरी हो जाता है तो शायद ही उसे एफआईआर आदि के बारे में पूरी जानकारी हो। यदि उसे अपने कानूनी अधिकारों की पूरी जानकारी होगी तो कोई उसका शोषण नहीं कर पाएगा.
एफ.आई.आर. (प्रथम सूचना रिपोर्ट)
यदि कोई भी पीड़ित महिला थाने में जाकर किसी भी अत्याचार अथवा हिंसा की प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती है तो वह अपने निम्न अधिकारों का प्रयोग कर सकती है :-
गिरफ्तारी के समय : अगर कोई महिला पुलिस की नजरों में गुनाहगार है और पुलिस उसे गिरफ्तार करने आती है तो वह अपने इन अधिकारों का उपयोग कर सकती हैं :-
आपको आपकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाए.

आप अपने वकील को बुलवा सकती है।
मुफ्त कानूनी सलाह की मांग कर सकती है, अगर आप वकील रखने में असमर्थ है।
गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर आपको मैजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य है.

गिरफ्तारी के समय आपके किसी रिश्तेदार या मित्र को आपके साथ थाने जाने दिया जाए.
अगर पुलिस आपको गिरफ्तार करके थाने में लाती है तो आपको निम्न अधिकार प्राप्त हैं:
गिरफ्तारी के बाद आपको महिलाओं के कमरे में ही रखा जाए.
गिरफ्तारी के समय आपको हथकड़ी न लगाई जाए। हथकड़ी सिर्फ मैजिस्ट्रेट के आदेश पर ही लगाई जा सकती है.
आपको मानवीयता के साथ रखा जाए, जोर-जबरदस्ती करना गैरकानूनी है.

आप पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर मैजिस्ट्रेट से डाक्टरी जांच की मांग करें.
आपकी डाक्टरी जांच केवल महिला डाक्टर ही करें.

महिला अपराधियों के साथ पूछताछ के दौरान कभी-कभी छेड़छाड़ के मामले भी सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में आप इन अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं:-
जुर्म दो प्रकार के होते हैं, जमानती व गैर जमानती, यह आपका अधिकार है कि पुलिस आपको यह बताए कि आपका अपराध जमानती है या गैर जमानती.
जमानती जुर्म में आपकी जमानत पुलिस थाने में ही होगी, यह आपका अधिकार है. गैर जमानती जुर्म में जमानत मैजिस्ट्रेट के आदेश पर ही हो सकती है, इसके लिए आपको अदालत जाना पड़ेगा.
अधिवक्ता – रोहन सिंह चौहान, शिमला
क्या है एफआईआर दायर करने की प्रक्रिया
रिपोर्ट दर्ज करवाने के समय अपने किसी मित्र या रिश्तेदार को अपने साथ ले जाएं.
एफआईआर को स्वयं पढ़ें या किसी और से पढ़वाने के बाद ही उस पर हस्ताक्षर करें.
आपको एफआईआर की एक प्रति मुफ्त दी जाए.
पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न किए जाने पर आप वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अथवा स्थानीय मैजिस्ट्रेट से मदद मांगें. “

पूछताछ के लिए आपको थाने में या कहीं और बुलाए जाने पर आप इंकार कर सकती है.
आपसे पूछताछ केवल आपके घर पर तथा आपके परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में ही की जाए।
आपकी तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाए।
अपनी तलाशी से पहले आप महिला पुलिसकर्मी की तलाशी ले सकती है।

मानवाधिकारों को समझें उनकी रक्षा करें !

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