एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक, पत्रकार, समाजसेवी
मानवाधिकार कार्यकर्ता
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बीते वक़्त उप्र में बहुजन समाज पार्टी की सरकार द्वारा पारित राज्य के चार भागों में बाँटने का एकतरफा प्रस्ताव विधानसभा में पारित किए जाने के बाद राज्यों के पुनर्गठन और छोटे राज्यों के लाभ-हानि को लेकर फिर बहस छिड़ गई थी, इसके पक्ष और विपक्ष में बोलने वाले लोगों के पास अपने-अपने तर्क थे, कुछ लोगों का विचार था, कि राज्यों का छोटा आकार उनके विकास में
सहायक होता है क्यूंकि बड़े राज्यों का प्रशासन सुचारू रूप से चला पाना बहुत मुश्किल है.
वैसे तो यह तर्क कुछ हद तक सही लगता है, लेकिन प्रश्न यह भी है कि राज्यों का आकार यदि छोटा होना चाहिए, तो ये कैसे तय होगा कि आकार कितना हो, साथ ही इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि छोटे राज्यों का गठन होते ही विकास भी हो जाएगा और सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी ?
दोस्तों छोटे राज्यों की भी अपनी समस्याएँ होती हैं, संसाधनों की कमी तो भ्रष्टाचार की ख़ातिर छोटे राज्यों में भी हो सकती है, ऐसे में उस राज्य को अपनी छोटी-छोटी आबश्यकताओं के लिए भी दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ सकता है, जिससे कई बार परेशानियां पैदा हो जाती हैं.
हमारे देश में मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम जैसे कई छोटे-छोटे राज्य हैं, लेकिन वहाँ की जनता विकास से कितनी दूर है, ये बात किसी से छिपी नहीं है, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य लगातार हर क्षेत्र में प्रगति के नए आयाम छू रहा है.
बिहार का विभाजन करके झारखंड का गठन किया गया, लेकिन बिहार तो अब प्रगति के पथ पर बढ़ रहा है और झारखंड में हर समय राजनैतिक अस्थिरता का भय बना रहता है, हालांकि मप्र को विभाजित कर बनाए गए छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले कुछ वर्षों में लक्षणीय प्रगति हुई है, लेकिन उसका भी अधिकांश श्रेय वहाँ की सरकार के काम-काज और मुख्यमंत्री की कार्यशैली को ही दिया जाता है.
इन उदाहरणों को देखकर ऐसा लगता है कि राज्यों के आकार के बजाए राजनेताओं और सरकार की प्रशासन-क्षमता और कार्यकुशलता का स्तर ही विकास होने या न होने का आधार है, कुछ मामलों में ये सही है कि राज्य का आकार बड़ा होने पर विकास में बाधा आती है, जम्मू-कश्मीर इसका एक अच्छा उदाहरण है. इस राज्य का केवल एक-तिहाई भाग (कश्मीर घाटी) ही आतंकवाद से पीड़ित है, लेकिन फिर भी पूरे राज्य के लोगों को इसका परिणाम भुगतना पड़ रहा है, इसलिए पिछले कुछ वर्षों से यह मांग भी उठी है कि राज्य को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख इन तीन भागों में विभाजित कर दिया जाए, ताकि जो भाग आतंकवाद से मुक्त हैं, वहाँ के नागरिक तेज़ी से विकास-पथ पर आगे बढ़ सकें.
लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य में अमरनाथ यात्रा में व्यवधान उत्पन्न करने और सेना के विशेषाधिकार खत्म करने जैसे मुद्दों पर सक्रियता दिखानेवाली राज्य सरकार इस मामले पर मौन है.
एक बड़ी समस्या यह भी है कि राज्यों का विभाजन और पुनर्गठन अनेक विवादों और आपसी संघर्ष को भी जन्म देता है, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच बेलगांव को लेकर आज तक खींचतान चल रही है, न जाने इसको लेकर कितने आंदोलन हो चुके हैं और कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई है.
आन्ध्र को विभाजित कर तेलंगाना के गठन की मांग कर रहे लोग और आन्ध्र प्रदेश राज्य के विभाजन का विरोध कर रहे लोग भी आपस में लगातार संघर्षरत रहे हैं, एक ही देश के नागरिक यदि इस तरह आपस में लड़ते रहें, तो इसका नुकसान पूरे देश को उठाना पडता है.
कई बार ऐसा भी लगता है कि इस तरह के पुनर्गठन और विभाजन की माँग तार्किक न होकर केवल राजनैतिक अवसरवादिता का परिणाम है, अधिकाँश क्षेत्रीय दल इस सच्चाई को समझते हैं कि बड़े राज्यों में सत्ता-सुख हासिल कर पाना उनके लिए एक टेढ़ी खीर है, ऐसे में एक उपाय यह है कि राज्य को छोटे टुकड़ों में बाँटकर इस समस्या को सुलझाया जाए.
लेकिन डर इस बात का भी है कि इस अदूरदर्शिता और अवसरवादिता का परिणाम कहीं ये न हो कि 601 रियासतों में बंटे जिस भारत को लौह-पुरुष सरदार पटेल ने एक सूत्र में पिरोया था, स्वतंत्रता के 60 वर्षों बाद अब वह भारत फिर 600 टुकड़ों में बंट जाए.
बेशक ये सभी तथ्य सोचने पर मजबूर करते हैं लेकिन सवाल यहीं ख़त्म नहीं होता बल्कि शुरू होता है, अब देखें नया तेलंगाना राज्य बना है ओर बनते ही विकास के पथ पर दौड़ने भी लगा है.
अब सवाल है उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का तब इसका हाल वही है जैसा एक मैकअप किये हुई महिला ओर दूसरी बिन मेकअप की हुई महिला का होता है, जानते हैं कैसे ?
आईये बताते हैं हम कहने को उत्तर प्रदेश विकास के पथ पर दौड़ रहा है लेकिन ये विकास सिर्फ़ शहरी इलाकों मैं ही देखने को मिलेगा तब ये हुई मेकअक की हुई महिला के जैसा !
बगैर मेकअप की महिला की हालत देखनी है तब आपको शहर की सीमा से जुड़े गांवों को छोड़कर सड़क से पांच किलोमीटर अंदर जाना होगा वहां मालूम होगा कि कैसा है हमारा उत्तर प्रदेश ओर विकास मैं रोड़ा ओर भ्रष्टाचार भी यहीं से होता है !
मैं बात कर रहा हुँ उत्तर प्रदेश के पश्चिम इलाके की जिसको विकास की तस्वीर के तौर पर पेश किया जाता है ओर ये इलाका सच मैं मेकअप की गई महिला के समान है जबकि शहरी सीमा से पांच किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके आज भी बदहाल हैं, जबकि विकास के लिए पैसा भरपूर मिलता है जिसे कागज़ों मैं ही ख़त्म कर दिया जाता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश की हालत कैसी है ये बताने की ज़रूरत नहीं है, वहां विकास के नाम पर देखने को बस कुछ ही इलाकों मैं आपको मिलेगा, जबकि ज़्यादातर इलाकों की हालत बिहार के इलाकों से भी बदतर है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग करना इसलिए भी ज़रूरी है कि ये इलाका देश की राजधानी से जुड़ा है ओर ये देश का दिल है, भेदभाव मैं सबसे ज़्यादा मार भी हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को बाकी इलाकों से अधिक कीमत सरकारी सुविधाओं की देकर चुकानी पड़ती है.
बिजली पानी सड़क हाऊस टैक्स शिक्षा आदि पर हमसे कई गुना दाम सरकार वसूलती है वहीं सुविधाओं मैं हम पूरे प्रदेश के बराबर हैं, साथ ही वाद विवाद मैं उलझे लोगों को इंसाफ के लिए इलाहाबाद का रूख करना पड़ता जो बहुत ही ख़र्चीला ओर थकान भरा होने के साथ जुर्म की सज़ा से पहले कड़ी सज़ा देने जैसा है.
आज हम पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग मंहगाई अपने कंधों पर लेकर विकास के नाम पर लूट पूरे प्रदेश मैं करा रहे हैं, हमारी गाढ़ी कमाई को कुछ अफ़सर ओर नेता दीमक की तरहां चाट रहे हैं इसको अगर रोकना है तब अपनी आवाज़ को हमें साथ मिलकर बुलंद करना होगा ओर बिन कुर्बानी के मेरे देश मैं इंसाफ़ नहीं मिलता तब हमको कुर्बानी के लिए भी तैयार करना होगा, मैं सबसे पहले अपनी कुर्बानी अपने पश्चिमांचल के लिए देने को तैयार हुँ क्या आप तैयार हैं ???
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