"एस एम फ़रीद भारतीय"
ख़बर की हेड लाईन पढ़कर कुछ अटपटा सा लगा होगा आधा सच आधा झूंठ, मगर ये लेख पूरी तरहां सोच समझकर लिखा गया है जो पूरा सच है, जानने के साथ कोई भी कमेंटस
करने से पहला पूरा पढ़ लें उसके बाद अपनी कीमती रॉय से नवाज़ें...!
जो लिखा गया है उसको बाप के मुकाबिल मां जल्द समझ सकती है ओर में एक लेखक होने के नाते ये सब लिख रहा हुँ, बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए हमारे मुल्क की सरकार ओर लड़की लड़कों के माता पिता दोनों ही बराबर के ज़िम्मेवार ओर दोषी हैं जानते हैं क्यूं...?
जैसा कि आप जानते हैं कुदरत ने जो भी जानदार चीज़ बनाई है उसकी ख़्वाहिश ओर ज़रूरत का एक पैमाना तय किया है ओर हर जानदार चीज़ अपने तय समय पर ही प्रतिक्रिया करती है, इंसान हो या जानवर सबको जीने ओर ख़ुशहाली के लिए खानपान के साथ ओर बहुत सी चीज़ों की ज़रूरत होती है, देखा गया है वालिदेन वक़्त रहते खानपान की समस्या को तो जल्द से जल्द समय पर पूरा करने की कोशिश करते हैं लेकिन एक अहम ज़रूरत को जानकर भी सरकार की तय सीमा से मजबूर होकर उसको समय पर पूरा नहीं कर पाते.
वो अहम ज़रूरत है बालिग होते ही अपने बच्चों के जोड़े बनाना, जी हां हर जानदार के लिए कुदरत ने जोड़े बनाने का एक समय तय किया है ओर उसकी अधिकतर ज़रूरत सिर्फ़ इंसान को छोड़ हर जानदार को समय पर पूरी की जाती भी रही है, जानवरों को पालने वाला जानता है कि कब इसको इसके जोड़े से मिलवाना है कब इसकी वो ज़रूरत पैदा होगी।
यही हाल इंसान का भी है मां अपनी बेटी के बारे में बिल्कुल सही समय को जान जाती है ओर वही बाप को उसका इशारा भी करती है, इंसानी ज़रूरत का समय मुल्क की आबो हवा के अनुरूप होता है, कही बेटियां जल्द बालिग हो जाती हैं तो कहीं देर से ये कुदरत के नियम अनुसार होता है.
मगर कई मुल्कों के साथ हमारे मुल्क में हमारे देश की सरकार ने कुदरत के इस नियम के साथ अपने को शरीक कर कुदरत को चैलेंज किया है, बहाना है बढ़ती आबादी के बोझ से बचने का, जबकि हर एक जानता है कि जो पैदा करता है वही पाल ता भी है, मगर यहां हमारी सरकार अपने को कुदरत से आगे समझकर नये नियम ओर कानून बनाकर बच्चों के माता पिता को उनका फ़र्ज़ अदा करने से रोकती है, सरकार ने उम्र की बंदिश लगा दी है कि इससे पहले जोड़े बनाना कानूनी जुर्म है हां अगर कोई चाहे तो जिस्म बैचने का लाईसेंस लेकर अपनी ख़्वाहिश को पूरा कर सकता है, इसके लिए सरकार को तय किया टैक्स अदा करना होगा.
अब आते हैं माता पिता पर सरकार ने जो समय सीमा उम्र बच्चों की शादी के लिए तय की है वो है लड़की के लिए अठारह ओर लड़के के लिए बीस साल, जबकि कुदरत के लिहाज़ से ये उम्र बारह ओर चौदह वर्ष है, मगर सरकार ओर मां बाप दोनों ही इस सीमा को लांघ जाते हैं, ज़्यादातर मां बाप अपने बच्चों के लिए रिश्ता ढूँढने तभी निकलते हैं जब सरकार का तय किया वक़्त गुज़र जाता है, अब जोड़ा बनाने के लिए लड़का या लड़की तलाश करने भी वक्त लगता है ओर जब मिल जाता है तब भी समय लिए जाता है दोनों को एक करने यानि शादी के बंधन में बांधने के लिए.
अब इसको ऐसे समझो कि जिस काम को करने की ज़रूरत कुदरत ने मुल्क की आबो हवा के लिहाज़ से तय की हो उसके लिए बंदिश लगा दी गई है, कुछ क्या ज़्यादातर बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने घर की इज़्ज़त को समझकर अपनी इस ख़्वाहिश को दबा लेते हैं ओर कोई ग़लत काम नहीं करते, मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जो इसको करने के लिए चोरी छुपे ग़लत राह पर चल देते हैं उनको अपनी ज़रूरत ओर घर की इज़्ज़त दोनों का ही ख़्याल करना पड़ता है.
मगर कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी इस ज़रूरत के लिए घर की इज़्ज़त को दरकिनार कर अपने ही घरवालों ओर रिश्तेदारों से बग़ावत कर देते हैं, वो अपनी ज़रूरत के लिए सबकुछ दाव पर लगा देते हैं, अब ऐसे में कोई कैसे मां बाप को दोषी ठहराये, अगर कोई हिम्मत कर कहता भी है तब वो रोते हुए मजबूर होकर कानून की बात कर अपने को बरी कर लेते हैं, ये कहते हुए कि मुझे करने का मौक़ा ही कहां दिया अभी कानूनन बालिग़ भी तो नहीं हुए हैं, में क्या जेल चला जाता...!
लेकिन कुछ ऐसे भी ज़लील होते हैं जो अपनी ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए सबकुछ जानते हुए भी अपनी जान को भी दाव पर लगाने से नहीं चूकते जबरन बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं, यहां भी दो बातें होती हैं बलात्कार लड़कियां भी लड़कों के साथ करती हैं, मगर वो साबित नहीं हो पाता क्यूंकि यहां हमने अपने दिमाग़ में ये तय कर लिया है कि बलात्कार सिर्फ़ लड़के या मर्द ही करते हैं, जबकि ज़्यादातर बलात्कार बलात्कार होते ही नहीं रज़ामंदी होती है लेकिन किसी के देख लेने पर बलात्कार बन जाता है.
ख़ेर जो भी हो जब कुदरत के नियम में दख़ल दिया है तब कीमत तो अदा करनी ही होगी, इसलिए मेरी नज़र में इसके लिए सरकार ओर कानून सबसे बड़ा दोषी है उसके बाद मां-बाप...!
सही बात
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