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Monday, 25 October 2021
अलाउद्दीन ख़िलजी ना होते तो कैसा होता भारत...?
  मंत्रीगण सिर्फ अलाउद्दीन को सलाह देने और राज्य के दैनिक कार्यों को संभालने का कार्य करते थे, उसके समय में चार महत्वपूर्ण मंत्री थे, जिन्हें शासन का आधार स्तम्भ कहा जाता था, पहला मंत्री वजीर कहलाता था, यह दीवान ए विजारत विभाग का प्रमुख होता था तथा सुल्तान के बाद शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था, राजस्व वसूली की जिम्मेदारी उसी की होती थी, इसके अतिरिक्त वह अन्य मंत्रियों के विभागों की भी देखभाल करता था तथा शाही सेना का नेतृत्व करता था, अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में ख्वाजा खातिर, नुसरत खां एवं मलिक काफूर वजीर के पद पर कार्य किये थे, दूसरा मंत्री आरिज ए मुमालिक कहलाता था यह सैन्य विभाग का प्रमुख होता था, वजीर के बाद यह दूसरा महत्वपूर्ण मंत्री पद था, इसके मुख्य कार्य सैनिकों की भर्ती करना, उन्हें वेतन बांटना, सेना की दक्षता एवं साज सज्जा की देखभाल करना, युद्ध क्षेत्र में सेनापति के साथ जाना आदि थे, अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में मलिक नसीरुद्दीन मुल्क सिराजुद्दीन आरिज ए मुमालिक के पद पर तैनात थे.
  सैन्य प्रशासन अलाउद्दीन खिलजी ने आन्तरिक विद्रोहों को दबाने, बाह्म आक्रमण का सफलता पूर्वक सामना करने एवं साम्राज्य विस्तार हेतु एक सुदृढ़ एवं स्थायी सेना का गठन किया था, उसने घोड़ों को दागने एवं सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा शुरू की, अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने स्थायी सेना का गठन किया था, उसने सेना का केन्द्रीकरण किया तथा सैनिकों की सीधी भर्ती एवं नकद वेतन देने की प्रथा प्रारम्भ की, अलाउद्दीन की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक एवं हाथी सैनिक थे, इनमें घुड़सवार सबसे अधिक महत्वपूर्ण थे, तुमन दस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी को कहा जाता था, तब सैनिकों को 19.5 टका से लेकर 234 टका तक वार्षिक वेतन मिलता था.
उल्लेखनीय है कि आजकल के हिसाब से एक मन 12 सेर और 14 सेर के बीच होता था तथा चाँदी का एक ‘टका’ 46 से 48 जीतल के बराबर होता था.
जब कभी भी अलाउद्दीन खिलजी का नाम लिया जाता है. उसे सिर्फ उसकी बर्बरता और अमानवीयता के लिए ही याद किया जाता है. उसके इन युद्धों के जीतने के तरीके की वजह से ही इतिहास उसे एक निर्दयी शासक के तौर पर याद रखे हुए है.
खिलजी ने एक सिरे से कई सारे युद्ध लगातार जीते. इन युद्धों में जालौर का युद्ध, चित्तोड़ का युद्ध, नागौर का युद्ध, रणथम्भौर युद्ध आदि शामिल हैं. उसने अपनी सेना और रणनीतियों की बदौलत ही एक लम्बे समय तक हिन्दुस्तान पर राज किया.
ख़ास बात यह है कि अलाउद्दीन खिलजी की वजह से वहशी मंगोल भारत में अपना कब्ज़ा नहीं कर पाए. ये खिलजी ही था जिसकी वजह से एक या दो नहीं 6 बार मंगोलों को अपने पैर पीछे खींचने पड़े.
मंगोल वंश की स्थापना 1206 CE में हुई थी. इस दौरान मंगोल आदिवासियों की काउंसिल ने सर्वसम्मति से योद्धा ‘तेमुजिन’ को अपना नेता चुना. आगे चलकर, 44 साल की उम्र में उसे ‘चंगेज खान’ की उपाधि से सम्मानित किया गया. इस शब्द का अर्थ था ‘शक्तिशाली’.
मंगोलिया से निकलने वाले ये मंगोल अनपढ़ थे. मंगोलों ने पहले चंगेज खान के नेतृत्व में कई सारी विजय हासिल की. इसके बाद 1227 CE में उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे और पोतों के नेतृत्व में पूरा विश्व जीतने की रणनीति भी बनायी.
नतीजतन, ये विश्व इतिहास में सबसे बड़ा भू-भाग अपने आधीन करने में सफल हो गए. इस भू-भाग में चीन, रूस, मध्य एशिया, पर्शिया, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, कश्मीर और पूर्वी यूरोप के हिस्से शामिल हैं.
मंगोलों की यह प्रवृत्ति रही कि वह कहीं भी राज करने के लिए नहीं रुकते थे. वह एक राज्य में प्रवेश करते थे तो सिर्फ उसे लूटने के लिए. वो जहाँ जाते वहां मौत का तांडव मचा देते थे. पूरी जगह को तहस नहस कर डालते थे.
इसके अलावा, वह सुंदर स्त्रियों को अपने हरम में जबरदस्ती रख लेते थे. साथ ही, अच्छी कद-काठी और शक्तिशाली पुरुषों को अपनी सेना में शामिल कर लिया करते थे. मंगोलों का एक और नियम था. वह किसी भी राज्य पर आक्रमण करने से पहले उसे चेतवानी जरूर देते थे. साथ ही, अपनी मांगों को पूरा करने के बारे में भी कहते.
जब मंगोल लोगों को मौत के घाट उतारने से नहीं कतराते थे, मंगोल ‘चरवाहे’ थे, जो अपनी जीती हुई जमीन पर कभी भी बसेरा नहीं करते थे. उनका उद्देश्य साफ होता था. वह इलाकों से पैसा-खजाने के अलावा सारी नयी तकनीक लूट लिया करते थे. वह अपने जीते हुए इलाके में कुछ नहीं छोड़ा करते थे.
यदि कोई राज्य उनकी मांगों को मान कर पूरी कर देता तो, वह उन्हें बिना किसी नुकसान पहुंचाए छोड़ देते थे. इसके विपरीत यदि उनकी बात को कोई राज्य नहीं मानता था, तो वह उस राज्य को पूरी तरह से तहस-नहस कर देते थे. कर्टिन ने अपनी किताब में मंगोलों के विषय में कहा है कि यह हर चीज को बर्बाद कर दिया करते थे. वह जीव और निर्जीव किसी को भी नहीं छोड़ा करते थे.
ये मंगोल इतने निर्दयी थे कि जाते-जाते कुत्ते-बिल्लियों को भी नहीं छोड़ते थे. उन मासूम जानवरों को भी मौत के घाट उतार दिया करते थे. बता दें, मंगोलों का कोई धर्म नहीं होता था. मंगोल राष्ट्र काफी हद तक धर्मनिरपेक्ष रहा. ऐसे में, इस वंश में धर्म का कोई लेना देना नहीं रहा. मंगोलों की बर्बरता का सबसे बड़ा उदाहरण है उनका पर्सियन साम्राज्य पर किया गया हमला. इस निर्दयी वंश ने 6 मिलियन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
आपको जानकार यह हैरानी होगी कि उस समय पूरे विश्व की आबादी 400 मिलियन थी. सन 1258 में मंगोल हलाकू खान ने बग़दाद पर किये हमले में लगभग 20 हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इस्लामी स्कॉलर इब्न इफ्तिखार ने भी यह लिखा कि यह किसी बच्चे, बूढ़े, महिला, बीमार और अपाहिज किसी पर दया नहीं किया करते थे. वो लोगों को घरों मस्जिदों में ढूंढ-ढूंढ कर मारा करते थे. वह खून की नदियां बहाते थे.
सन 1266 CE में अलाउद्दीन खिलजी का जन्म दिल्ली में ही हुआ था. उसने अपना पूरा जीवन भारतीय उपमहाद्वीप में ही गुजारा. इसके साथ ही, उसने सन 1296 CE – 1316 CE तक दिल्ली के सुल्तान के रूप में भारत पर राज किया.
जब मंगोलों की जीत पर लगाम लगाई, एक शासक के तौर पर उसे देखा जाए, तो वह एक बेहतरीन योद्धा होने के साथ एक सफल रणनीति कार भी था. जिसके पास एक बहुत बड़ी और कुशल सेना मौजूद थी.
खिलजी ने सत्ता अपने चाचा सुल्तान जलालुद्दीन की हत्या करके हथिया ली थी. चाचा की मौत के बाद वह खुद दिल्ली के सुल्तान की गद्दी पर आ बैठा. इसके बाद उसने बड़ी तेजी से अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया. इसी कड़ी में उसने कई हिंदू राजाओं के प्रशासित राज्यों पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया. जिसमें गुजरात समेत पंड्या किंगडम, रणथम्भौर आदि शामिल है.
जब भारत में खिलजी का शासन था, उस समय मंगोलों ने हमला किया. चगताई खानाते के मंगोल के अंतर्गत दुवा खान ने भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला करने की कोशिश की. हालांकि, इससे पहले भी हमले की कोशिश की गई थी. चूँकि पहली बार मंगोलों ने इतने बड़े स्तर पर हमला किया था इसीलिए यह महत्वपूर्ण हो गया.
इतिहास कारों ने कहा है कि भारत की किस्मत अच्छी रही कि मंगोलों ने उस समय बड़ा हमला किया जब अलाउद्दीन जैसा शक्तिशाली योद्धा राज कर रहा था. खिलजी ने न सिर्फ एक बार बल्कि छह बार मंगोलों को भारत में कदम बढ़ाने से रोका. मंगोलों ने पहली बार सन 1298 CE में हमले की कोशिश की. इस हमले में उन्होंने करीब एक लाख घोड़ों का भी इस्तेमाल किया.
इसके जवाब में अलाउद्दीन ने अपने भाई उलुग खान और जनरल ज़फर खान के नेतृत्व में अपनी सेना भेजी. खिलजी की सेना ने मंगोलों को इस युद्ध में करारी शिकस्त दी. जीत के साथ ही करीब 20 हजार सैनिकों को युद्धबंदी भी बना लिया, जिन्हें बाद में मौत की सजा दे दी गई. अपनी हार के एक साल बाद एक बार फिर उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला किया. इस बार भी ज़फर खान के नेतृत्व में सेना खिलजी ने जीत हासिल की.
अपने खोये हुए किलों को उन्होंने आसानी से वापिस पा लिया. लगातार हो रही अपनी हार से दुवा खान झल्ला उठा था. उसने एक बार फिर अपने बेटे कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में दो लाख सेना को हमले में भेज दिया.
खिलजी ने चखाया 'मंगोलों' को हार का स्वाद, मंगोलों ने इस बार उसने दिल्ली की सल्तनत को खत्म करने का पूरा इरादा कर लिया. इस बार उसने पूरी तैयारी के साथ सेना को भेजा. कहते हैं अलाउद्दीन खिलजी के सलाहकार भी इस बार डर गया और उसने खिलजी को युद्ध न करने की सलाह भी दी. लेकिन, अलाउद्दीन बिलकुल भी भयभीत नहीं हुआ और उसने अंत समय तक लड़ने का फैसला लिया.
बता दें, इससे पहले खिलजी के चाचा जलालुद्दीन ने मंगोलों की मांगों को मानते हुए युद्ध का फैसला नहीं किया था. लेकिन अलाउद्दीन को झुकना पसंद ही नहीं था. अलाउद्दीन का आमना-सामना मंगोल कुतलुग ख्वाजा से किली पर हुआ. साथ ही यही वो दिन था जब खिलजी ने एक बार जनरल ज़फर खान की वजह से जीत हासिल कर ली. इस तरह हार की वजह से मंगोल पीछे हट गए और वापस लौट गए.
दुवा खान अभी भी अपनी हार को नहीं भुला था. उसने सन 1303 CE एक लाख, बीस हजार सेना के साथ दोबारा हमला किया. इस बार यह हमला जनरल ताराघई के नेतृत्व में किया गया.
रोचक बात यह है कि इसी समय अलाउद्दीन चित्तोड़ की लड़ाई को अभी ही जीता था. उसने इस युद्ध में जीत तो हासिल की थी, लेकिन बहुत भारी क्षति भी झेली थी. ऐसे में, जनरल ताराघई ने हमला बोल दिया. लेकिन इस बार भी वह खिलजी की सेना के घेरे को नहीं तोड़ पाया. लगातार दो महीने तक कोशिश करके वह थक-हारकर वापस लौट गया.
इसके दो साल बाद मंगोल ने एक बार फिर घुसपैठ की नाकामयाब कोशिश की, दुश्मनों के बीस हजार घोड़े जब्त कर लिए गए, दुश्मनों की सेना का सारा सामान ढूंढ लिया, आठ हजार युद्ध बंदियों को दिल्ली लाया गया, जनरल अली बेग और जनरल तर्ताक के सिर को कलम कर दिया गया, आखिरी बार दुआ खान ने 1306 CE में हमला किया, लेकिन इस हमले में भी वह नाकामयाब रहा.
मंगोलों को हराकर अलाउद्दीन खिलजी ने वह कारनामा किया, जो पूरे विश्व में कोई भी नहीं कर पाया था, मंगोलों को खिलजी ने लगातार हराने के बाद अपनी बेहतरीन सेना और बहादुरी का परिचय अवश्य दिया था, और आज क्या कहते हैं अलाउद्दीन ख़िलजी क्रूर था, ज़ालिम था...?
सोचना ज़रूर ये नफ़रत की राजनीति आपको और हमको ही नहीं हमारे देश को कहां लेजा रही है, क्या आज हमको दुश्मन के लिए अलाउद्दीन ख़िलजी बनने की ज़रूरत नहीं है, क्या चीन जो मंगोलों का ठिकाना हुआ करता था आज अलाउद्दीन ख़िलजी बनकर जवाब देने की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ़ लाल आंखे दिखाने की कहकर झूला झुलाकर किसने अपने को कमज़ोर साबित किया है, क्यूं चीन और पिद्दी सा पाकिस्तान हमको आंखे दिखाता है...?
हम आपको ये भी बताते चलें, कि मंगोल सिर्फ कश्मीर के हिस्से तक ही अपना पैर पसार पाए थे.
नोट- सभी तस्वीरें गूगल साभार
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